-अरुण माहेश्वरी
ब्रिटेन में सामरिक रणनीति के प्रसिद्ध लेखक लारेंस फ़्रीडमैन की हाल में प्रकाशित पुस्तक ‘द फ्यूचर आफ वार्स’ (लड़ाइयों का भविष्य) की एक समीक्षा पढ़ रहा था ।
युद्ध के भविष्य के बारे में इस सामरिक रणनीति के शोधकर्ता ने पाया है कि किसी भी युद्ध का अंतिम परिणाम क्या होने वाला है इस पर पहले से तय किया गया विचार हमेशा ग़लत, बल्कि बहुत ही नुक़सानदेह साबित होता है । दुनिया में आज तक कोई भी लड़ाई उसमें शामिल होने वाली शक्तियों की अपनी योजना और अपने विचार के अनुसार ख़त्म नहीं हुई है । खास तौर पर एक धक्के में युद्ध की सफलता की योजना बनाने वालों को तो हमेशा मुँह की खानी पड़ी है । एक बार शुरू हुआ युद्ध हमेशा कल्पित समय से लंबा खिंचता जाता है और फिर उसके परिणाम उसमें शामिल ताकतों की मर्ज़ी पर निर्भर नहीं करते । शत्रु पर सर्जिकल स्ट्राइक से उसे उसे मात देने की बात तो सिवाय कपोल-कल्पना के और कुछ नहीं है ।
लारेंस ने इसमें युद्धों पर तकनीकी परिवर्तनों के प्रभाव, साइबर हमलों, कृत्रिम बुद्धि और मनुष्य-विहीन हथियारों के संदर्भ में भी विचार किया है । न वाटरलू की लड़ाई में सदियों पुरानी जाँची-परखी युनानी और रोमन युद्ध नीति नेपोलियन के काम आई, न द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी की रूस में प्रारंभिक सफलताओं और पर्ल हार्बर में जापान की सफलता ही टिक पाई । मित्र शक्तियों के सामने उनकी पराजय हुई ।
लारेंस की साफ राय है कि आपने सोच लिया और युद्ध में हूबहू उसी प्रकार जीत गये -इससे अधिक मूर्खतापूर्ण विचार दूसरा कुछ नहीं हो सकता है । यह बात आज के युद्ध के तौर-तरीक़ों और नई तकनीक के प्रयोग से हुई ‘सामरिक रणनीति में क्रांति’ की थोथी बातों पर भी समान रूप से लागू होती है ।
हाल के युद्धों के भी सभी अनुभवों के आधार पर सर लारेंस का कहना है युद्ध के भविष्य के बारे में किसी भी प्रकार की भविष्यवाणी विरले ही सही साबित होती है । इसीलिये नीति-नियामकों के लिये उनकी यह साफ चेतावनी है कि युद्ध के उन दलालों के प्रति वे हमेशा सावधानी बरते जो “शत्रु की शक्ति और संसाधनों को कमतर ऑंकते हुए बिल्कुल आसानी से तेजी के साथ युद्ध में विजयी हो जाने’” की बड़ी-बड़ी बातें किया करते हैं । समीक्षा में कहा गया है कि “जो भी इस बात को नहीं मानते उन्हें इस किताब को जरूर पढ़ना चाहिए । “
इस समीक्षा को पढ़ते हुए बार-बार हमें मोदी सरकार की कश्मीर की समस्या के सैनिक समाधान की रणनीति और हमारे वर्तमान सेनाध्यक्ष की बातों और टीवी चैनलों पर गरजने वाली पूर्व सैनिक अधिकारियों की मूँछों की याद आ रही थी । मिनटों में पाकिस्तान के ऐटमी ठिकानों का सफ़ाया कर देने वाली सेना के अधिकारी की हुंकार भी सुनाई दे रही थी ।
किसी भी समस्या के सैनिक समाधान का अर्थ होता है युद्ध के जरिये समाधान । जो तमाम मूर्ख कश्मीर की समस्या के ऐसे समाधान की कल्पना कर रहे हैं, वे भारत को कौन से दलदल में फँसा देने का काम कर रहे हैं, शायद उन्हें भी नहीं पता है । हाल में गृहमंत्री ने एक व्यक्ति को नाम के वास्ते सभी पक्षों से बातचीत के जरिये सुलह का रास्ता ढूँढने के लिये नियुक्त किया है । लेकिन उनकी कोशिशों के शुरू होने के पहले ही रणभेरियां बजाने वाले सेना के अधिकारी इस प्रक्रिया के प्रारंभ के साथ ही इसके अंत की कोशिश में जुट गये दिखाई देते हैं ।
कश्मीर एक ऐसा प्रश्न है जिसमें किसी भी प्रकार के औचक सैनिक हमले से तो जीत की कोई संभावना ही नहीं है । और, किसी भी लंबे खिंच जाने वाले युद्ध का परिणाम क्या होता है, इसके बारे में किसी भी भविष्यवाणी का रत्ती भर का दाम नहीं है । वियतनाम और हाल में इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में भी अमेरिका के अनुभव से यदि कोई सीख नहीं ले सकता है तो यह हमारा दुर्भाग्य ही कहलायेगा ।
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