-अरुण माहेश्वरी
आज दिलीप कुमार नहीं रहे ।
उनका न रहना हमारे सिनेमा के किसी युग का अंत नहीं, बल्कि किसी विध्वंस सेइसकी गंगोत्री के अपनी जगह से हट जाना है ।
दिलीप कुमार से शुरू हुई धारा हमारे सिनेमा मात्र के सनातन समय की तरहआगे-पीछे के पूरे सिनेमा को एक सूत्र में पिरोती रहेगी ।
जब भी कहीं सिनेमा में अभिनय और संवादों के नाटकीय तत्त्वों से उसके बनने-बिगड़ने के विषय की चर्चा होगी, दिलीप कुमार हमेशा उस चर्चा के केंद्र में एकमापदंड की तरह मौजूद रहेंगे ।
सिनेमा आधुनिक जीवन का एक प्रमुख उपादान है, जिसकी छवियों से हम अपनेको सजाते-संवारते हैं, जिसके चरित्रों को हम अपने अंदर जीते हैं । तमामप्रतिकूलताओं के बीच भी साधारण आदमी के जीवन में नायकत्व के भावों कोबनाए रखने, उसे जीवन के प्रति उत्प्रेरित रखने में सिनेमा ने सारी दुनिया में जोभूमिका अदा की है, उसमें दिलीप कुमार की तरह के नायक-अभिनेता और उनकीपरिष्कृत संवाद-शैली को कभी कोई भुला नहीं सकता है ।
दिलीप अपनी फ़िल्मों में जितने साफ़-सुथरे और स्वच्छ नज़र आते थे, उनकावास्तविक जीवन भी उसी प्रकार का रहा। आज तमाम छुद्रताओं औरप्रताड़नाओं को सिनेमा के पर्दे और अपनी ज़िंदगी में भी जीने वाले अभिनेताओंके दौर में उनके सच को दिलीप कुमार की तरह के सफ्फाक व्यक्तित्व के संदर्भमें ही वास्तव में समझा जा सकता है । इस अर्थ में दिलीप कुमार के न रहने कोसिनेमा की एक ख़ास धारा का अवसान भी कहा जा सकता है ।
दिलीप कुमार की मृत्यु उनका अंत नहीं , बल्कि सिनेमा के जगत के ध्रुवतारे केरूप में उनका उदय कहलायेगा ।
दिलीप कुमार की फ़िल्मों के चरित्र और संवाद हमारे सांस्कृतिक जीवन काअभिन्न अंग बन चुके हैं । हम जानते हैं कि उनकी मृत्यु के इस मौक़े पर उन सबपर काफ़ी चर्चा होगी ।
उनका स्मरण हमारे सांस्कृतिक नवीकरण का हेतु बने, इसी भावना के साथ हमउन्हें अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके सभी परिजनों के प्रतिअपनी संवेदना प्रेषित करते हैं ।
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