सुचित्रा सेन : एक खुबसूरत पहेली *
आज कोलकाता के अखबार सुचित्रा सेन की खबरों से भरे हुए हैं। पचीस साल
(1953-1978) के फिल्मी सफर के बाद पैतीस सालों के अज्ञातवास की कहानियों, जल्पनाओं-कल्पनाओं से भरे हुए हैं।
फिल्मी दुनिया के एक ऐसे जीवित जातीय प्रतीक का देहावसान, जिसने दशकों पहले ही महज एक स्मृति बिंब का रूप ले लिया था। मृत्यु भले 83 साल की उम्र में 2014 में हुई हो, लेकिन वास्तव में सुचित्रा सेन पैतीस साल पहले ही, अपने फिल्मी सफर के अंत के साथ इस दुनिया से विदा ले चुकी थी। सन् ‘78 के बाद के उनके जीवन के पैतीस साल दुनिया की नजरों से खुद को छिपाने, एक ‘स्टार’ की भाव-भंगिमाओं सहित चाक्षुस प्रतिमा को अक्षत सहेज कर रखने के पैंतीस साल रहे। पचीस साल की कीर्ति में कोई सेंध न लगने पाये, काल के रथ को अपने संदर्भ में रोक रखने के जतन के पैतीस साल।
आज के अखबारों में सुचित्रा सेन के फिल्मी कैरियर के बारे में, उनके साथ काम कर चुके अथवा उनके समय के अन्य फिल्मी कलाकारों के जो तमाम संस्मरण छपे हैं, उनसे एक ऐसे आत्म-केंद्रित, आत्म-मुग्धता की हद तक जाने वाले आत्ममान के उत्कट भाव से भरे हुए व्यक्तित्व का परिचय मिलता है जिसके प्रकाश-वलय में किसी दूसरे का कोई स्थान नहीं हो सकता था। बांग्ला फिल्मों में सुचित्रा-उत्तम की जोड़ी की तुलना हालिवुड के सोफिया लॉरेन-मार्छेलो मस्त्रयान्नी और एलिजाबेथ टेलर-रिचर्ड बर्टन की प्रसिद्ध जोडि़यों से की जाती है। इनको ध्यान में रखते हुए फिल्में लिखी जाती थी। इस जोड़ी में भी सुचित्रा नायिका नहीं, बल्कि नायक की हैसियत में, जो अकेले अपने बल पर फिल्म को खींच ले जाए, हुआ करती थी। सुचित्रा-उत्तम की जोड़ी की फिल्मों के पोस्टर पर सुचित्रा का नाम उत्तम के पहले होता था और सुचित्रा का मेहनताना भी उत्तम से ज्यादा।
सुचित्रा ने कभी सत्यजीत राय - ऋत्विक घटक - मृणाल सेन की प्रसिद्ध त्रयी में से किसी की फिल्म में काम नहीं किया, न तपन सिन्हा, तरुण मजुमदार के स्तर के निदेशकों के लिये ही। सत्यजीत राय ने बंकिमचंद्र के उपन्यास ‘देवी चौधुरानी’ पर फिल्म की एक योजना बनायी थी और उसमें वे सुचित्रा को उस भूमिका में लेना चाहते थे, लेकिन सुचित्रा के पास राय को देने के लिये डेट्स नहीं थी। और, राय ने भी सुचित्रा के बिना उस फिल्म को बनाना मुनासिब नहीं समझा।
सुचित्रा सेन ने बीच-बीच में हिंदी फिल्मों में भी काम किया, अविस्मरणीय भूमिकाएं अदा की। हिंदी के दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ी। लेकिन टालिवुड की एकछत्र महानायिका को बालिवुड का विशाल समंदर रास नहीं आता था। उस संसार में एक चमक दिखा कर खुद में लौट आना ही उन्हें पसंद था। उसने राजकपूर के प्रस्ताव को ठुकराया, मदर इंडिया की भूमिका भी अदा करने से इंकार कर दिया।
सन् ‘78 में सुचित्रा की फिल्म ‘प्रणय पाशा’ बाक्स आफिस पर बुरी तरह विफल हुई। बमुश्किल चार हफ्ते चल पायी। चेहरे पर उम्र की रेखाओं के उभरते अक्श खुद सुचित्रा की आंखों से छिप नहीं पाये। और वही क्षण था जब आत्माभिमानी सुचित्रा हमेशा के लिये अज्ञातवास में चली गयी ताकि फिल्मी भूमिकाओं से निर्मित अपनी चाक्षुस प्रतिमा को हमेशा के लिये अक्षुण्ण बनाये रख सके। जीवन के सच से समायोजन में असमर्थ सुचित्रा की भीति और चिंता ने अपने को सदा के लिये छिपाये रखने के हठ का रूप ले लिया। मृत्यु, सुचित्रा की इसी हठ-साधना की परम सिद्धि, जिसे वह पिछले 35 सालों से साध रही थी। एक जीवित शरीर के बावजूद अशरीरी हो जाने की सुचित्रा की इस विशेष साधना ने उनके व्यक्तित्व को और रहस्यमय, रोमांचक और आकर्षक बनाया। जिसे देखने के लिये लाखों निगाहे तरसती थी, वह था भी और नहीं भी था! बिल्कुल निकट के परिवार के गिने-चुने लोगों के अलावा सुचित्रा मिलती थी सिर्फ रामकृष्ण मिशन के उन संतों से जिनके बारे में उनका विश्वास था कि मनुष्य की दैहिक सत्ता का उनके लिये कोई मायने नहीं है।
सुचित्रा सेन की तुलना लोग हॉलिवुड की अभिनेत्री ग्रेटा गार्बों से करते है। ‘20-‘30 के जमाने में हॉलीवुड का एक असाधारण ग्लैमर और बाद में लगभग आधी सदी तक पूर्ण अज्ञातवास। लेकिन बांग्ला आभिजात्य इस तुलना को सुचित्रा का अपमान मानता है। सारत: इन दोनों अज्ञातवासों में कितनी ही समानता क्यों न हो, सुचित्रा के अति-मर्यादित व्यक्तित्व को गार्बो जैसी अनेक संपर्कों वाली स्त्री के समकक्ष कैसे रखा जा सकता है!
आज के टेलिग्राफ में फैशन डिजाइनर सव्यसाची मुखर्जी ने इसी आभिजात्य की भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा है कि उन्हें इस बात की खुशी है कि वे सुचित्रा से कभी नहीं मिले, क्योंकि ‘‘कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनकी कामना नहीं की जाती, वे दूर से ही पूजा करने के लिये होते हैं’’। लेकिन इसी अखबार में नाट्य निदेशक सुमन मुखर्जी का भी लेख है, जो सुचित्रा-उत्तम की जोड़ी को हर बंगाली की कामनाओं का मूर्त रूप बताते हैं। एक असाधारण फिल्मी स्टार के जीवन के उपरांत दीर्घ अज्ञातवास से निर्मित सुचित्रा के व्यक्तित्व के रहस्य ने ही उन्हें कामना का और साथ ही उपासना का भी विषय बनाया।
उनकी स्मृतियों के प्रति हमारी आंतरिक श्रद्धांजलि।
* अंग्रेजी दैनिक ‘टेलिग्राफ’ में सुचित्रा सेन के बारे में विशेष पृष्ठों का शीर्षक
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