शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

असम में डायन के नाम पर हत्या के खिलाफ कड़ा कानून


सरला माहेश्वरी



कल (13 अगस्त को) असम विधान सभा ने डायन हत्या निवारक कानून (Prevention and Protection from Witch-Hunting Bill 2015) पारित किया है। इस कानून में प्राविधान है कि कोई भी यदि किसी स्त्री को डायन बताता है तो उसे तीन से पांच साल की सख्त सजा होगी और पचास हजार से पांच लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा। डायन बता कर जुल्म करने वाले को 5 से 10 साल की सजा और एक से 5 लाख रुपये तक का जुर्माना भरना होगा। अगर इस प्रकार के किसी काम में किसी समूह को दोषी पाया जाता है तो उस समूह के हर व्यक्ति को 5 से 30 हजार रुपये तक का जुर्माना देना होगा। डायन बता कर किसी की हत्या करने पर धारा 302 के तहत मुकदमा चलेगा। डायन बता कर यदि किसी को आत्म-हत्या के लिए मजबूर किया जाता है तो उसे 7 साल से उम्रकैद तक की सजा और एक लाख से 5 लाख तक का जुर्माना देना होगा। इसप्रकार के मामलों की जांच में गफलत करने वाले जांच अधिकारी को भी दंडित किया जायेगा। उसे 10 हजार रुपये का जुर्माना भरना होगा।

असम का यह कानून बिहार, उड़ीसा, झारखंड और महाराष्ट्र के ऐसे ही कानून से ज्यादा सख्त कानून है। असम में पिछले पांच सालों में 70 औरतों को डायन बता कर उनकी हत्या कर दी गई थी। जांच करने पर पता चला है कि इनमें से अधिकांश मामलों के मूल में जमीन और संपत्ति का विवाद था।

हम सभी जानते है कि इसी 8 अगस्त को झारखंड में पाँच औरतों को डायन बताकर मार डाला गया था। पिछले  दस वर्षों में वहाँ इस तरह अब तक 1200 औरतों को डायन बताकर मारा जा चुका है ।

देश के अन्य भागों में भी इस तरह की घटनाएँ अक्सर घटती रहती हैं। जिनकी इस प्रकार हत्या की जाती हैं उनमें अधिकांश नहीं, बल्कि सर्वांश ग़रीब, कमज़ोर और विधवा औरतों का है । उन्हें कभी चुड़ैल, डायन या कुलटा बताया जाता है तो कभी सती बना कर चिता पर चढ़ा दिया जाता है । इस विषय में धर्म और परम्पराओं के ये खूनी रक्षक और सारे प्रतिगामी विचारों के लोग एक हैं ।

हिंदू कोड बिल का इतिहास हम भूले नहीं हैं। हम कैसे भूल सकते हैं कि 1987 में राजस्थान के दिवराला में 18 वर्ष की रूपकंवर को उसके मृत पति के साथ जिन्दा जला दिया गया था । इन सभी अवसरों पर परम्परा की रक्षा के नाम पर संघ परिवार वालों ने चरम प्रतिक्रियावादी भूमिका अदा की थी । संसद तक में सती प्रथा कानून में संशोधन का भाजपा ने विरोध किया था। आज वही भाजपा सत्ता में है । तमाम बाबाओं के, कर्मकांडियों के हौसले परवान चढ़े हुए हैं। कभी लव-जेहाद तो कभी खाप पंचायतें मानवाधिकारों का सरे आम मज़ाक़ उड़ा रही हैं ।

याद आती है वह कविता जो रूपकंवर को सती के नाम पर जला कर मार डालने की घटना पर लिखी गई थी :

यकीन नहीं होता

यकीन नहीं होता कैसे बरदाश्त किया होगा तुमने
आग की उन लपटों को
कैसे बरदाश्त किया होगा तुमने
सती मां की जय-जयकार करती
उस उन्मादित भीड़ को
जिसने सुनकर भी अनसुना कर दिया
तुम्हारी चीखों-चिल्लाहटों को

यकीन नहीं होता रूपकंवर
कि तुम्हारे रुकते, सहमते
फिर-फिर लौट आते कदमों को
जबरन मौत के मुंह में धकेलती
इस भीड़ को तुमने जल्लादों के रूप में नहीं देखा होगा

यकीन नहीं होता रूपकंवर
कि तुम्हारे रोएं रोएं ने
अपनी सम्पूर्ण शक्ति से इन्हें धिक्कारा नहीं होगा
यकीन नहीं होता रूपकंवर
कि इस बर्बर मौत की तरफ बढ़ते तुम्हारे कदमों ने
आगे बढ़ने से इंकार नहीं किया होगा।

यकीन नहीं होता रूपकंवर
कि तुम्हें मारकर तुम्हारा परलोक
और अपना इहलोक सुधारने वाली
कूट स्वार्थों से भरी उन निगाहों को तुमने पढ़ा नहीं होगा

यकीन नहीं होता रूपकंवर
कि तुमने अपने होशो-हवाश में
चुनी होगी ऐसी मौत

सच बतलाना रूपकंवर
किसने किसने किसने
तुम्हारे इस सुंदर तन-मन को आग के सुपुर्द कर दिया
क्या तुम्हें डर था
कि देवी न बनी तो डायन बना दी जाओगी
क्या तुम्हे डर था
अपने उस समाज का
जहां विधवा की जिंदगी
काले पानी की सजा से कम कठोर नहीं होती
लेकिन फिर भी
यकीन नहीं होता रूपकंवर
कि हिरणी की तरह चमकती तुम्हारी आंखों ने
यौवन से हुलसते तुम्हारे बदन ने
आग की लपटों में झुलसने से इंकार नहीं किया होगा।

यकीन नहीं होता रूपकंवर
कि मौत की लपटों से जूझते हुए
तुम्हारी आंखों ने
इंतजार नहीं किया होगा किसी और राममोहन का
जो बुझा देता उन दहकते अंगारों को
खींच कर बाहर ले आता तुम्हें इस अग्नि ज्वाला से
यकीन नहीं होता रूपकंवर
अविरामवार्य एधि!
हे प्रकाश हमारे बीच तुम्हारा आविर्भाव परिपूर्ण हो।




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