2019 का जंग शुरू
कांग्रेस ने अंतत: अपनी कार्य समिति की बैठक में आज की भारतीय जनता पार्टी की बिल्कुल सही सिनाख्त कर ली है - यह मोदी पार्टी है ; नाजी पार्टी जो हिटलर की पार्टी बन गई थी ।। मॉब लिंचिंग, गुप्त हत्या, हत्याओं की श्रृंखला और जन-संहार इसकी राजनीति के, सर्वग्रासी सत्ता और पूर्ण वर्चस्व के इसके लक्ष्य के क्रियात्मक रूप है ।
आरएसएस के लोगों के साथ अपने दैनंदिन निजी अनुभवों के आधार पर कोई भी जांच सकता है कि संघ से जुड़ा हर व्यक्ति अनिवार्य तौर पर हिटलर का समर्थक होता है । हिटलर के प्रति श्रद्धा के अनुपात से संघ के सिद्धांतों के प्रति उसकी निष्ठा की गहराई को मापा जा सकता है । अपनी इसी सिनाख्त के आधार पर कांग्रेस ने यह जरूरी निर्णय लिया है कि 2019 के चुनाव में उसे अपने किसी तथाकथित दूरगामी हितों की बिना परवाह किये देश के सभी स्तर के अलग-अलग मतावलंबी लोगों को भी एकजुट करके भारत में मोदी पार्टी को पराजित करना है । कांग्रेस ने इसे भारत का दूसरा स्वतंत्रता संघर्ष कहा है । हम इसे भारत में हिटलरशाही के खिलाफ जनतंत्र मात्र की रक्षा की लड़ाई कहना चाहेंगे क्योंकि जनतंत्र अगर रहेगा तो सत्ता पर राजनीति के सभी अलग-अलग प्रतिद्वंद्वी दावेदारों का भी अस्तित्व रहेगा । अन्यथा लिंचिंग, हत्याओं की श्रृंखला, जनसंहारों की हिटलरी राजनीति का प्रत्येक संवेदनशील नागरिक तक को शिकार होना होगा । राजेश जोशी की कविता है - ‘जो अपराधी नहीं होगा, मारा जायेगा ।’
भारत की जनता ने अपने आजादी के बाद के राजनीतिक जीवन में जनतंत्र मात्र की रक्षा की एक ऐसी, भले छोटी ही क्यों न हो, महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी है । इंदिरा गांधी के आंतरिक आपातकाल के खिलाफ लड़ाई - जब इंदिरा गांधी में सर्वग्रासी सत्ता का रुझान दिखाई दिया था । और उस समय इंदिरा गांधी को पराजित करके पटरी पर लाने की लड़ाई में किसी ने भी लड़ाई में उतरे लोगों की अपनी-अपनी पहचानों की एक बार के लिये परवाह नहीं की थी ।
चूंकि सन् ‘75 से ‘77 के उस अनुभव के साथ कांग्रेस दल का नाम जुड़ा हुआ है, संभवत: इसीलिये अभी कांग्रेस कार्यसमिति आने वाले दिनों की इस एक और बेहद चुनौती भरी, जनतंत्र की रक्षा की कठिन लड़ाई को ‘दूसरा स्वतंत्रता आंदोलन’ बता रही है । लेकिन, सारत:, यहां कहना पड़ता है -‘नाम में क्या रखा है !’ मूल बात, जो कांग्रेस कार्यसमिति ने बिल्कुल सही कही है, वह यह है कि 2019 हरेक भारतवासी के लिये भारत मात्र की अवधारणा की रक्षा की लड़ाई है । इसमें शामिल होने वाले का अपना कोई रंग नहीं होगा, कोई जात, कोई पहचान और कोई विचारधारा नहीं होगी - वह सिर्फ भारत में जनतंत्र की रक्षा का सेनानी होगा ।
आरएसएस के लोग हिटलर की प्रशंसा में अक्सर कहते पाये जायेंगे कि वह तो एक भूल कर बैठा, रूस के जाड़े में फंस गया, अन्यथा वह पूरी दुनिया का एकछत्र राजा ही होता । उन्हें हिटलर की हत्यारी और मानवता-विरोधी राजनीति से रत्ती भर भी परहेज नहीं है । उसी का एक प्रतिरूप पड़ौस के तालिबानी थे । हिटलर का जो हश्र हुआ, तालिबानियों को जिस प्रकार पहाड़ी गुफाओं के बिलों से निकाल कर मारा गया, इसे हम जानते हैं । और, हिटलर-मुसोलिनी हो या तालिबानी, इन्होंने अपने वहशीपन में अपने-अपने देशों को किस प्रकार पूरी तरह से खंडहर में तब्दील करके छोड़ा, इसे भी हम जानते हैं । इसीलिये, हिटलर के अनुयायियों के शासन के आगे और बने रहने में कांग्रेस कार्यसमिति ने बिल्कुल सही भारत मात्र के ( Idea of India) के अस्तित्व पर खतरे को पहचाना है ।
20 जुलाई को लोक सभा में मोदी पार्टी की सरकार के खिलाफ\ तेलुगु देशम पार्टी के अविश्वास प्रस्ताव पर बहस में भी 2019 के सारे मुद्दे सामने आएं । बहस में राहुल गांधी ने अपने भाषण के प्रारंभ में ही यह सवाल उठाया कि क्या मोदी सरकार की किसी भी बात का कोई मूल्य रह गया है ? मोदी ने किनके इशारों पर नोटबंदी की ? क्यों जीएसटी देश के सामान्य व्यापारियों के जी का जंजाल बन गया ?
राहुल ने साफ कहा कि भारत का हर आदमी जानता है, मोदी किनके हित में काम कर रहे हैं । सबने उन कंपनियों के विज्ञापन देखे हैं, जिन्होने नोटबंदी के बाद मोदी का स्वागत किया था । अंबानी के जियो के विज्ञापन में मोदी होते हैं। उन्होंने रफाल लड़ाकू विमान की खरीद में अनिल इंबानी को सीधे पैंतालीस हजार करोड़ का लाभ पहुंचाने का आरोप लगाते हुए रक्षा मंत्री निर्मला सीथारमण को सदन में और बाहर भी लगातार असत्य बोलने के लिये बींधा ।
राहुल गांधी ने अमित साह के पुत्र का जब नाम लिया, तो सारे भाजपाई सांसद जिस प्रकार खड़े हो गये उससे तो लगा कि आगे संसद में माल्या, नीरव मोदी जैसों का भी नामोच्चार निषिद्ध हो जायेगा । राहुल ने कहा - प्रधानमंत्री चौकीदार नहीं है, भागीदार है । इन्होंने भारत के सबसे बड़े पूंजीपतियों का अढ़ाई लाख करोड़ रुपया माफ किया, लेकिन किसान का मामूली कर्ज भी माफ नहीं करेंगे । आज इनके चेहरे पर घबड़ाहट है । ये मेरे से नजर से नजर नहीं मिला सकते हैं। राहुल ने पहले कहा था कि मेरे भाषण का वे पंद्रह मिनट भी सामना नहीं कर पायेंगे। 20 जुलाई को वास्तव में भी वही हुआ । स्पीकर सुमित्रा महाजन ने उनके भाषण और उसकी भाषा में काट-छांट की कोशिश की । वह चाहती थी कि राहुल अपने भाषण के प्रवाह को रोक कर बीच बीच में दूसरों को बोलने दें । पूरा शासक पक्ष आपे के बाहर हो गया था । एक बार तो उनके भाषण के बीच में ही सदन को स्थगित कर दिया गया । राहुल ने महिलाओं की असुरक्षा का सवाल उठाया और लिंचिंग की तरह के जघन्य कृत्यों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी को उनके प्रति मौन स्वीकृति कहा ।
राहुल ने जो सबसे बड़ी बात कही वह यह थी कि भारत का प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित साह हम सबसे दूसरी धातु के लोग हैं । ये सत्ता के बिना जी नहीं सकते । ये जानते है कि जिस दिन ये सत्ता खो देंगे, इनके खिलाफ ढेर सारी कार्रवाइयां शुरू हो जायेगी ।
राहुल के जवाब में इस दिन मोदी खिसिसानी बिल्ली नजर आ रहे थे । राहुल अपने भाषण के अंत में नफरत की राजनीति का एक प्रति-आख्यान रचते हुए मोदी से गले मिले थे । मोदी ने राहुल के उस आलींगन के प्रति खीझ उतारने में ही डेढ़ घंटा समय गंवा दिया । सारे अखबारों ने नोट किया कि मोदी क्या बोले, वह किसी को समझ में नहीं आया, वे राहुल की झप्पी के असर से मुक्ति में ही डूबे रह गये ।
बहरहाल, 20 जुलाई के बाद से ही 2019 की लड़ाई का बिगुल बज गया है । कांग्रेस कार्य समिति ने भी सभी विपक्षी दलों के सामने इस लड़ाई की दिशा बांध दी है । ।बाकी दल भी जल्द ही 2019 के बरक्स अपनी रणनीति को तय करने के लिये जल्द ही बैठकें करेंगे । तेलुगु देशम, शिव सेना और टीएमसी जैसे दलों ने मोदी के खिलाफ जनता की गोलबंदी का आह्वान करना शुरू कर दिया है ।
इतना साफ है कि 2019 के चुनाव में मोदी-आरएसएस के फासीवाद को परास्त करने के परिप्रेक्ष्य को भूल कर कोई भी चुनावी रणनीति बेकार है । जो भी पार्टी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मोदी-आरएसएस की मदद करेगी, वह वास्तव में अपनी आत्म-हत्या का नोट लिखेगी । मोदी का सत्ता पर लौटना जनतंत्र का अंत और सत्ता में भागीदारी के अन्य सभी दावेदारों का भी अंत होगा ।फासीवाद को परास्त करने से ही समाज में समानता, न्याय, स्वतंत्रता, भाईचारे और समाजवाद के लिये भी संघर्ष का रास्ता प्रशस्त होगा ।
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