गुरुवार, 10 नवंबर 2016

अमेरिका में ट्रम्प की जीत से तात्पर्य

- अरुण माहेश्वरी



ब्रिटेन में ब्रेक्सिट के बाद अमेरिका में ट्रम्प की जीत विश्व पूँजीवाद की दुर्दशा को बताने के लिये काफी है ।

यह बताती है कि पूँजीवादी देशों में आम आदमी यथास्थितिवादी राजनीति से पूरी तरह से ऊब चुका है । उसका जीवन इतना दुष्कर हो चुका है कि अब इससे बुरे की वह कल्पना नहीं कर पा रहा है । पारंपरिक राजनीतिक नेतृत्व और ढर्रेवर विचारधाराओं की जगह वह किसी भी जीव-जंतु और जंगलीपने तक को आज़माने के लिये तैयार है ।

ट्रम्प जैसे एक लंपट और विभाजनकारी चरित्र की जीत से जाहिर है कि पूँजीवाद अब नागरिक जीवन में न्यूनतम शालीनता की रक्षा में भी असमर्थ हो चुका है । जीवन के सारे नैतिक मूल्य और तथाकथित पवित्र रिश्तें हवा में विलीन हो जा रहे हैं ।

दुनिया की सबसे बड़ी पूँजीवादी शक्ति के नेतृत्व में ट्रम्प की तरह के एक अविश्वसनीय व्यक्ति का आना पूरी दुनिया को एक अनिश्चय के कगार पर खड़ा कर देना है । जो चल रहा था वह चल नहीं सकता, मान लेने का सीधा अर्थ है पूंजीवाद चल नहीं सकता । और ट्रम्प का रास्ता भी पूंजीवाद से कोई अलग रास्ता नहीं होगा ।

अर्थात, आज मोदी ने भारत को जहाँ लाकर खड़ा किया है, अमेरिका भी आगे वहीं खड़ा दिखेगा । मतलब यह महाशक्ति खुद एक गहरी मंदी में फँसने के साथ ही पूरी दुनिया को परस्पर अविश्वास, युद्ध और अस्थिरता की परिस्थिति में झोंक देगी ।

लगता है जैसे समय आ रहा है जब पूँजीवाद के वामपंथी विकल्प को तेज़ी से तैयार किया जाए । सर्वहारा के राज्य को क़ायम करने की नई रणनीति बनाई जाए । यह वामपंथ के एक नए अवतार का समय साबित हो सकता है ।

लगता है जैसे समय आ रहा है जब पूँजीवाद के वामपंथी विकल्प को तेज़ी से तैयार किया जाए । सर्वहारा के राज्य को क़ायम करने की नई रणनीति बनाई जाए । यह वामपंथ के एक नए अवतार का समय साबित हो सकता है ।

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