-अरुण माहेश्वरी
पता नहीं मोदी विदेशी राजनेताओं पर कैसा प्रभाव छोड़ते हैं कि अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अफगानिस्तान के संदर्भ में मोदी और भारत का मजाक उड़ाते हुए संवाददाताओं से कहा कि मोदी उन्हें बता रहे थे कि भारत ने अफगानिस्तान की सहायता के लिये वहां एक लाइब्रेरी बनाई है !
जिस अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के नाना प्रकल्पों में भारत के अब तक लगभग तीन खरब डालर खर्च हो चुके हैं, सवाल उठता है कि क्या मोदी ने ट्रंप को मात्र एक पुस्तकालय के बारे में बताया ?
ट्रंप के बेलागपन और बदजुबानी को सारी दुनिया जानती है । इसीलिये वे किसी के भी बारे में कुछ भी बोलने से हिचकते नहीं है । और इसीलिये शायद मोदी से मुलाकात के बाद इनका ट्रंप पर क्या असर पड़ा, इसका उन्होंने दो टूक बयान कर दिया ।
ट्रंप की भाषा देखिये :
“I get along very well with India and Prime Minister Modi. But he is constantly telling me, he built a library in Afghanistan. Library! That’s like five hours of what we spend ... We are supposed to say, oh thank you for the library. Don’t know who’s using it (the library) in Afghanistan,’’
(मैं भारत और प्रधानमंत्री मोदी के साथ मजे में था । लेकिन वे मुझे बार-बार कहने लगे कि उन्होंने अफगानिस्तान में एक पुस्तकालय बनाया हैं ! ऐसे ही जैसे हमने पांच घंटे बिताए ...मुझे कहना चाहिए था, ओह ! पुस्तकालय के लिये धन्यवाद । मैं नहीं जानता उस पुस्तकालय का अफगानिस्तान में कौन इस्तेमाल करता है ! )
दुनिया के दूसरे राजनेता बेहद शालीन और सभ्य लोग हैं जो सामने वाले के असली व्यक्तित्व को पहचानने से चूकते नहीं हैं, लेकिन उस पर अनावश्यक तौर पर टीका-टिप्पणी करने से बचते हैं । कूटनीति का यह एक बुनियादी सिद्धांत भी है कि किसी भी सार्वभौम राष्ट्र के प्रमुख से व्यवहार और उसके बारे में कोई भी टिप्पणी देने में मर्यादाओं का पालन किया जाना चाहिए । कूटनीति के इस सर्वमान्य शीलाचरण के चलते अक्सर कई बौने राजनेताओं को भी अपनी महत्ता के बारे में कई प्रकार के झूठे भ्रम होने लगते हैं ।
कहना न होगा, हमारे मोदी जी भी एक ऐसे ही व्यक्ति है । भारत की राजनीति में तो तमाम प्रकार के मिथ्याचार और मिथ्या बातों के लिये इन्हें पूरी ख्याति मिल चुकी है, लेकिन वे लगातार विदेश यात्राओं और दूसरे देश के नेताओं से सौजन्यमूलक वार्ताओं के जरिये भारत के लोगों में यह भ्रम पैदा करने की कोशिश करते रहे हैं कि तुम भले ही अपने इस अमूल्य हीरे का कोई दाम न लगाओ, लेकिन सारी दुनिया इसे अपने गले से चिपकाये रखती है । इसी चक्कर में तमाम मूर्ख भक्तगण अक्सर यह रटते रहते हैं कि मोदी ने विदेशों में भारत का रुतबा कायम कर दिया है ।
लेकिन मोदी का दुर्भाग्य कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने जैसे लुहार के हथौड़े की एक चोट से ही मोदी की आभामंडल वाली इस छवि को पूरी तरह से धूल में मिला दिया है । अफगानिस्तान में भारत की अब तक क्या भूमिका रही है, इसे अमेरिका का राष्ट्रपति पूरे विस्तार के साथ नहीं जानता है, यह नहीं माना जा सकता है । सब कुछ जानने के बावजूद जब ट्रंप ने खास तौर पर मोदी का नाम लेकर भारत की छुद्रता के बारे में यह टिप्पणी की है तो यही समझ में आता है कि वे अफगानिस्तान में समग्र रूप से भारत की भूमिका के बारे में नहीं, सिर्फ मोदी जैसे भारत के प्रधानमंत्री की छुद्रता पर टिप्पणी कर रहे थे ।
ऐन चुनाव के साल में, जब मोदी के पीछे नोटबंदी, राफेल, जीएसटी, कृषि संकट, महंगाई और बेरोजगारी के भूत बुरी तरह से पड़े हुए हैं, उनमें अब ट्रंप का यह बयान और इससे उनकी ताबड़तोड़ विदेश यात्राओं की विफलताओं का सच भी उन्हें कम नहीं सतायेगा । अन्य राजनेताओं की सभ्यता और शालीनता का लाभ उठा कर, मित्र ओबामा और झूले पर शी जिन पिंग को संगी बना कर मोदी अब तक भारत के लोगों की आंख में धूल झोंकने की जो कोशिश करते रहे हैं, ट्रंप ने एक झटके में उस क्षेत्र को भी मोदी के अबाध विचरण के लिये एक खतरनाक क्षेत्र बना दिया है ।
आगामी चुनाव के लिये मोदी की एक सौ सभाओं का सिलसिला शुरू हो चुका है । इसमें अब कोई संदेह नहीं है कि ये सारी सभाएं सिर्फ गिनती की चीज बन कर रह जायेगी । उनकी इन सभाओं से भाजपा को चुनाव में और नुकसान भले हो सकता है, लाभ रत्ती भर भी नहीं होता दिखाई देता है ।
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