अरुण माहेश्वरी
आज (25 मई 2014, रविवार) के ‘जनसत्ता’ में मोदी सरकार के अभिनंदन में उदयन वाजपेयी का लेख है- ‘शायद कुछ नया हो’। ‘यह तो होना ही था’ के अपने विश्वास की पुनउर्क्ति साथ लिखा गया लेख।
यूपीए सरकार का जाना कोई अनहोनी बात नहीं थी। चुनाव प्रचार के बीच से ही सारे राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक पंडित इसे साफ देख पा रहे थे। आर्थिक-राजनीतिक क्षेत्र में उस सरकार की स्पष्ट विफलताएं, एक के बाद एक धांधलियों का पर्दाफाश और महंगाई की भारी मार - इस सरकार की विदाई के लिये काफी थे।
लेकिन हमारे हिंदी के लेखक उदयन वाजपेयीजी के लिये उनके ‘विश्वास’ के ये नहीं, कुछ और ही कारण थे। इस लेख में उन्होंने जो कारण गिनाये हैं, उन्हें इस प्रकार रखा जा सकता है - (1) वंशवाद, कांग्रेस पर गांधी-नेहरू परिवार का बोझ, (2) भारत के बौद्धिक विमर्श में भारतीय पारंपरिक विवेक का निषेध, (3) गणतांत्रिक (आंचलिक) राजनीति के विकास में अवरोध, (4) ‘दृश्य अल्पसंख्यक’ और ‘अदृश्य बहुसंख्यक’ की विडंबना, (5) हिंदू समुदायों की जातिवाद के नाम पर जारी बदनामी, (6) भारतीय ज्ञान का विदेशों में पलायन, और सर्वोपरि, (7) भारत पर सोवियत समाजवादी प्रभाव, सोवियत भूमंडलीकरण।
अब मोदी सरकार के बनने से वे आशान्वित है कि (1) भारत का पश्चिमीकरण रुकेगा, (2) गणतांत्रिक (आंचलिक) राजनीति का विकास होगा, (3) सब समुदाय अब ‘दृश्य’ होंगे, कोई ‘अदृश्य’ नहीं होगा, (4) जातिवाद की बदनामी कम होगी, और इसमें भी सर्वोपरि, (6) राजनीतिक विमर्श पर कम्युनिस्टों का अदृश्य वर्चस्व कमजोर होगा।
उदयन जी के शब्दों में, ‘‘कोई भी भूमंडलीकरण स्वागतयोग्य नहीं है, पर आधुनिक भूमंडलीकरण सोवियत भूमंडलीकरण की तुलना में बेहतर है।’’
वे इस बात पर सबसे अधिक खुश है कि अब संभवत: ‘‘हमारे राजनीतिक और बौद्धिक विमर्श और दृष्टिकोण में खुलापन’’ आयेगा। मोदी के हाथ में सारी राजनीतिक सत्ता के सिमट जाने पर उन्हें जरा भी आपत्ति नहीं है, क्योंकि उनके शब्दों में, ‘‘कांग्रेस जैसे पुराने राजनीतिक दल की सारी शक्ति नेहरू गांधी परिवार के दो सबसे अयोग्य सदस्यों के चारो ओर सिमट गई थी।’’
और अंत में, वे आह्लादित है कि इस परिवर्तन से हिंदी का भाग्योदय होगा।
क्या कहा जाए, वाजपेयी जी के इस आकलन को।
जो सोवियत संघ अस्तित्व में ही नहीं है, उसका ‘भूमंडलीकरण’ इस चुनाव के परिणाम का एक बड़ा कारण है !
वंशवाद ! कोई पूछे कि क्या हिटलर और उसका नाजीवाद जो आधुनिक समय में पूरी मानवता के अस्तित्व मात्र के लिये खतरा बन गया था, किसी वंशवाद की उपज था ? मान लेते हैं कि मोदी और संघ परिवार के प्रति अपनी अनुरक्ति के कारण उदयन जी को हिटलर और उसके नाजीवाद से उतना परहेज न हो, लेकिन जिस सोवियत संघ को वे घोषित तौर पर मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं, वह भी तो किसी वंशवाद की देन नहीं था। फिर वंशवाद और मोदीवाद में एक बुरा और दूसरा अच्छा कैसे होगया ?
‘गणतांत्रिक’ अर्थात आंचलिक राजनीति का विकास - संघ परिवार शायद अब संत बन अपने राजनीतिक विस्तार की तमाम महत्वाकांक्षाओं को त्याग देगा !
और भूमंडलीकरण ! उनके शब्दों में, ‘‘वैसे तो कोई भी भूमंडलीकरण स्वागतयोग्य नहीं है।’’ वे कभी सोचते हैं कि ‘भूमंडलीकरण’ का सार-तत्व है मानव मात्र की ‘प्राणी सत्ता’। क्या इससे वे इंकार कर सकते हैं ? भूमंडलीकरण का बहुलांश मानव की इस प्राणीसत्ता से जुड़ा हुआ है। ‘खुला खेल फरूखावादी’ के समर्थक जो उदयन वाजपेयी इस बात से सबसे अधिक खुश है कि अब बहुसंख्यक भी अदृश्य नहीं रहेंगे, वे मानव की इस सबसे ‘दृश्य प्राणीसत्ता’ के विरुद्ध क्यों है ? सिर्फ इसलिये कि कम्युनिस्टों ने दुनिया के मेहनतकशों को एक करने का नारा दिया था !
और बौद्धिक विमर्श की शुद्ध भारतीय परंपरा, ज्ञान को ‘समंदर पार न जाने देने का भारतीय विवेक’ - वे कौन से कबीलाई युग में जी रहे हैं ? ज्ञान पर इजारेदारी की ‘ब्राह्मण परंपरा’ के प्रति क्यों इतना व्यामोह !
उदयन जी को पता नहीं है कि यदि सकारात्मक नजरिये से सोचा जाए तो मोदी युग भारत में साम्राज्यवादी वैश्वीकरण का वह युग होगा, जब पश्चिमीकरण की आंधी बहेगी, विदेशी पूंजी का बोलबाला होगा। यही है विकास का उनका गुजरात मॉडल। और, अगर यह नकारात्मक दिशा में जाता है, ‘खुला खेल फरूखावादी’ की दिशा में, उदयन जी की शब्दावली में सब समुदायों को दृश्य कर देने की दिशा में, समुदायों के बीच नग्न टकराहटों के रास्ते में तो भारत का भविष्य तालिबानियों के प्रभाव के अफगानिस्तान जैसा होगा। उदयन जी अपने लेख में कुछ इसी प्रकार की सिफारिश कर रहे जान पड़ते हैं।
पता नहीं, आधुनिकतावाद के कौन से रिसते घाव की मवाद है यह सब ! हर हर मोदी !
आज (25 मई 2014, रविवार) के ‘जनसत्ता’ में मोदी सरकार के अभिनंदन में उदयन वाजपेयी का लेख है- ‘शायद कुछ नया हो’। ‘यह तो होना ही था’ के अपने विश्वास की पुनउर्क्ति साथ लिखा गया लेख।
यूपीए सरकार का जाना कोई अनहोनी बात नहीं थी। चुनाव प्रचार के बीच से ही सारे राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक पंडित इसे साफ देख पा रहे थे। आर्थिक-राजनीतिक क्षेत्र में उस सरकार की स्पष्ट विफलताएं, एक के बाद एक धांधलियों का पर्दाफाश और महंगाई की भारी मार - इस सरकार की विदाई के लिये काफी थे।
लेकिन हमारे हिंदी के लेखक उदयन वाजपेयीजी के लिये उनके ‘विश्वास’ के ये नहीं, कुछ और ही कारण थे। इस लेख में उन्होंने जो कारण गिनाये हैं, उन्हें इस प्रकार रखा जा सकता है - (1) वंशवाद, कांग्रेस पर गांधी-नेहरू परिवार का बोझ, (2) भारत के बौद्धिक विमर्श में भारतीय पारंपरिक विवेक का निषेध, (3) गणतांत्रिक (आंचलिक) राजनीति के विकास में अवरोध, (4) ‘दृश्य अल्पसंख्यक’ और ‘अदृश्य बहुसंख्यक’ की विडंबना, (5) हिंदू समुदायों की जातिवाद के नाम पर जारी बदनामी, (6) भारतीय ज्ञान का विदेशों में पलायन, और सर्वोपरि, (7) भारत पर सोवियत समाजवादी प्रभाव, सोवियत भूमंडलीकरण।
अब मोदी सरकार के बनने से वे आशान्वित है कि (1) भारत का पश्चिमीकरण रुकेगा, (2) गणतांत्रिक (आंचलिक) राजनीति का विकास होगा, (3) सब समुदाय अब ‘दृश्य’ होंगे, कोई ‘अदृश्य’ नहीं होगा, (4) जातिवाद की बदनामी कम होगी, और इसमें भी सर्वोपरि, (6) राजनीतिक विमर्श पर कम्युनिस्टों का अदृश्य वर्चस्व कमजोर होगा।
उदयन जी के शब्दों में, ‘‘कोई भी भूमंडलीकरण स्वागतयोग्य नहीं है, पर आधुनिक भूमंडलीकरण सोवियत भूमंडलीकरण की तुलना में बेहतर है।’’
वे इस बात पर सबसे अधिक खुश है कि अब संभवत: ‘‘हमारे राजनीतिक और बौद्धिक विमर्श और दृष्टिकोण में खुलापन’’ आयेगा। मोदी के हाथ में सारी राजनीतिक सत्ता के सिमट जाने पर उन्हें जरा भी आपत्ति नहीं है, क्योंकि उनके शब्दों में, ‘‘कांग्रेस जैसे पुराने राजनीतिक दल की सारी शक्ति नेहरू गांधी परिवार के दो सबसे अयोग्य सदस्यों के चारो ओर सिमट गई थी।’’
और अंत में, वे आह्लादित है कि इस परिवर्तन से हिंदी का भाग्योदय होगा।
क्या कहा जाए, वाजपेयी जी के इस आकलन को।
जो सोवियत संघ अस्तित्व में ही नहीं है, उसका ‘भूमंडलीकरण’ इस चुनाव के परिणाम का एक बड़ा कारण है !
वंशवाद ! कोई पूछे कि क्या हिटलर और उसका नाजीवाद जो आधुनिक समय में पूरी मानवता के अस्तित्व मात्र के लिये खतरा बन गया था, किसी वंशवाद की उपज था ? मान लेते हैं कि मोदी और संघ परिवार के प्रति अपनी अनुरक्ति के कारण उदयन जी को हिटलर और उसके नाजीवाद से उतना परहेज न हो, लेकिन जिस सोवियत संघ को वे घोषित तौर पर मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं, वह भी तो किसी वंशवाद की देन नहीं था। फिर वंशवाद और मोदीवाद में एक बुरा और दूसरा अच्छा कैसे होगया ?
‘गणतांत्रिक’ अर्थात आंचलिक राजनीति का विकास - संघ परिवार शायद अब संत बन अपने राजनीतिक विस्तार की तमाम महत्वाकांक्षाओं को त्याग देगा !
और भूमंडलीकरण ! उनके शब्दों में, ‘‘वैसे तो कोई भी भूमंडलीकरण स्वागतयोग्य नहीं है।’’ वे कभी सोचते हैं कि ‘भूमंडलीकरण’ का सार-तत्व है मानव मात्र की ‘प्राणी सत्ता’। क्या इससे वे इंकार कर सकते हैं ? भूमंडलीकरण का बहुलांश मानव की इस प्राणीसत्ता से जुड़ा हुआ है। ‘खुला खेल फरूखावादी’ के समर्थक जो उदयन वाजपेयी इस बात से सबसे अधिक खुश है कि अब बहुसंख्यक भी अदृश्य नहीं रहेंगे, वे मानव की इस सबसे ‘दृश्य प्राणीसत्ता’ के विरुद्ध क्यों है ? सिर्फ इसलिये कि कम्युनिस्टों ने दुनिया के मेहनतकशों को एक करने का नारा दिया था !
और बौद्धिक विमर्श की शुद्ध भारतीय परंपरा, ज्ञान को ‘समंदर पार न जाने देने का भारतीय विवेक’ - वे कौन से कबीलाई युग में जी रहे हैं ? ज्ञान पर इजारेदारी की ‘ब्राह्मण परंपरा’ के प्रति क्यों इतना व्यामोह !
उदयन जी को पता नहीं है कि यदि सकारात्मक नजरिये से सोचा जाए तो मोदी युग भारत में साम्राज्यवादी वैश्वीकरण का वह युग होगा, जब पश्चिमीकरण की आंधी बहेगी, विदेशी पूंजी का बोलबाला होगा। यही है विकास का उनका गुजरात मॉडल। और, अगर यह नकारात्मक दिशा में जाता है, ‘खुला खेल फरूखावादी’ की दिशा में, उदयन जी की शब्दावली में सब समुदायों को दृश्य कर देने की दिशा में, समुदायों के बीच नग्न टकराहटों के रास्ते में तो भारत का भविष्य तालिबानियों के प्रभाव के अफगानिस्तान जैसा होगा। उदयन जी अपने लेख में कुछ इसी प्रकार की सिफारिश कर रहे जान पड़ते हैं।
पता नहीं, आधुनिकतावाद के कौन से रिसते घाव की मवाद है यह सब ! हर हर मोदी !