शनिवार, 4 मई 2019

आज का चुनावी परिदृश्य और मोदी की आत्मलीनता


-अरुण माहेश्वरी


दिन रात खुद ही मोदी मोदी रटने वाले आत्म-मुग्ध मोदी इतने आत्मलीन हो गये हैं कि उनमें बाकी दुनिया का अवबोध ही लुप्त हो गया है । खुद को ही निरखना आदमी के लिये मौत है । मृत के लिये ही खुद के बाहर कुछ नहीं होता । यही आत्मलीनता (autism) की बीमारी है ।आत्म-मुग्ध मोदी से देश और जनता की भलाई की कोई उम्मीद मृत व्यक्ति से किसी कर्त्तव्य के पालन की उम्मीद करने की तरह की भूल होगी । व्यतीत किसी को कितना भी अच्छा क्यों न लगे,जो यथार्थ में है ही नहीं, किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकता ।

मोदी की दशा यह है कि अभी एक सभा में उन्होंने कहा कि ‘हम किसी को छेड़ते नहीं और अगर हमें कोई छेड़ता है तो उसे छोड़ते नहीं’ और यह कहते हुए उन्होंने बंदूक़ का ट्रिगर दबाने की मुद्रा दिखाई । उनका यह आत्म-प्रदर्शन अपने में पूरी तरह से खो चुके व्यक्ति के मूलभूत चरित्र का अनायास ही प्रगटीकरण कहा जा सकता है ।

सब जानते हैं कि पिछले चुनाव के बाद से मोदी की साख लगातार गिरी है । उन्हें वोट न देने वाले 69 फीसदी लोगों में अगर न्यूनतम एकता भी क़ायम होती है तो क्या होगा ? मोदी कंपनी का पूरा सफ़ाया होगा ।

आज की स्थिति यह है कि मोदी को तमाम धाँधलियों की अनुमति देने के बावजूद यदि चुनाव आयोग किसी भी चरण में, चुनाव परिणामों के बाद भी, इस पूरे चुनाव को ही खारिज करने की हिम्मत नहीं रखता है तो वह मोदी के लिये मददगार साबित नहीं हो सकता है । चुनाव आयोग की मोदी को क्लीन चिट मोदी के द्वारा मोदी को क्लीन चिट से ज़्यादा अहमियत नहीं रखती है ।

भाजपा के नेता अब शिकायत कर रहे हैं कि राहुल गांधी मोदी और शाह के खिलाफ अपमानजनक प्रचार कर रहे हैं । कल तक तो मोदी कहते थे कि वे कीचड़ में कमल खिलाने वाले हैं । उनके खिलाफ जो भी कहा जायेगा, वे उसी से लाभ उठा लेंगे । इसी चक्कर में उन्होंने 'चौकीदार चोर है' कहे जाने पर अपनी पूरी पार्टी को ही चौकीदारों की पार्टी बना दिया ।

लेकिन अब ! अब मतदान के हर बीतते चरण के साथ क्रमशः यह साफ होता जा रहा है कि मोदी ने अपने सब लोगों को चौकीदार बना कर 'चौकीदार चोर है' के नारे को देश के कोने-कोने में और ज्यादा गूंजा दिया है ।

और, इसी नारे की गूंज-अनुगूंज से मोदी पार्टी के लोगों के होश उड़ने लगे हैं । 'चोर चौकीदारों' के दल के नेता चुनाव आयोग से राहुल के प्रचार के खिलाफ शिकायत कर रहे हैं ।

जिन 69 प्रतिशत लोगों ने 2014 में भी मोदी को मत नहीं दिया था, वे आज उनके विरोध में मत देने के लिये नि:शंक हैं । जिन्होंने तब मोदी को मत दिया था उनके भी एक बड़े हिस्से में मोदी का विकल्प खोजने की इच्छा जग गई है ।

‘चौकीदार चोर है’ के नारे को मोदी सहित सारे चौकीदार गाँव-गाँव, गली-गली अतिरिक्त गूंज दे रहे हैं । इसके बाद इस चुनाव के परिणाम के बारे में कोई भी आसानी से सटीक अनुमान लगा सकता है । फिर भी जिनमें उलझन बनी हुई है, यह उनकी निजी समस्या है । चुनाव मैदान के संकेत दिन के उजाले की तरह साफ़ है ।

सारे मोदी चैनल राहुल की नागरिकता की तरह के विषयों पर बहस में मुब्तिला है । जिसके पिता, दादी और परदादा इस देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं, भारत में जन्मे विपक्ष के उस नेता की नागरिकता पर सवाल सिर्फ पागलखाने के वाशिंदें ही उठा सकते हैं और वे ही ऐसे विषय पर चैनलों पर बहस चला सकते हैं ।

इस चुनाव में विपक्ष के दलों की पूर्ण एकता की अनुपस्थिति बहुतों को शंकित किये हुए हैं । दरअसल, चुनाव में जनता पर भरोसा न करना किसी भी दल की पहली पराजय होती है । चुनाव की प्रक्रिया के बीच से जनता को जगाने के लिये ही मूलत: गठबंधनों का प्रयोग होता है । सब विपक्षी दलों ने अपने-अपने तई यह काम किया है । इसीलिये परिणाम ऐसे होंगे जो सामान्य चुनावी गणित के अनुमानों को ख़ारिज करेंगे । जब तक कोई जुनूनी और पूरी तरह से विक्षिप्त नहीं होगा, पूरी तरह से मोदी भक्त नहीं होगा । जनता ही अब मोदी को यथार्थ की धरती पर उतारेगी ।

मतदान के चौथे राउंड के बाद चुनाव परिणामों के सटीक अनुमान का एक सूत्र :

हिंदी भाषी क्षेत्रों, गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र में विगत उपचुनावों और विधानसभाओं के नतीजों के आधार पर इस बार के चुनाव परिणामों के अनुमान का एक सबसे सटीक सूत्र - 2014 में मोदी को मिले मतों में सभी सीटों पर 12 प्रतिशत की कटौती कर दीजिए, आपको इस बार की जीत-हार का एक पक्का हिसाब मिल जायेगा ।

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