मंगलवार, 4 नवंबर 2025

सार्वभौमिक ठोस अपवाद (Universal Concrete Exceptions (UCE)


-अरुण माहेश्वरी 





हमने अपनी जापान यात्रा के वृत्तांत की अंतिम किश्त में अनायास ही ऐलान बाद्यू की पुस्तक Immanence of Truths में आई एक विशेष अवधारणा Universal Concrete Exception (UCE) का उल्लेख किया कि जो कुछ अनदेखा रह गया वह भी हमारे ज़ेहन में होने के कारण अदेखा नहीं कहलायेगा । हर सत्य एक सार्वभौम ठोस अपवाद की तरह खास परिस्थितियों से पैदा होकर भी सार्वभौमिक होता है । 


अनायास ही UCE के अपने इस  प्रयोग के बाद ही हमें यह ज़रूरी लगा कि बाद्यू की इस बहुआयामी गहन अवधारणा को दर्शनशास्त्रीय मीमांसा के स्तर पर व्याख्यायित करना उचित लगा । । 


दरअसल, ऐलेन बाद्यू की संपूर्ण दार्शनिक मीमांसा का प्रमुख लक्ष्य यह रहा है कि सत्य की अवधारणा को किसी भी पारलौकिक सत्ता (transcendence) से मुक्त किया जाए और उसे वस्तु मे अन्तर्निहित (immanent) रूप में, संसार के भीतर ही घटित होने वाली घटना के रूप में समझा जाए। 


सत्य किसी परमशिव या ब्रह्म की तरह की कोई ईश्वरप्रदत्त या पूर्वनिर्धारित वस्तु नहीं, बल्कि एक स्थानीयनिर्माण (local construction) है । वह हमेशा किसी विशेष भुवन (world) में एक घटना (event) के रूप में उत्पन्न होता है, पर उसका स्वरूप सार्वभौमिक (universal) और सनातन (eternal) होता है।


यहीं से उनके UCE अर्थात् सार्वभौमिक ठोस अपवादों का विचार जन्म लेता है। सत्य सामान्य नियम नहीं, अपवाद के रूप में आता है, ऐसा अपवाद जो सार्वभौमिकता को स्पर्श करता है । यह ऐसी ठोस सार्वभौमिकता जो विशेष घटना में मूर्त होती है।


इस प्रकार, UCE एक ऐसा अपवाद है जो किसी सार्वभौमिक सत्य का ठोस रूप धारण करता है। यह सार्वभौमिक है क्योंकि वह किसी विशेष व्यक्ति, वर्ग या संस्कृति से परे जाकर सभी के लिए सत्य के क्षेत्र को उद्घाटित करता है।


यह ठोस है क्योंकि यह अमूर्त नहीं, बल्कि किसी ठोस घटना, स्थिति या रचना में घटित होता है।


यह अपवाद है क्योंकि यह कोई दोहराव नहीं, यह सामान्य नियमों, प्रचलनों या विचार-व्यवस्थाओं से बाहर होता है । वह किसी भुवन में जो असंभव प्रतीत होता है उसकी ही सम्भावना को जन्म देता है। 


जैसा कि हम राजनीति के किसी भी सच्चे विद्यार्थी के लिए कहते हैं कि उसके लिए हर परिस्थिति एक नई परिस्थिति होती है । असंभव शब्द राजनीति के शब्दकोश में नहीं होता । उससे तात्पर्य इसी ‘सार्वभौमिक ठोस अपवाद’ की ओर इंगित करना ही होता है। 


बाद्यू गणित में कैंटर की transfinite set theory, राजनीति में फ्रांसीसी क्रांति, या कला में मलार्मे कीकविता, सब को UCE मानते हैं । ये अपने-अपने क्षेत्र की ऐसी सत्य-घटनाएं हैं जो अस्थायी नहीं, बल्कि सार्वभौमिक प्रभाव रखती हैं।


गाँधी का अहिंसक सत्याग्रह, एक समय में ब्रिटिश साम्राज्य के लिए एक 'अपवाद' था, लेकिन उसने स्वतंत्रता संग्राम का एक सार्वभौमिक हथियार बना दिया। इसी तरह, पिकासो की 'गर्निका' एक ठोस चित्र है जो युद्ध की विभीषिका का सार्वभौमिक प्रतीक बन गई।


दर्शन की पारंपरिक दुनिया में कान्ट के अनुसार सत्य या तो केवल एक प्रमातृक निर्णय के स्वरूप (subjective forms of judgment) होते हैं, अथवा किसी पारलौकिक सत्ता से संबद्ध  होते हैं । 


बाद्यू अपनी मीमांसा से इसी बात से इंकार करते हैं। उनके लिए सत्य न तो केवल प्रमाता की चेतना में सीमित है, न ही किसी पारलौकिक ईश्वर या परमसत्ता में स्थित। वह घटना के रूप में संसार के भीतर ही उत्पन्न होता है, पर उसका प्रभाव सार्वभौमिक होता है । अर्थात् वह ठोस अपवादों के रूप में सत्य के नए क्षितिज का उद्घाटन करता है।


इस प्रकार, बाद्यू का लक्ष्य दोमुखी  है । वे एक साथ सत्य संबंधी चिंतन में दो प्रकार की प्रवृत्तियों के विरुद्ध अपने को साधते हैं । 


पहली प्रवृत्ति धार्मिक तत्त्व मीमांसा (Onto-theological orientation)  की हैं जिसमें सत्य को ईश्वर या अद्वैत अनन्त (One-infinity) के अन्तर्गत देखा जाता है। लेकिन बाद्यू कैंटर की परंपरा में ‘multiple without one’ (अद्वैत-विहीन बहुलता) का सिद्धांत देते हैं जिसमें वास्तविकता हमेशा अनेकता के समुच्चय के रूप में होती है, उसका कोई एक सार या केंद्र नहीं होता ।


दूसरी प्रवृत्ति सापेक्षतावाद (Relativism) की है । इसमें अनेकता को इतना सापेक्ष बना दिया जाता है कि सत्य के किसी सार्वभौमिक अर्थ की गुंजाइश ही नहीं बचती । बाद्यू इस अति-सापेक्षवाद को तथाकथित ‘ज्ञान का लोकतंत्रीकरण’ (democratism of knowledge) कहते हैं । इसमें सब बराबर मान लिए जाने के कारण सब ही निरर्थक हो जाते हैं ।


बाद्यू की UCE की अवधारणा इन दोनों अतियों के बीच से एक अलग मार्ग तैयार करती है । वह बिना किसी एकत्ववादी ईश्वर के, और बिना किसी सापेक्षवादी निरर्थकता के, सत्य की सार्वभौमिकता को संसार के भीतरसे पुनः प्रतिष्ठित करता है।


जैसे लकानियन आब्जेक्ट पेतित ए प्रमाता की अन्तर्निहित लालसा का प्रतीक है, न कि उसके बाहर के किसी उद्दीपन का । 


बाद्यू के लिए UCE वह बिंदु है जहाँ असीम (infinite) और स्थानीय (finite) का संयोग होता है, जहाँ सत्य किसी भुवन में घटित होता है, पर वहाँ से भुवन की सीमाओं को पार कर जाता है।


इस प्रकार, सत्य हर घटना में अन्तर्निहित अपवाद की तरह होता है । यह किसी नियम का उल्लंघन नहीं, बल्कि नियम की पुनर्रचना का बिंदु है । यह कोई पारलौकिक आदेश नहीं, एक ऐसी घटना है जो स्वयं में सार्वभौमिकता की ठोस संभावना बन जाती है।

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