जयललिता नहीं रही । कल आधी रात के समय चेन्नई के अपीलों अस्पताल में उन्होंने अपनी अंतिम साँस ली । वे 68 साल की थी ।
जयललिता की मृत्यु से तमिलनाडु के लोगों ने अपनी एक प्रिय नेत्री को और दक्ष प्रशासक को खोया है और भारत ने एक लोकप्रिय, और राजनीति के अपने ही तर्कों पर पूरी दृढ़ता से चलने वाली जननेता को ।
जयललिता की जीवन-शैली, उनकी शासन प्रणाली और उनके समर्थकों के बीच उनके प्रति पूजा का उत्कट भाव बहुतों को एक पहेली की तरह प्रतीत हो सकता है । अपोलो अस्पताल के सामने उनके समर्थक जिस प्रकार बिलख-बिलख कर रो रहे थे, वह एक अलग ही प्रकार के उन्माद का दृश्य कहला सकता है । कहते है तमिलनाडु में राजनेताओं के प्रति इस प्रकार के भक्ति के उन्माद की भी अपनी परंपरा है । लोग अपना होश खो बैठते है । सच-झूठ का कोई मायने नहीं रहता है । यह एक ऐसा डरावना सा दृश्य होता है जिसकी पर्त दर पर्त खोज करने पर भी किसी को कुछ विशेष हाथ नहीं लगेगा । जयललिता की अम्मा किचन से लेकर कई चीज़ों को ख़ैरात में बाँटने की लोकप्रिय योजनाएँ आज के भारत की राजनीति में अब विशेष बात नहीं रह गई है । लेकिन जयललिता की तरह का एक दैवी-भाव उत्पन्न कर पाना बिल्कुल विरल है । तमिलनाडु की द्रमुक राजनीति की गहरी नास्तिकतावादी और सवर्ण-विरोधी राजनीति के एक अंश के शीर्ष पर एक आस्थावादी और ब्राह्मण राजनेता का ऐसा वर्चस्व साधारण जल्पना-कल्पना के बाहर की चीज लगती है । लेकिन जयललिता ने अपना वैसा ही एक अनोखा दैव-वलय सफलता के साथ क़ायम कर रखा था ।
आज उनके न रहने से तमिलनाडु की राजनीति में जिस शून्य की पैदाईश हुई है, वह आगे कैसे- कैसे राजनीतिक विकल्पों को जन्म देगा, कहना मुश्किल है । लेकिन यह तय है कि दूसरा जयललिता बनना आसान नहीं होगा । जयललिता की मृत्यु को तमिलनाडु की राजनीति के रंगमंच पर नाटक के एक अजीबोग़रीब रहस्यमय दृश्य का पटाक्षेप कहा जाए तो शायद ग़लत नहीं होगा ।
हम एक साहसी, रहस्यमय और साधारण लोगों को मोह लेने वाली असाधारण नेता, जयललिता को अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि देते है ।
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