-अरुण माहेश्वरी
जिस सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक नोटबंदी पर चुप्पी साधे रखी, जीएसटी के आधे-अधूरेपन पर कुछ भी कहने से गुरेज़ किया, खुद से राममंदिर के मसले पर संविधान की मूलभूत भावना के विरुद्ध राय दी और धारा 370 को हटाने के घनघोर असंवैधानिक क़दम पर मामले कोदबा कर रख दिया, सीएए और एनआरसी के सवाल पर उसकी नग्न दमनमूलक कार्रवाइयों के बाद उस सुप्रीम कोर्ट से कृषि क़ानूनों कीतरह के पूँजीपतियों के स्वार्थों के ख़िलाफ़ व्यापक जनता के हितों से जुड़े किसी भी सवाल पर न्याय की उम्मीद करना शिखंडी को युद्धकी मर्यादा का पालन करने का सम्मान देने जैसा ही होगा।
मोदी ने आज यदि किसानों का विश्वास खो दिया है तो सुप्रीम कोर्ट ने देश के न्यायप्रिय लोगों का विश्वास किसी से कम नहीं खोया है ।इस मसले के समाधान के लिए उसके द्वारा बनाई गई कोई भी कमेटी सिर्फ एक महा धोखा होगी ।
सुप्रीम कोर्ट ने आज की सुनवाई में सोलिसिटर जैनरल को कहा है कि वह ऐसे किसान संगठनों का उसे नाम बताए जो वास्तव मेंसमझौता करने के इच्छुक हैं ।ऐसे तथाकथित समझौतावादी संगठनों की सुप्रीम कोर्ट की तलाश उसके इन्हीं संदिग्ध इरादों के का एकपूर्व संकेत की तरह है । इसी से पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट के ज़ेहन में क्या चल रहा है । सुप्रीम कोर्ट के विचार का विषय होगा समझौता, न कि इन काले क़ानूनों का अंत ।
जाहिर है कि भारत के किसानों के न्याय का मसला लड़ाई के मैदान के अलावा और कहीं तय नहीं होगा । लड़ाई के मैदान में हमेशालक्ष्य के प्रति संशयहीन दृढ़ संकल्प चाहिए । इसमें पीछे हटने या कोई भी कमजोरी दिखाने का मतलब है, आततायी ताक़तों के इससत्ता-नौकरशाही और न्यायपालिका के समूह के द्वारा पूरी तरह से कुचल दिया जाना ।
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