शुक्रवार, 12 मई 2017

कार्ल मार्क्स : जिसके पास अपनी एक किताब है (9)

-अरुण माहेश्वरी


साहित्य के संस्कार

मार्क्स की हाई स्कूल के स्नातक (abitur) स्तर की शिक्षा ट्रायर के जिमनाजियम स्कूल में हुई। 1820 से 1835 तक 12 साल से 17 साल की उम्र तक मार्क्स ने यहां पढ़ाई की। यह स्कूल कैसा था, इसका एक छोटा सा चित्र 17 सितंबर 1878 में एंगेल्स को लिखे उनके एक पत्र में आए उल्लेख से मिलता है जिसमें वे रूसी एशियाटिक (डिप्लोमैटिक) डिपार्टमेंट में बड़े-बड़ी उम्र के लोगों को दी जाने वाली शिक्षा के संदर्भ में अपने त्रायर के स्कूल के सहपाठियों को याद करते हुए लिखते हैं कि ‘‘इन लड़कों को उनकी बेवकूफी और बढ़ी उम्र की वजह से पहचाना जा सकता है जैसे कभी त्रायर के हमारे ग्रामर स्कूल में देहात के गंवार थे जिनमें से अधिकांश वजीफा पाते थे और कैथोलिक चर्च में भर्ती होने की तैयारी किया करते थे।’’ जाहिर है कि किसानों-मजदूरों की ये संतानें ज्यादा पढ़ नहीं सकती थी और चर्च के अनुदान पर पढ़ाई करने आती थी। उनकी औसत आयु 20 साल से ज्यादा हुआ करती थी।

इसी स्कूल के हेडमास्टर थे योहन ह्युगो वाइटनबक। एक विवेकशील जागृत व्यक्तित्व, जो फ्रांसीसी जमाने में जैकोबीन के समर्थक थे। उन्होंने एक किताब भी लिखी थी - A handbook for the instruction in the duties and rights of man and citizen। उन्होंने बच्चों की पढ़ाई के लिये जो पाठ्य पुस्तकें तैयार कीं उनमें हेंडेर, गेटे, शिलर, क्लौप्स्टौक आदि की कविताएं थी। इसी स्कूल में प्रारंभिक धार्मिक शिक्षा के साथ ही ग्रीक, लैटिन, प्राचीन इतिहास, जर्मन भाषा, और साहित्य भी पढ़ाये जाते थे। (देखें, गैरेथ स्टेडमैन जोन्स, पूर्वोक्त, पृष्ठ - 35-37)

एक ऐसे स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा की वजह से ही मार्क्स के बहुचर्चित ‘पेशे के चयन’ वाले स्कूली लेख में भी जगह-जगह ईश्वर का जिक्र आता है, उसकी कृपा का। स्कूल के हेडमास्टर ने इस लेख को एक अच्छा लेख कहा था लेकिन यह टिप्पणी भी की थी कि कार्ल हमेशा अपनी अभिव्यक्ति को चित्रात्मक बनाने की कोशिश करते हैं, जिसके कारण उनके कथन में स्पष्टता ओर दृढ़ता की कमी रह जाती है। (वही, पृष्ठ - 37)



मार्क्स 27 सितंबर 1835 के दिन स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद विधिशास्त्र की पढ़ाई के लिये बगल के शहर बाॅन के विश्वविद्यालय में दाखिल हुए। इसकी पृष्ठभूमि में निश्चित तौर पर उनके पिता का वकालत का पेशा भी काम कर रहा था। पिता का मानना था कि कानून की पढ़ाई से कम से कम दाल-रोटी तो मिल ही जायेगी। लेकिन सच यह है कि कार्ल कुछ और ही चीज के लिये बना था। वह कवि था।  (वही, पृष्ठ - 37)

कार्ल मार्क्स के जीवन में जिस दूसरे परिवार ने बड़ी भूमिका अदा की वह था उनकी पत्नी जेनी का परिवार। जेनी और उनका भाई एडगर उनके बचपन के दोस्त थे। मार्क्स की बेटी इल्यानोर ने लिखा है कि कैसे मार्क्स जेनी के पिता लुडविग फाॅन वेस्टफालेन के बारे में विस्तार से चर्चा किया करते थे। उन्हें शेक्सपियर और होमर की कविताओं का अनोखा ज्ञान था। होमर के गीत तो उन्हें पूरी तरह से कंठस्थ थे। उन्होंने ही मार्क्स को रोमांटिक कविताओं की ओर भी आकर्षित किया। इल्यानोर के अनुसार महान साहित्य की ओर आकर्षित करने में लुडविग फाॅन वेस्टफालेन की एक बड़ी भूमिका थी। ¼Franz Mehring, Karl Marx : The Story of his life, The University of Michigen Press, paperback (1962), page – 8)

मार्क्स ने अपना डाक्टरेट का शोध निबंध ‘प्रकृति के बारे में डैमोक्रिटियन और एपीक्यूरियन दर्शन के बीच फर्क’ (Difference between the Democritean and Epicurean Philosophy of Nature) उन्हीं को समर्पित किया था। समर्पण की पंक्तियों में उन्होंने अपने ससुर को ‘प्रिय पिता-तुल्य मित्र’ कहते हुए उनके प्रति अपना  ‘संतानोचित प्यार’ जाहिर किया है।
क्रमशः  


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