डब्बूएचओ ने कहा है कि कोरोना वायरस को रोकने की संभावनाएँ कम होती जा रही है ।
मक्का में विदेशी हज यात्रियों का प्रवेश रोक दिया गया है । वेनिस में कार्निवल का कार्यक्रम स्थगित । ईरान में जुम्मे की नमाज़ के लिये मस्जिदों में इकट्ठा होना रोक दिया गया है ।
ब्रिटेन में सरकार अपने हाथ में कुछ आपातकालीन अधिकार ले रही है ताकि नागरिकों के आने-जाने को नियंत्रित कर सके ।
अर्थात् नागरिकों के लिये अभी एक नई संहिता बनने जा रही है । लोग भीड़ और मेलों से बचे ; ग़ैर-ज़रूरी यात्राएँ न करे; एक प्रकार की आत्म-अलगाव की स्थिति को अपनाएँ ।
जो भी सरकार लोगों में खुद ऐसी चेतना पैदा नहीं करेगी, वह इस महामारी से लड़ने में विफल रहेगी । जनतंत्र के इस काल की सरकारों के सामने यह एक सबसे बड़ी चुनौती होगी ।
कोरोना वायरस एक नई विश्व आचार-संहिता का सबब बनता दिखाई दे रहा है । यह अब तक के विश्व वाणिज्य संबंधों को भी एक बार के लिये उलट-पुलट देगा । यह शिक्षा, स्वास्थ्य नीतियों पर भी गहरा असर डाल सकता है । स्कूलों-कालेजों और अस्पतालों के स्वरूप पर भी क्रमश: इसका असर पड़ सकता है ।
कोरोना एक नए युग की महामारी है
कोरोना महामारी का असर बताता है कि आज की दुनिया किस कदर आपस में गुँथ चुकी है । तमाम आबादियों के बीच अविभाज्य संपर्क तैयार हो चुके हैं । राष्ट्रीय राज्यों की सीमाएँ वास्तव में टूट चुकी हैं। दुनिया का कोई कोना अब पहले के जमाने की तरह अलग-थलग, कटा हुआ नहीं रह गया है ।
महामारियों ने मनुष्यों के बीच आपसी व्यवहार और सभ्यता के इतिहास पर पहले भी बड़ा असर डाला है । लेकिन कोरोना के असर की गहराई और व्यापकता से पहले की किसी भी महामारी से इसीलिये तुलना नहीं की जा सकती है, क्योंकि आज की दुनिया एक बदली हुई दुनिया है । परस्पर निर्भरशीलता इस दुनिया की एक ठोस सचाई है ।
इसीलिये कोरोना के आर्थिक-सामाजिक प्रभावों का अभी कोई भी पूरा अनुमान नहीं लगा सकता है । मानव सभ्यता के सामने अस्तित्व के इस नए संकट में ही वैश्विक मनुष्य की श्रेष्ठ नैतिकता और संहिता को सामने आना है । यह आज के काल की सबसे बड़ी चुनौती है ।
जो लोग कोरोना वायरस को लेकर नाना प्रकार की हंसी-ठिठोली कर रहे हैं, उनसे सावधान रहे !
प्रकृति विज्ञान के ऐसे विषयों को जिनके कोई सामाजिक-ऐतिहासिक कारण नहीं होते हैं, जो प्रकृति के अपने खास घटना-चक्र की उपज होते हैं और उसी क्रम में जिनका क्षय भी हुआ करता है, उन विषयों पर विचार को शुद्ध रूप से प्रकृति वैज्ञानिकों की राय पर छोड़ दिया जाना चाहिए ।
ऐसे विषयों पर अपने को सर्वज्ञ मानने वाले, लेकिन प्रकृत रूप में उस विषय के बारे में पूरी तरह से अज्ञानी बाबाओं वाली भूमिका अदा करने से बचना चाहिए ।
कोरोना वायरस सभ्यता के इतिहास में कोई अकेली महामारी नहीं है । मनुष्यों के पास ऐसी कठिन, प्लेग आदि की तरह की चुनौतियों से निपटने का अच्छा ख़ासा अनुभव है ।
आज के सबसे अधिक गुँथे हुए विश्व में ऐसी महामारियों के तीव्र गति से फैलने की आशंका जितनी सही है, उतनी ही इससे मुक़ाबले के लिये सभी सरकारों की ओर से एक समन्वित युद्ध स्तर की कार्रवाइयाँ भी अपेक्षित है ।
दुनिया की सारी ज़िम्मेदार सरकारें इस दिशा में सक्रिय हैं और हर जागरुक नागरिक का दायित्व है कि वह अपने सामाजिक व्यवहार से इन प्रयत्नों में सहायक बने, न कि आम लोगों को लापरवाह बनाए ।
इस विषय में डाक्टरों और चिकित्साशास्त्रियों की बातों के अलावा किसी ज्ञानी-मुनि की कोई भी बात न सुनें ।
02.03.2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें