राज्य सभा का अधिवेशन आज भी रुका हुआ है। दो दिन पहले भारत के संविधान पर चल रही बहस के दौरान कांग्रेस नेता और पूर्वमंत्री कुमारी शैलजा ने समाज में जातिगत भेदभाव के सच को बताने के लिये गुजरात के एक मंदिर के अपने अनुभव को सदन में रखा था। सजल आंखों से उन्होंने बताया कि किस प्रकार द्वारका के एक द्वीप पर स्थित मंदिर में पूजा के वक्त पुजारी ने उनसे उनकी जाति के बारे में पूछा था। शैलजा ने कटाक्ष किया कि यह है -विकास का गुजरात मॉडल !
कुमारी शैलजा के बयान के दूसरे दिन ही मोदी सरकार के अति-उत्साही मंत्री अरुण जेटली सदन में कुछ कागजों के साथ हाजिर होगये। शैलजा के अनुभव को झुठलाते हुए उन्होंने द्वारकाधीश मंदिर की आगंतुकों की उस डायरी का उल्लेख करना शुरू कर दिया जिसमें खुद कुमारी शैलजा ने 23 जनवरी 2013 के दिन पुजारियों की प्रशंसा करते हुए लिखा था कि ‘‘उनका अहोभाग्य था कि उन्हें भगवान कृष्ण का आशिर्वाद मिला।’’ जेटली ने मंदिर के इस रेकर्ड को सदन में रखने की पेशकश भी की।
कुमारी शैलजा ने तत्काल जेटली की इस उत्साही खोज को खारिज करते हुए बताया कि उन्होंने द्वारकाधीश मंदिर की बात नहीं कही थी। वे द्वारका के एक द्वीप पर स्थित एक मंदिर की चर्चा कर रही थी। भाजपा के एक सांसद ने उन्हें याद दिलाया कि वे शायद बैत द्वारका मंदिर की बात कर रही है तो कुमारी शैलजा ने कहा कि हां, उसी मंदिर की बात है।
बेट-द्वारका ही वह जगह है, जहां भगवान कृष्ण ने अपने प्यारे भगत नरसी की हुण्डी भरी थी। यह मंदिर एक द्वारकाधीश मंदिर से तीस किलोमीटर दूर एक अलग टापू पर स्थित है जहां नौका से जाना पड़ता है।
मजे की बात यह है कि अति-उत्साही जेटली के शिष्य, भाजपा के एक दूसरे मंत्री पियूष गोयल ने जेटली की इस अनुपम खोज पर उछल कर कहा कि ‘‘गढ़ी हुई अन्य समस्याओं और गढ़े गये भेद-भाव (Manufactured problems and manufactured discrimination) का यह एक और उदाहरण है।
कुमारी शैलजा के बयान और उस पर वित्त मंत्री जेटली का रवैया यह दिखाने के लिये काफी है कि मोदी सरकार अपने विरोधियों को अपमानित करने के लिये किसी भी हद तक जा सकती है। उन्हें यह कहने में भी कोई हिचक नहीं है कि भारत में जातिवादी भेदभाव की बात करना सच नहीं, बल्कि एक गढ़ा हुआ सच है ! वे एक पूर्व मंत्री के पीड़ादायी अनुभवों को झुठलाने के लिये मंदिरों के भी झूठे-सच्चे रेकर्ड पेश कर सकते हैं।
जेटली आज भी अपने झूठ के लिये खेद प्रकट करके माफी मांगने के लिए तैयार नहीं है। अब भाजपा वालों का कहना है कि शैलजा ने इसके साथ ‘विकास के गुजरात मॉडल’ का उल्लेख क्यों किया ! अर्थात्, आने वाले समय में मोदी के कथित ‘विकास मॉडल’ की आलोचना की भी मनाही होगी !
सचमुच, संसदीय जनतंत्र की नैतिकताओं के साथ भाजपा का मेल बैठना इस मोदी जमाने में अब मुश्किल हो रहा है। लेकिन संतोष की बात यही है कि दिल्ली, बिहार और अब गुजरात की जनता ने यह बता दिया है कि इनके उत्पात के अब गिने-चुने दिन ही शेष है। इनके भविष्य की इबारतें जनता के दिलों पर लिखी जा चुकी है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें