शनिवार, 13 अगस्त 2022

लाल सिंह चड्ढा



कल लगभग अढ़ाई साल बाद सिनेमा हॉल में आमिर खान की ’लाल सिंह चड्ढा’ फ़िल्म देखी । फ़िल्म नहीं, रूपहले पर्दे पर प्रेम में पड़े एक चरित्र की अन्तर-यात्रा की कविता को देखा ।मज़हबी मलेरिया के आज के तांडव-काल में अपने में मगन आदमी के स्वच्छ दिल की कामनाओं की फंतासी को सुना । ‘रब हमारा शिवालों या मस्जिदों में नहीं, वह तो हमारे अन्तर में ही बसता है’ की कबीर वाणी के जीवन-संगीत को सुना । लाल सिंह की आत्मलीनता में जो गहरा इत्मिनान है, उसकी बेफ़िक्र दौड़ में तृप्ति का जो सुकून है, इस उपद्रवी समय का सचमुच यह भी एक प्रतिकार है । फ़िल्म अच्छी लगी ।

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