- अरुण माहेश्वरी
हम फिर एक बार बिहार चुनाव को लेकर खुद को वैसी ही उत्तेजना में पा रहे हैं, जैसी दिल्ली के पिछले चुनावों के वक्त थी। संक्रांति के ऐसे माहौल में, अनायास ही अपनी सही-गलत समझ और विश्लेषण के साथ हम भी उस सत्य के अंशी बन जाते हैं, जो सारी भ्रांतियों के अंत में, सामाजिक लक्षणों के अर्थ के रूप में प्रकट होने वाला है।
आज एक संवाददाता सम्मेलन में सीपीआई(एमएल) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य बोल रहे थे। उनका कहना था कि बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की करतूतों ने व्यापक जनता में उनके खिलाफ इतना गहरा असंतोष पैदा कर दिया है कि इस चुनाव मे उनकी भारी पराजय सुनिश्चित है। वे यह भी कह रहे थे कि भाजपा के एनडीए के खिलाफ सबसे बड़े गठबंधन के नाते नीतीश कुमारे के नेतृत्व के महागठबंधन को इस स्थिति का पूरा लाभ मिलेगा, उसकी एक बड़ी जीत सुनिश्चित है।
सब जानते हैं कि बिहार के इस चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के अलावा वामपंथी पार्टियों का एक और गठबंधन भी मैदान में उतरा हुआ था। ऐसे एक प्रतिद्वंद्वी गठबंधन के एक नेता द्वारा महागठबंधन की जीत को सुनिश्चित बताना, बिहार के चुनाव के सच को परिणाम सामने आने के पहले ही सबके सामने रखने के समान है।
इस चुनाव में वाममोर्चा अपनी पूरी ताकत के साथ लड़ रहा है, इसमें शक नहीं। आज जो विवर्तन की स्थिति बनी है, उसमें वाममोर्चा की इस लड़ाई का भी निश्चित योगदान है। हो सकता है कि वामपंथ को इसमें सीधा कोई खास लाभ न मिलें, लेकिन इस प्रक्रिया में उसकी सक्रिय और संगठित भागीदारी खुद में कम महत्वपूर्ण नहीं है। कोई भी सत्य क्या कभी सीधे प्रकट होता है ? हमेशा एक विरोधाभासी ढांचे के बीच से ही वह अपने को जाहिर करता है। इसे ही संक्रांति की भ्रांति कहते हैं जो अंतिम सत्य को प्रकट करने का माध्यम बनता है।
ऐसे में दीपांकर भट्टाचार्य का कथन वाम की राजनीतिक परिपक्वता का परिचायक है। वाममोर्चा की विफलता कोई ब़ड़ी बात नहीं है। सच यह है कि विफलताओं से ही सफलताओं की सीढ़ियाँ तैयार होती है, न कि किनारे से नजारा करने पर। कोई भी क्रांति बिना क्रांति किये नहीं होती। हमारे समाज के वास्तविक सत्य को, इसके विविधताओं से भरे धर्मनिरपेक्ष ढांचे के सत्य को सामने लाने वाली इस संक्रांति को संभव बनाने में वाम मोर्चे की भूमिका भविष्य में उसके नाटकीय उभार का आधार बन सकती है, बशर्ते इसके बीच से उसने जो भी शक्ति और गति हासिल की है, उसे आगे भी लगातार साधती रहे।
हम फिर एक बार बिहार चुनाव को लेकर खुद को वैसी ही उत्तेजना में पा रहे हैं, जैसी दिल्ली के पिछले चुनावों के वक्त थी। संक्रांति के ऐसे माहौल में, अनायास ही अपनी सही-गलत समझ और विश्लेषण के साथ हम भी उस सत्य के अंशी बन जाते हैं, जो सारी भ्रांतियों के अंत में, सामाजिक लक्षणों के अर्थ के रूप में प्रकट होने वाला है।
आज एक संवाददाता सम्मेलन में सीपीआई(एमएल) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य बोल रहे थे। उनका कहना था कि बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की करतूतों ने व्यापक जनता में उनके खिलाफ इतना गहरा असंतोष पैदा कर दिया है कि इस चुनाव मे उनकी भारी पराजय सुनिश्चित है। वे यह भी कह रहे थे कि भाजपा के एनडीए के खिलाफ सबसे बड़े गठबंधन के नाते नीतीश कुमारे के नेतृत्व के महागठबंधन को इस स्थिति का पूरा लाभ मिलेगा, उसकी एक बड़ी जीत सुनिश्चित है।
सब जानते हैं कि बिहार के इस चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के अलावा वामपंथी पार्टियों का एक और गठबंधन भी मैदान में उतरा हुआ था। ऐसे एक प्रतिद्वंद्वी गठबंधन के एक नेता द्वारा महागठबंधन की जीत को सुनिश्चित बताना, बिहार के चुनाव के सच को परिणाम सामने आने के पहले ही सबके सामने रखने के समान है।
इस चुनाव में वाममोर्चा अपनी पूरी ताकत के साथ लड़ रहा है, इसमें शक नहीं। आज जो विवर्तन की स्थिति बनी है, उसमें वाममोर्चा की इस लड़ाई का भी निश्चित योगदान है। हो सकता है कि वामपंथ को इसमें सीधा कोई खास लाभ न मिलें, लेकिन इस प्रक्रिया में उसकी सक्रिय और संगठित भागीदारी खुद में कम महत्वपूर्ण नहीं है। कोई भी सत्य क्या कभी सीधे प्रकट होता है ? हमेशा एक विरोधाभासी ढांचे के बीच से ही वह अपने को जाहिर करता है। इसे ही संक्रांति की भ्रांति कहते हैं जो अंतिम सत्य को प्रकट करने का माध्यम बनता है।
ऐसे में दीपांकर भट्टाचार्य का कथन वाम की राजनीतिक परिपक्वता का परिचायक है। वाममोर्चा की विफलता कोई ब़ड़ी बात नहीं है। सच यह है कि विफलताओं से ही सफलताओं की सीढ़ियाँ तैयार होती है, न कि किनारे से नजारा करने पर। कोई भी क्रांति बिना क्रांति किये नहीं होती। हमारे समाज के वास्तविक सत्य को, इसके विविधताओं से भरे धर्मनिरपेक्ष ढांचे के सत्य को सामने लाने वाली इस संक्रांति को संभव बनाने में वाम मोर्चे की भूमिका भविष्य में उसके नाटकीय उभार का आधार बन सकती है, बशर्ते इसके बीच से उसने जो भी शक्ति और गति हासिल की है, उसे आगे भी लगातार साधती रहे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें