पत्रकार जॉन इलियट के ब्लाग Riding the Elephant में जयपुर लिटरेरी फेस्टीवल के बारे में एक दिलचस्प रिपोर्ट है। तीन वयोवृद्ध सेलिब्रिटीज नोबेलजयी नायपॉल, पूर्व राष्ट्रपति कलाम और अभी-अभी अमेरिका से आए नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानगढि़या के प्रति नौजवान साहित्यप्रेमियों के उत्साह की रिपोर्ट। इसमें सबसे उल्लेखनीय है पानगढि़या से जुड़ा अंश।
एक कार्यक्रम में पानगढि़या जी का सामना हुआ था जनसत्ता के संपादक ओम थानवी से। थानवी जी इकोनामिक एंड पॉलिटिकल वीकली में प्रकाशित एक शोध प्रबंध के आधार पर बता रहे थे कि राजस्थान आज आर्थिक तौर पर खस्ता हाल है। इसे बीमारू राज्यों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
गौर करने लायक बात यह है कि पानगढि़या साहब ही अभी राजस्थान सरकार के आर्थिक सलाहकार बने हुए हैं।
ओम थानवी ने जब तथ्य दे-देकर उनकी सलाह पर चलने वाली सरकार की विफलताओं का लेखा-जोखा देना शुरू किया, पानगढि़या बुरी तरह उखड़ गये। जॉन इलियट का कहना है कि भारत के हिंदी अखबार का संपादक उनको कठघरे में खड़ा करें, यह उन्हें गंवारा नहीं था। अमेरिकी विश्वविद्यालय में हर रोज छात्रों के सवालों से बींधे जाने वाले पानगढि़या के इस प्रकार आपे से बाहर होजाने ने इलियट जैसे सब दर्शको को चौंका दिया। स्थिति तब तो चरम पर चली गयी जब पानगढि़या बहस छोड़ कर उठ खड़े हुए और ऊंची आवाज में थानवी जी को चुनौती देते हुए बोले कि आपके पास हमसे कोई अच्छा समाधान हो, तो बता दीजिये।
पानगढि़या का यह तेवर यह बताने के लिये काफी है कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में इनके कार्यकाल में भारत पर क्या बीतने वाली है। वे भारतीय अर्थ-व्यवस्था का बंटाधार करके यह कहते हुए रुखसत करने में देर नहीं करेंगे कि उनके पास करने के लिये इसके अलावा और कुछ नहीं था। अमेरिकी पूंजीवाद के जिस पिटे हुए रास्ते को लेकर वे भारत में हाजिर हुए है, उसका इसके अलावा दूसरा और कोई हश्र नहीं होने वाला है।
एक कार्यक्रम में पानगढि़या जी का सामना हुआ था जनसत्ता के संपादक ओम थानवी से। थानवी जी इकोनामिक एंड पॉलिटिकल वीकली में प्रकाशित एक शोध प्रबंध के आधार पर बता रहे थे कि राजस्थान आज आर्थिक तौर पर खस्ता हाल है। इसे बीमारू राज्यों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
गौर करने लायक बात यह है कि पानगढि़या साहब ही अभी राजस्थान सरकार के आर्थिक सलाहकार बने हुए हैं।
ओम थानवी ने जब तथ्य दे-देकर उनकी सलाह पर चलने वाली सरकार की विफलताओं का लेखा-जोखा देना शुरू किया, पानगढि़या बुरी तरह उखड़ गये। जॉन इलियट का कहना है कि भारत के हिंदी अखबार का संपादक उनको कठघरे में खड़ा करें, यह उन्हें गंवारा नहीं था। अमेरिकी विश्वविद्यालय में हर रोज छात्रों के सवालों से बींधे जाने वाले पानगढि़या के इस प्रकार आपे से बाहर होजाने ने इलियट जैसे सब दर्शको को चौंका दिया। स्थिति तब तो चरम पर चली गयी जब पानगढि़या बहस छोड़ कर उठ खड़े हुए और ऊंची आवाज में थानवी जी को चुनौती देते हुए बोले कि आपके पास हमसे कोई अच्छा समाधान हो, तो बता दीजिये।
पानगढि़या का यह तेवर यह बताने के लिये काफी है कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में इनके कार्यकाल में भारत पर क्या बीतने वाली है। वे भारतीय अर्थ-व्यवस्था का बंटाधार करके यह कहते हुए रुखसत करने में देर नहीं करेंगे कि उनके पास करने के लिये इसके अलावा और कुछ नहीं था। अमेरिकी पूंजीवाद के जिस पिटे हुए रास्ते को लेकर वे भारत में हाजिर हुए है, उसका इसके अलावा दूसरा और कोई हश्र नहीं होने वाला है।
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