—अरुण माहेश्वरी
कल (25 सितंबर) हरियाणा के फतेहाबाद में देवीलाल जी के 109वें जन्मदिवस के ‘सम्मान दिवस समारोह’ के मंच पर विपक्ष की ताक़तों की एकता का अनूठा प्रदर्शन बताता है कि आने वाले दिनों में भारत में सांप्रदायिक फासीवाद के खिलाफ भारत की जनता के एकजुट संघर्ष का जो अंतिम रूप सामने आने वाला है, उसका दायरा किस हद तक व्यापक और गहरा हो सकता है ।
इस मंच पर नीतीश कुमार, शरद पवार, सीताराम येचुरी, तेजस्वी यादव के अलावा शिव सेना के अरविंद सामंत और अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल भी शामिल थे । और सबसे बड़ी बात यह थी कि जो कांग्रेस दल इस मंच पर उपस्थित नहीं था, वह अनुपस्थित रह कर भी यहाँ पूरी ताक़त के साथ मौजूद था । इस मंच के सब नेता इस बात पर एकमत थे कि विपक्ष के एकजुट संघर्ष के मंच में कांग्रेस और वामपंथियों की एक प्रमुख भूमिका होगी । इस बात की खुली ताईद की गई कि नीतीश आदि सोनिया गांधी के संपर्क में है । कांग्रेस के नए अध्यक्ष का चुनाव संपन्न हो जाने के बाद ही विपक्षी एकता की आगे की रणनीति की ठोस रूप-रेखा सामने आएगी ।
यही बात और भी कई ऐसे क्षेत्रीय दलों के बारे में भी कही जा सकती हैं, जो अपने-अपने राज्यों में सत्ता पर हैं । फासीवाद के प्रतिरोध के इस अखिल भारतीय प्रतिरोध मंच में वे आगे कैसे अपनी भूमिका अदा करेंगे, इसकी साझा रणनीति में उन सबका भी अपना योगदान होगा ।
कहना न होगा कि इस मंच के निर्माण का मुख्य आधार होगा - विभाजनकारी फासीवाद के खिलाफ एकजुट जनतांत्रिक भारत ।
नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता के इस मंच के राजनीतिक आधार को स्पष्ट करते हुए यही कहा कि बीजेपी अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए हमारे समाज में हिंदू-मुस्लिम विद्वेष पैदा कर रही है, लेकिन यथार्थ में हमारे समाज में ऐसा कोई विरोध है नहीं । इस विद्वेष का जो शोर सुनाई देता है वह चंद उपद्रवी तत्वों की कारस्तानी भर है ।
का. सीताराम येचुरी ने भी कहा कि बीजेपी को भारत को, उसके मूलभूत मूल्यबोध को नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है । वह जनता के एक हिस्से को दूसरे से नफ़रत करना सिखा कर अपना लाभ करना चाहते हैं । उनकी यह योजना पराजित होगी । शरद पवार ने किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए बीजेपी को परास्त करना ज़रूरी बताया, तो सुखबीर सिंह बादल ने देश के संघीय ढाँचे की रक्षा के लिए किसान-मज़दूर एकता की बात कही ।
हम सभी विपक्ष के दलों की अब तक की भूमिकाओं के इतिहास के कई नकारात्मक पहलुओं के साक्षी रहे हैं। इसके बावजूद फतेहाबाद से उठा व्यापकतम विपक्षी एकता का यह स्वर एक बिल्कुल भिन्न सच्चाई का द्योतक है । यह वही स्वर है, जो प्रगतिशील भारत के हृदय में हमेशा से रहा है और जो आज की नई चुनौती भरी परिस्थिति में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से पैदा हो रहे आलोड़न के बीच से मूर्त रूप में सुनाई पड़ रहा है । भारत एक नहीं, अनेक फूलों को मिला कर बना हुआ एक सुंदर गुलदस्ता है, भारत का यही मूलभूत सत्य इस नये स्वर की शक्ति का मूल स्रोत है।
राहुल की इस ऐतिहासिक यात्रा का मुख्य नारा है — वे तोड़ेंगे, हम जोड़ेंगे । फतेहाबाद के मंच पर विपक्ष की अनोखी एकता का दृश्य क्या इसी नारे का एक सामयिक राजनीतिक प्रतिफलन नहीं है ? जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ेगी, कर्नाटक में एक जन-ज्वार के रूप में प्रवेश करेगी, विपक्ष की एकता का मंच उसी अनुपात में और प्राणवान होता दिखाई देगा ।
विपक्ष की राजनीति के नाना स्तरों पर आज जो हो रहा है, वह सब एक राजनीतिक प्रक्रिया है, एक प्रगतिशील राजनीतिक चर्वणा । एकजुट भारत के स्थायी भाव के साथ जनतांत्रिक और धर्म-निरपेक्ष राजनीति के अनुभावों की चर्वणा । आरएसएस-मोदी-शाह के माफ़िया राज के खिलाफ विपक्ष की एकता की इसी चर्वणा का एक रूप स्वयं कांग्रेस दल के अंदर उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए चल रही चर्वणा के रूप में भी दिखाई दे रहा है । यह एक ध्रुव सत्य है कि आज कोई भी विपक्षी दल अपने अस्तित्व की रक्षा मात्र के लिए ही इस प्रकार की चर्वणा से अछूता नहीं रह सकता है । अपने आंतरिक संकटों से मुक्ति के लिए ही फासीवाद -विरोधी संघर्ष की राजनीतिक गंगा में डुबकी लगाने के लिए ही उसे अपने अंदर के बहुत सारे कलुष को उलीच कर उनसे मुक्त होना होगा । समय बतायेगा कि जो दल जितना जल्द नई राजनीति के इस सत्य को अपनायेगा, वह उतना ही अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखने में सक्षम होगा । अन्यथा उभर रहे एकजुट, जनतांत्रिक और स्वच्छ भारत की नई राजनीति में वह एक म्रियमाण शक्ति से अधिक कोई हैसियत नहीं रखेगा ।
हम जानते हैं कि यह वह समय है जब प्रचारतंत्र के सारे भोंपू फिर एक बार इस शोर से आसमान को सर पर उठायेंगे कि - ‘आयेगा तो मोदी ही’। चारों ओर आरएसएस के विराट रूप की शान में भजन-कीर्तन के व्यापक आयोजन शुरू हो गये हैं और आगे और होंगे । विपक्ष को तोड़-मरोड़ कर, कंगाल बना कर कुचल डालने के मोदी-शाह के गर्जन-तर्जन की माया के बेहद डरावने दृश्य रचे जायेंगे । और इन सबसे अनेक कमजोर दिल नेक लोगों की धुकधुकी बढ़ेगी, उनमें नई-नई आशंकाओं के बीज पड़ेंगे, उन्हें हिटलर की अपराजेयता के इतिहास-विरोधी डर का ताप भी सतायेगा ।
पर इन सबका एक ही उत्तर है —‘भारत जोड़ो यात्रा’ । अत्याचारों के खिलाफ नागरिकों के स्वातंत्र्य के सविनय अवज्ञा के भाव से प्रेरित एक ऐसी यात्रा जिसने कभी इसी ज़मीन पर दुनिया की सबसे प्रतापी साम्राज्यवादी शक्ति को घुटने टेकने के लिए मजबूर किया था । यह यात्रा कांग्रेस दल के नेतृत्व में चल रही यात्रा होने पर भी भारत के किसानों और मज़दूरों, बेरोज़गार नौजवानों और भारत के सबसे अधिक उत्पीड़ित अंश, स्त्रियों के उन सभी संघर्षों का ही ऐसा राजनीतिक मिलन-बिंदु है, जो अपने अंतर में एक नए भारत के उदय के परमार्थ से संचालित है । इस यात्रा के लक्ष्य में मोदी को पराजित करना तो जैसे एक निमित्त मात्र है । भारत की जनता की एकता ही इसका प्रमुख उपादान है । ‘मोदी तो हारेंगे ही’ ।
हम ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के समानांतर सांप्रदायिक फासीवाद के खिलाफ भारत के विपक्ष की व्यापकतम एकता के कांग्रेस, वाम और नीतीश आदि के फतेहाबाद प्रयत्नों के आगे और सुफल की अधीर प्रतीक्षा करेंगे ।
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