-अरुण माहेश्वरी
कोई भी राजनेता जब अतिरिक्त बल के साथ यह कहता है कि वह तो सिर्फ वर्तमान में जीता है तो सबसे पहला सवाल उठता है कि आखिर क्यों ? क्या उनका अपना कोई अतीत नहीं है ? या क्या उनकी कोई भविष्य-दृष्टि नहीं है ?
सच यह है कि मोदी जी का अतीत आरएसएस का, गुजरात में आरएसएस की प्रयोगशाला के मुखिया का, गोरक्षकों वाला, भारत में गायों के व्यापारियों की सबसे संगठित शक्ति वाला अतीत है। बीच-बीच में ऐसे मौके आते हैं जब वे बड़े गर्व के साथ आरएसएस के प्रचारक के रूप में अपने अतीत का स्मरण भी किया करते हैं।
लेकिन, अब जैसे-जैसे एक राष्ट्र-प्रमुख के रूप में उनके दिन बीत रहे हैं, यह संभव है कि उन्हें अपने उस अतीत और उससे जुड़ी भविष्य-दृष्टि की सारहीनता क्रमश: नजर आने लगी है। गांधी-नेहरू के प्रति घृणा फैलाने के अपने अतीत की यादें संभवत: कुछ-कुछ सताने भी लगी हैं।
प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने देश-विदेश की काफी यात्राएं की हैं। सारी दुनिया के राजनेताओं से मिलने का उन्हें मौका मिला है। हमारे पुराणों में भी यात्राओं के महात्म्य का काफी बखान किया गया है। अपने घर की सीमाओं में बंधे परिवार के मुखिया की कूपमंडुकता, मोहन भागवत की तरह के परिवार के कर्ता का स्वरूप, जो आज की दुनिया में अपने लोगों को आबादी बढ़ाने की सलाह देने से भी बाज नहीं आता, निश्चित रूप से उनके सामने कुछ तो खुलने ही लगा होगा। दुनिया भारत को किस नजर से देखती है और वे खुद अपने परिवार के प्रचारक के तौर पर इसे क्या बनाने की कल्पनाएं पाले हुए थे, उनके बीच के जमीन-आसमान के फर्क को भी वे कुछ तो जरूर महसूस करने लगे होंगे !
ऊपर से, वे यह भी देख रहे होंगे कि सभ्य समाजों में धार्मिक उन्माद के प्रति लोगों में कितने गहरे तिरस्कार के भाव हैं। आज पाकिस्तान से लेकर पूरा मध्यपूर्व जिस प्रकार इस उन्माद की भेंट चढ़ा हुआ है, उसके विध्वंसक चेहरे को न चाहते हुए भी दूसरे लोग ही उन्हें दिखा रहे होंगे। इसीलिये अपने खुद के अतीत का तिरस्कार करते हुए जब पिछले दिनों उन्होंने बहुत हल्के से गोगुंडों की निंदा की तो वे निश्चित तौर पर अपने अतीत और भविष्य-दृष्टि, दोनों से ही भाग कर वर्तमान में ही जी रहे थे।
जाहिर है कि यदि मोदी जी मात्र आरएसएस के इतिहास का ही एक पुर्जा बन कर रह जाना चाहते हैं, तो अभी तो सिर्फ पड़ौसी मुल्कों से ही भारत के रिश्तों में तनातनी चल रही है, कल समूचे विश्व-समुदाय को भारत खटकने लगेगा। लोग इसे टेढ़ी और उपेक्षा की नजरों से देखने लगेंगे !
हम समझ सकते हैं कि हमारे टिप-टॉप प्रधानमंत्री को मोहन भागवत वाली मुखिया की सूरत जरा भी पसंद नहीं है। वे अपने ऐसे पूर्वजों को अब दूर से ही प्रणाम करते हुए जीना चाहते हैं ; अपने वर्तमान का पूर्ण उपभोग करना चाहते हैं। वर्तमान कितना ही विकट और समस्या-ग्रसित क्यों न हो, प्रधानमंत्री निवास के आरामदेह परिवेश में इसकी विकटता का ताप उसमें बैठे आदमी की फितरत के अनुसार ही प्रवेश कर सकता है। इसीलिये ऐसा मोहक वर्तमान किसी भी अन्यथा बेचैन आत्मा के लिये सबसे अधिक काम्य शरण-स्थली हो तो वही स्वाभाविक है।
हम यह समझ पा रहे हैं कि मोदी जी अपने वर्तमान में महज इसलिये जीना चाहते हैं क्योंकि वे आज हमारे राष्ट्र की सर्वोच्च सत्ता के अधिकारी है। उनके राज में पूरे राष्ट्र को क्लेश हो सकता है, लेकिन प्रजा के क्लेश से राजा की नींद भी हराम हो, यह जरूरी नहीं होता। इसीलिये शायद मोदी जी को अपनी इसी नीम बेहोशी वाला वर्तमान बेहद प्रिय है।
कोई भी राजनेता जब अतिरिक्त बल के साथ यह कहता है कि वह तो सिर्फ वर्तमान में जीता है तो सबसे पहला सवाल उठता है कि आखिर क्यों ? क्या उनका अपना कोई अतीत नहीं है ? या क्या उनकी कोई भविष्य-दृष्टि नहीं है ?
सच यह है कि मोदी जी का अतीत आरएसएस का, गुजरात में आरएसएस की प्रयोगशाला के मुखिया का, गोरक्षकों वाला, भारत में गायों के व्यापारियों की सबसे संगठित शक्ति वाला अतीत है। बीच-बीच में ऐसे मौके आते हैं जब वे बड़े गर्व के साथ आरएसएस के प्रचारक के रूप में अपने अतीत का स्मरण भी किया करते हैं।
लेकिन, अब जैसे-जैसे एक राष्ट्र-प्रमुख के रूप में उनके दिन बीत रहे हैं, यह संभव है कि उन्हें अपने उस अतीत और उससे जुड़ी भविष्य-दृष्टि की सारहीनता क्रमश: नजर आने लगी है। गांधी-नेहरू के प्रति घृणा फैलाने के अपने अतीत की यादें संभवत: कुछ-कुछ सताने भी लगी हैं।
प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने देश-विदेश की काफी यात्राएं की हैं। सारी दुनिया के राजनेताओं से मिलने का उन्हें मौका मिला है। हमारे पुराणों में भी यात्राओं के महात्म्य का काफी बखान किया गया है। अपने घर की सीमाओं में बंधे परिवार के मुखिया की कूपमंडुकता, मोहन भागवत की तरह के परिवार के कर्ता का स्वरूप, जो आज की दुनिया में अपने लोगों को आबादी बढ़ाने की सलाह देने से भी बाज नहीं आता, निश्चित रूप से उनके सामने कुछ तो खुलने ही लगा होगा। दुनिया भारत को किस नजर से देखती है और वे खुद अपने परिवार के प्रचारक के तौर पर इसे क्या बनाने की कल्पनाएं पाले हुए थे, उनके बीच के जमीन-आसमान के फर्क को भी वे कुछ तो जरूर महसूस करने लगे होंगे !
ऊपर से, वे यह भी देख रहे होंगे कि सभ्य समाजों में धार्मिक उन्माद के प्रति लोगों में कितने गहरे तिरस्कार के भाव हैं। आज पाकिस्तान से लेकर पूरा मध्यपूर्व जिस प्रकार इस उन्माद की भेंट चढ़ा हुआ है, उसके विध्वंसक चेहरे को न चाहते हुए भी दूसरे लोग ही उन्हें दिखा रहे होंगे। इसीलिये अपने खुद के अतीत का तिरस्कार करते हुए जब पिछले दिनों उन्होंने बहुत हल्के से गोगुंडों की निंदा की तो वे निश्चित तौर पर अपने अतीत और भविष्य-दृष्टि, दोनों से ही भाग कर वर्तमान में ही जी रहे थे।
जाहिर है कि यदि मोदी जी मात्र आरएसएस के इतिहास का ही एक पुर्जा बन कर रह जाना चाहते हैं, तो अभी तो सिर्फ पड़ौसी मुल्कों से ही भारत के रिश्तों में तनातनी चल रही है, कल समूचे विश्व-समुदाय को भारत खटकने लगेगा। लोग इसे टेढ़ी और उपेक्षा की नजरों से देखने लगेंगे !
हम समझ सकते हैं कि हमारे टिप-टॉप प्रधानमंत्री को मोहन भागवत वाली मुखिया की सूरत जरा भी पसंद नहीं है। वे अपने ऐसे पूर्वजों को अब दूर से ही प्रणाम करते हुए जीना चाहते हैं ; अपने वर्तमान का पूर्ण उपभोग करना चाहते हैं। वर्तमान कितना ही विकट और समस्या-ग्रसित क्यों न हो, प्रधानमंत्री निवास के आरामदेह परिवेश में इसकी विकटता का ताप उसमें बैठे आदमी की फितरत के अनुसार ही प्रवेश कर सकता है। इसीलिये ऐसा मोहक वर्तमान किसी भी अन्यथा बेचैन आत्मा के लिये सबसे अधिक काम्य शरण-स्थली हो तो वही स्वाभाविक है।
हम यह समझ पा रहे हैं कि मोदी जी अपने वर्तमान में महज इसलिये जीना चाहते हैं क्योंकि वे आज हमारे राष्ट्र की सर्वोच्च सत्ता के अधिकारी है। उनके राज में पूरे राष्ट्र को क्लेश हो सकता है, लेकिन प्रजा के क्लेश से राजा की नींद भी हराम हो, यह जरूरी नहीं होता। इसीलिये शायद मोदी जी को अपनी इसी नीम बेहोशी वाला वर्तमान बेहद प्रिय है।
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