मंगलवार, 11 जुलाई 2017

कार्ल मार्क्स : जिसके पास अपनी एक किताब है (19)


-अरुण माहेश्वरी

सेविनी-गैन्स विवाद

राजनीति के व्यक्ति न होने पर भी सेविनी कानून के पंडित होने के नाते 1840 के दशक में प्रशिया के न्याय मंत्री हो गये । वे क्रांति के पहले के रोमन कानून में लौट जाने के हिमायती थे । उसमें संपत्ति और विरासत के कानून में कोई स्थिरता नहीं थी । हर जगह की परिपाटी के अनुसार उसमें अंतहीन स्थानीय विविधता को एक प्रकार की स्वीकृति थी । इसके अलावा, जैसा कि पहले ही रोमन कानून में कब्जा/अधिकार के कानून के संदर्भ बताया जा चुका है, इसमें मामला कब्जे के आधार पर तय होने के कारण सामंती ताकतें अपनी शक्ति के बल पर चला करती थी। इसके विपरीत राइनलैंड में नेपोलियन संहिता के लागू होने से समानता के आधार पर मामले चला करते थे।

इसी पृष्ठभूमि में गैन्स ने प्राकृतिक कानून और वास्तविक कानून को आपस में गड्ड-मड्ड करने की वजह से ऐतिहासिक स्कूल का आलोचना की । उनकी साफ राय थी कि कब्जे की वास्तविकता का कोई कानूनी मायने नहीं है । वकालत में जिसे अनाधिकार (Torts) कहते है, उसमें पहले से एक कानूनी अधिकार को मान कर चला जाता है, जिसका गलत ढंग से उलंघन किये जाने से ही कोई मामला अदालत का विषय बन सकता है ।
गैन्स का सेविनी पर यह आरोप था कि उसका ऐतिहासिक स्कूल कानून में एक विश्व भावना या विश्व इतिहास का रचनाशीलता और प्रगतिशीलता की अनदेखी करता है । इतिहास को एक विवेकशील प्रक्रिया के रूप में देखने के बजाय वह इसे सिर्फ ज्ञात घटनाओं की श्रृंखला के रूप में देखता हैं जबकि यही परंपरा में गुंथ कर जनता के जीवन और उसकी आत्मा, दोनों को व्यक्त करती है ।


इसी समझ के आधार पर गैन्स ने कहा कि वर्तमान अतीत के मातहत होता है । उन्होंने रोमन कानून के महत्व को एक अलग रूप में रखा । उन्होंने कहा कि इसका मूल्य इस बात में है कि इसने जस्टीनियन संहिता को लागू किया । जस्टीनियन संहिता 1, अर्थात बैजन्टाइन साम्राज्य के काल में तैयार की गई संहिता जिसे न्यायविदों की जस्टीनियन कमेटी ने अतीत के कानूनों को और महान रोमन न्यायविदों द्वारा दी गई रायों के सार-संक्षेप को शामिल करके तैयार किया था ।

इसके अलावा, उन्होंने रोमन कानून की सापेक्ष स्वायत्तता को भी उसके महत्व का एक कारण बताया था । रोमन कानून का लंबा इतिहास ही इस बात का साक्षी है कि कानूनी नियम कुछ हद तक राजनीतिक सत्ता से स्वतंत्र रह सकते हैं, और इस बात से ही पता चलता है कि इनकी पृष्ठभूमि में एक प्रकार के प्राकृतिक कानून की हमेशा उपस्थिति रहती है । (देखें -  Michael H. Hoffeimer, Eduard Gans and the Hege;ian Philosophy of Law, Academic Publishers, 1995, page 19-21)



गैन्स ने कांटवादियों और ऐतिहासिक स्कूल से अलग दर्शनशास्त्रीय अवधारणा और ऐतिहासिक तथ्यों के बीच मध्यस्थता की द्वंद्वात्मक प्रक्रिया की बात कही और इस प्रकार कानून के एक ऐतिहासिक और विवेकसंगत विकास पर बल दिया ।

मार्क्स ने 1836-37 के दौरान गैन्स के फौजदारी कानून के बारे में लेक्चर्स को सुना था । 1838 में प्रशिया के दीवानी कानून की उनकी कक्षाओं में भी वे शामिल हुए थे । पिता को अपने पत्र में गैन्स की बातों को ही वे रख रहे थे जब वे लिखते हैं - “वस्तु का तार्किक चरित्र खुद के अंतर्विरोधों के साथ विकसित होना चाहिए और खुद को संहत करना चाहिए ।“

(क्रमशः)


1. Code of Justinian, Latin Codex Justinianus, formally Corpus Juris Civilis (“Body of Civil Law”), the collections of laws and legal interpretations developed under the sponsorship of the Byzantine emperor Justinian I from AD 529 to 565. Strictly speaking, the works did not constitute a new legal code. Rather, Justinian’s committees of jurists provided basically two reference works containing collections of past laws and extracts of the opinions of the great Roman jurists. Also included were an elementary outline of the law and a collection of Justinian’s own new laws.

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