इन दिनों ‘टाइम्स नाउ’ सहित दूसरे सभी चैनलों पर चलने वाली राजनीतिक बहसें चूस कर फेंके जा चुके गन्ने के भूसे से रस निकालने की किसी बुभुक्षु की बदहवासी जैसी लगती है। मोदी का गुणगान श्लील-अश्लील की हदों के पार चला गया है। वामपंथी एक सिरे से नदारद है। ‘आप’ वाले भी अब दिखाई नहीं देते।
स्टूडियों के इस दमघोंटू बासीपन से अलग एनडीटीवी में रवीश कुमार के ‘प्राइम टाइम’ जैसे कुछ कार्यक्रम जमीन से उठे होने के कारण कुछ आकर्षण बनाये हुए हैं। दूसरे चैनलों में तो स्टूडियो के बाहर की रिपोर्टिंग के पूरे समय को खरीद कर मोदी ने बाहर की ताजी हवा के आने की खिड़कियां भी बंद कर दी है।
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