कल अन्तर्राष्ट्रीय भाषा दिवस का बंगाल के कई प्रमुख स्थानों पर मोदी के नागरिकता क़ानून विरोधी दिवस के रूप में पालन किया गया ।
मोदी-आरएसएस नहीं जानते कि उन्होंने बहु-राष्ट्रीय, वैविध्यमय भारत की किस दुखती रग को छेड़ दिया है । वे इसमें अपनी सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति का भविष्य देख रहे हैं, पर वास्तव में उन्होंने भारत के अनेक भागों में विभाजन का बीजारोपण कर दिया है ।
केंद्र सरकार इस आंदोलन के प्रति जितनी दमनकारी होगी, इसका आगे का स्वरूप उसी से तय होगा । संविधान की रक्षा की लड़ाई को संघीय अधिकारों की लड़ाई में बदलने में जरा भी समय नहीं लगेगा । दुनिया की ताकतें इससे रियासतों में विभाजित भारत के पुराने दिनों की वापसी की कोशिशें पूरी ताक़त से शुरू कर देगी । देश कब गृहयुद्ध में फँसे हुए देश का रूप ले लेगा, पता भी नहीं चलेगा ।
इसीलिये सभी देशप्रेमी ताक़तों को नागरिकता क़ानून के प्रतिरोध में अपनी पूरी ताक़त झोंक देनी होगी ।
22 फरवरी 2020
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