-अरुण माहेश्वरी
अमेरिकी चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की हिलैरी क्लिंटन और रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प के बीच हुई दूसरी राष्ट्रीय बहस ने अनायास ही हमारे सामने 2014 के भारतीय चुनाव के दृश्य की यादों को ताजा कर दिया। इस बहस पर टिप्पणी करते हुए ‘इकोनोमिस्ट’ पत्रिका ने 10 अक्तूबर को ट्रम्प की सारी बातों को खतरनाक बताते हुए लिखा है कि उसने हिलैरी के सामने जैसे झूठी बातों का एक तूफान सा खड़ा कर दिया था। वह लगातार एक के बाद एक, जिसप्रकार झूठी बातें अनर्गल रूप से बोल रहा था, उन सबका मुकाबला करना किसी के लिये भी असंभव था। उसकी पूरी कोशिश थी कि वह हिलेरी को अपने साथ गंदगी से भरी हुई नाली में लोटने-पोटने के लिये खींच लें। यह सभी शैतानों का आजमाया हुआ नुस्खा होता है कि सामने वाला कुछ भी क्यों न कहें, वह ऐन-केन-प्रकारेण बहस को अपनी शर्तों पर ही चलायेगा।
‘इकोनोमिस्ट’ का कहना है कि ट्रम्प की झूठी और खतरनाक बातों की तुलना में हिलेरी के तर्कों में सूक्ष्मता थी। हिलेरी ने ट्रम्प की बहुत सारी बातों को नफरत के साथ नजरंदाज किया। ट्रम्प कहता है, उसके अंदर भारी घृणा भरी हुई है तो हिलैरी ने कहा, वे ट्रम्प के समर्थकों से नहीं, सिर्फ ट्रम्प से बहस कर रही थी।
2014 के भारतीय चुनावों को याद कीजिए। बिल्कुल यही स्थिति थी। झूठ के उस तूफान का मुकाबला करना लगभग असंभव हो गया था। अब तो खुद मोदी और उसके लोग गाहे-बगाहे उस चुनाव में अपनी बातों को ‘जुमलेबाजी’ कह देते हैं।
अमेरिका और भारत में फर्क सिर्फ इतना है कि वहां ट्रम्प की जीत के बहुत कम आसार है, ‘इकोनोमिस्ट’ के अनुसार तो हिलैरी की जीत ओबामा से भी भारी जीत साबित होगी, लेकिन हमारे यहां बिल्कुल ट्रम्प जैसा व्यक्ति ही चुनाव जीत गया। अमेरिका में ट्रम्प के उदय पर सारी दुनिया इसलिये भी चिंतित है क्योंकि वह सिर्फ अमेरिका का अंदुरूनी मामला नहीं है। ऐसे एक चरित्रहीन और झूठे व्यक्ति के हाथ में अमेरिकी न्युक्लियर हथियारों का कोड रहना सारी दुनिया की चिंता का विषय है। भारत में भी, मोदी का जीतना इस उप-महाद्वीप की शांति के लिये खतरा माना जाता था और अभी से उसके सारे संकेत मिलने भी लगे हैं। फिर भी, महज एक क्षेत्रीय शक्ति होने के नाते, भारत में ऐसी खतरनाक शक्ति के उदय पर लोगों ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। दुनिया के दूसरे शक्तिशाली देश इसे अपनी विश्व रणनीति के लिये सिर्फ एक और चुनौती के रूप में देख रहे हैं।
बहरहाल, भारत के डोनाल्ड ट्रम्प नरेन्द्र मोदी के शासन के लगभग अढ़ाई साल पूरे हो रहे हैं। और, जैसी कि आशंका थी, ज्ञान-विज्ञान के सभी क्षेत्रों और संस्थाओं में, क्रमश: अज्ञान और अंधविश्वासों का अंधेरा घना होता जा रहा है। गोरक्षकों के जैसे एक नये युग का श्रीगणेश हुआ है। जो समाज में गोगुंडों के रूप में कुख्यात है, शासक संगठन आरएसएस के प्रमुख उनकी तारीफ के ही पुल बांध रहे हैं। और सारे लेखक, साहित्यकार, इतिहासकार, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री और गंभीर राजनयिक - सारे के सारे बुद्धिजीवी - इनकी नजरों में सबसे घृणित और ‘देशद्रोही’ तत्व हैं।
भारतीय जीवन को किस प्रकार सुनियोजित ढंग से एक गहरे अंधेरे में ढकेल दिया जा रहा है, इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण है - भारत का मुख्यधारा का, खास तौर इलेक्ट्रोनिक मीडिया। आज के ‘टेलिग्राफ’ की सुर्खी है कि किस प्रकार पाकिस्तानी मीडिया भारतीय मीडिया की तुलना में अपने पत्रकारिता के धर्म का ज्यादा ईमानदारी और मुस्तैदी से पालन कर रहा है। कांग्रेस के नेता पी चिदंबरम ने इस भारतीय मीडिया की तुलना बॉलिंग के खेल की उन नौ गुल्लियों (Ninepins) से की है जो सारी की सारी एक झटके में गिर जाया करती है। इस रिपोर्ट में विस्तार के साथ बताया गया है कि किस प्रकार यह पूरा मीडिया तथाकथित सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में वास्तविक तथ्यों को सामने लाने में बाधा का काम कर रहा है; किस प्रकार एनडी टीवी की तरह के चैनल ने राहुल गांधी के भाषण और चिदंबरम के साक्षात्कार को प्रसारित करने से मना कर दिया और अमित शाह तथा पर्रीकर की तरह के जुमलेबाजों के भाषणों का सीधा प्रसारण करता है। हम यहां आज के टेलिग्राफ की इस पूरी रिपोर्ट को मित्रों से साझा कर रहे हैं।
सीपीआई(एम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने एक ट्विट करके बिल्कुल सही कहा है कि ‘‘कितनी ही जोड़-तोड़ क्यों न कर लीजिए, इस भाजपा शासन के तहत अर्थ-व्यवस्था की वास्तविक स्थिति को कोई छिपा नहीं सकता है। न विकास है, न रोजगार है और न ही इस दशा से उबरने की कोई आशा।’’ एक और ट्विट में उन्होंने कहा है कि ‘‘जिस प्रकार ‘डॉन’ अखबार ने भारी दबाव के बावजूद तन कर अपनी बात कही है, उससे हर किसी को हर जगह प्रेरित होना चाहिए। ’’
यहां हम ‘टेलिग्राफ’ की आज की रिपोर्ट को साझा कर रहे हैं -
http://www.telegraphindia.com/1161013/jsp/frontpage/story_113185.jsp#.V_83l9EwS_M
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