सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

अमेरिकी वित्तीय पूंजीपतियों की सलाह पर मोदी जी ने नोटबंदी का अपराध किया था ;

अब मोदी बतायें उनके साथ क्या सलूक किया जाए !
-अरुण माहेश्वरी



भारत में नोटबंदी के बारे में जो तमाम तथ्य सामने आ रहे हैं, उनसे पता चलता है कि मोदी जी को यह घातक कदम उठाने की सलाह सीधे अमेरिका से दी गई थी । इन तथ्यों के बाद यह प्रमाणित करने की ज़रूरत नहीं है कि मोदी जी ने भारत को दुनिया की वित्तीय पूँजी के आगे के रास्ते की खोज के लिये बली का बकरा बनाया है । ग्लोबल रिसर्च के 3 जनवरी के अंक में नौरबर्ट हेरिंग का का एक लंबा शोधपूर्ण लेख छपा है - A Well-Kept Open Secret: Washington Is Behind India’s Brutal Demonetization Project ।

इस लेख में कहा गया है कि यद्यपि इस तथ्य पर पड़ा पर्दा काफी झीना है, फिर भी आश्चर्यजनक रूप से इस सच की अभी कोई चर्चा नहीं कर रहा है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार USAID ने नवंबर महीने में भारत के लोगों पर किये गये इस हमले की तकरीबन एक महीना पहले ही Catalyst नामक एक संस्था की स्थापना की थी जिसे कहा गया था ‘‘Catalyst : Inclusive cashless Payment Partnership” । इसका उद्देश्य बताया गया था - भारत में कैशलेस भुगतान की दिशा में एक लंबी छलांग लगाना (a quantum leap in cashless payment in India) के लिये। 14 अक्तूबर 2016 के एक संवाददाता सम्मेलन में इसे USAID और भारत के वित्त मंत्रालय की साझेदारी का एक अगला चरण बताया गया था ताकि सार्विक वित्तीय भागीदारी को सुगम बनाया जा सके। हेरिंग के लेख में कहा गया है कि USAID के वेबसाइट से रहस्यमय ढंग से अभी इस प्रेस बयान को हटा लिया गया है। 8 नवंबर के मोदी के नोटबंदी के फैसले से पता चलता है कि वित्तमंत्रालय और USAID के इस साझा उपक्रम Catalyst का असली मतलब क्या था।

इस विषय की पूरी कहानी को यदि जानना हो तो कोई भी इस लेख के लिंक में जाकर इस पढ़ सकता है, जिसे हम यहां दे रहे हैं।

http://www.globalresearch.ca/a-well-kept-open-secret-washington-is-behind-indias-brutal-demonetization-project/5566167

भारत में नोटबंदी पूँजीपतियों द्वारा देश के प्रत्येक नागरिक की जमा संपत्ति पर डाका डालने का एक बड़ा प्रयोग रहा है । अब यह बात आईने की तरह साफ है।

विश्व पूँजीवाद का संकट 2008 में चरम रूप में सामने आया था जब मालों के उत्पादन की पूंजीवादी प्रक्रिया के साथ ही वित्तीय उत्पादों से मुनाफ़ा बंटोरने की संभावनाएँ संकट में पड़ गई थी । यह वित्तीय पूँजी के बंद गली के अंतिम मुहाने तक पहुँच जाने की तरह का संकट था । इंटरनेट के नये युग में अमेरिकी शोधकर्ताओं ने पूँजीपतियों की एक नई पौध को जरूर जन्म दिया है, लेकिन इससे वहाँ की जमा वित्तीय पूँजी के संकट का उन्मोचन नहीं हुआ है ।

वित्तीय पूँजी किस प्रकार सारी दुनिया में सामाजिक ग़ैर-बराबरी का एक प्रमुख स्रोत है, इसे थामस पिकेटी के इस एक आकलन से ही समझा जा सकता है । उन्होंने बताया है कि आगामी बीस साल में दुनिया के पाँच सौ बड़े पूँजीपति अपनी विरासत के तौर पर जितनी संपत्ति अपने वारिसों को सौंपेंगे, वह भारत के 130 करोड़ लोगों के सकल घरेलू उत्पाद के बराबर होगी ।

ऐसे में, वित्तीय पूँजीवाद को पूँजीवादी उत्पादन प्रक्रिया से पैदा होने वाले अतिरिक्त मूल्य के आत्मसातीकरण से कभी भी पूरी तरह से नहीं समझा जा सकता है । अब इसकी नज़र सारी दुनिया के आम लोगों के पास जमा धन-संपत्ति को हड़प कर अपना विस्तार करने की ओर है । आज नाना प्रकार की आकर्षक निवेश योजनाओं के नाम पर लोगों से उनके जमा धन, घर में पड़े सोने और दूसरी सम्पत्तियों को बेच कर नगदी में बदल कर ज्यादा लाभ करने के प्रलोभनों से यही काम साधा जा रहा है ।

मोदी जी ने नोटबंदी के चंद दिनों बाद विदेश से लौट कर गोवा में आंसू ढुलकाते हुए एक सभा में भारत के लोगों से जब सिर्फ पचास दिनों की मोहलत मांगी थी, तब यह भी कहा था कि यदि पचास दिनों के बाद आपको मेरे इस कदम के पीछे कोई दुर्भावना दिखाई दें तो आप मेरे साथ जैसा मन में आए, वैसा सलूक कर सकते हैं। आज यह साफ हो रहा है कि मोदी जी ने यह कदम अमेरिका के पूंजीपतियों के कहने पर किया था। और ये वे लोग है, जिनके बारे में हमने शुरू में ही कहा कि जो दुनिया के तमाम देशों के आम लोगों के पास जमा धन-संपत्ति पर डाका डाल कर अपनी संपदा को बढ़ाने की फिराक में हैं।

अब मोदी जी से यह सवाल किया जाना चाहिए कि इन तमाम तथ्यों के सामने आने, दुनिया के लुटेरे पूंजीपतियों के साथ मिल कर भारत के आम लोगों की संपदा पर डाका डालने की योजना में उनके शामिल होने के इन तथ्यों के सामने आने के बाद उनके साथ क्या सलूक किया जाना चाहिए ? क्या उनके साथ वही सलूक नहीं होना चाहिए जो देश के सबसे बड़े दुश्मनों के साथ किया जा सकता है ?



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