- अरुण माहेश्वरी
कहते हैं कि स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल पर अदालत की अवमानना के लिए सुप्रीम कोर्ट में मुक़दमा चलाया जाएगा - उस कोर्ट में जिसनेचार दिन पहले अर्नब गोस्वामी के स्तर के बदमिजाज एंकर की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए यह फ़ैसला दिया था कि जिसे वह बुरा लगताहै, वह उसे देखता क्यों है ? अर्थात् माना जा रहा है कि अब देश में बुरा लगने का अधिकार भी अकेले सुप्रीम कोर्ट के पास बच गया है ।बाक़ी सब की आबरू सरे बाज़ार उछले, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, पर सुप्रीम कोर्ट पर इस कीचड़ उछालने के पागल दौर में भी कहीं से कोईछींटा नहीं पड़ना चाहिए ।
बहरहाल, देखने की बात यह है कि आख़िर कुणाल कामरा ने किया क्या है ? कुणाल के जिन ट्वीट्स को निशाना बनाया जा रहा है, वेट्वीट्स भी अर्नब गोस्वामी के के मामले में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जाहिर की गई अपेक्षाकृत बेइंतहा बेचैनी के बारे में हैं । किसी भी स्थिति मेंकिसी का इस कदर बेचैन हो कर बिल्कुल कपड़ों के बाहर आकर खड़े हो जाना स्वयं में ही बहुत कुछ कहता है । उस पर अलग से कुछकहने की ज़रूरत नहीं होती है । इसीलिये यदि कोई बिना किसी अतिरिक्त टिप्पणी के ही सिर्फ उस बेचैनी के अतिरेक को ही व्यक्त करदें, तो कहने के लिए उतना ही काफ़ी होता है । और कुछ करने की ज़रूरत नहीं रहती है ।
किसी भी अतिरेक का चित्रण हमेशा सामान्य की पृष्ठभूमि में ही किया जा सकता है । कामरा ने बिल्कुल यही किया था । उसने सुप्रीमकोर्ट की बेचैनी के इस अतिरेक को दिखाने के लिए उसके उस सामान्य को पेश किया जो हज़ारों कश्मीरियों, न जाने दूसरे कितनेपत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, और लेखकों-बुद्धिजीवियों की लगातार गिरफ़्तारियों के प्रति सुप्रीम कोर्ट की चरम उदासीनता के रूपमें हर रोज़ दिखाई देता है । बोम्बे हाईकोर्ट ने अर्नब गोस्वामी को ज़मानत न देकर सुप्रीम कोर्ट की इसी महान परंपरा का को पूरी निष्ठा सेपालन किया था ! हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार की इच्छा का मान रखा था, जैसे सुप्रीम कोर्ट हमेशा केंद्र सरकार के इशारों कापालन करके किया करता है !
कुणाल ने अपने ट्वीट में कहा था कि “आत्म-सम्मान तो इस भवन ( सुप्रीम कोर्ट) से बहुत पहले ही विदा हो चुका है ।” और “इस देश कीसर्वोच्च अदालत इस देश के सर्वोच्च मज़ाक़ का रूप ले चुकी है ।“ इसके साथ ही उसने सुप्रीम कोर्ट के भवन की केसरिया रंग में रंगीएक तस्वीर भी लगाई थी ।
कुणाल पर अवमानना की कार्रवाई के लिए भारत के एडवोकेट जनरल वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में मामले को लाने की घोषणा की, जिसके उत्तर में कुणाल ने उन्हें और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को लिखा है कि भारत के एक प्राइम टाइम लाउडस्पीकर के पक्ष मेंसुप्रीम कोर्ट के पक्षपातपूर्ण फ़ैसले पर अपनी राय देते हुए मैंने ट्वीट किया था । हमारे जैसे सीमित श्रोताओं वाले व्यक्ति के श्रोताओं मेंएक सर्वोच्च क़ानून अधिकारी और सुप्रीम कोर्ट के जजों का आना वीआईपी दर्शकों का आना है । “लेकिन मुझे लगता है कि किसीमनोरंजन स्थल के बजाय सुप्रीम कोर्ट जैसी जगह पर मुझे अपना काम करने का मौक़ा मिलना एक दुर्लभ चीज़ है ।”
“मेरा नज़रिया बदला नहीं है क्योंकि अन्य लोगों की निजी स्वतंत्रता के बारे में सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी पर चुप नहीं रहा जा सकता है । मैंअपने ट्वीट्स के लिए कोई क्षमा नहीं माँगूँगा । वे खुद अपनी बात कहते हैं ।“
“सुप्रीम कोर्ट ने अब तक मेरे ट्वीट्स पर कुछ कहा नहीं है, लेकिन यदि वह ऐसा करता है तो उन्हें अदालत की अवमानना करार देने केपहले, उम्मीद है उसे कुछ हंसी आए । मैंने अपने एक ट्वीट में सुप्रीम कोर्ट में महात्मा गांधी की तस्वीर की जगह हरीश साल्वे की तस्वीरलगाने की बात भी कही है । और कहना चाहूँगा कि पंडित नेहरू की तस्वीर के स्थान पर महेश जेठमलानी की तस्वीर लगानी चाहिए । “
महेश जेठमलानी ने कुणाल को एक छुद्र कीड़ा कहा है ।
बहरहाल, भारत के एडवोकेट जैनरल ने कुणाल कामरा के ट्वीट को हज़ारों-लाखों लोगों तक पहले ही पहुँचा दिया है । अब शायद खुदसुप्रीम कोर्ट उसे घर-घर तक पहुँचाने का बीड़ा उठाने वाला है । यह प्रकारांतर से सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान सच को घर-घर तक पहुंचाने काउपक्रम ही होगा । कुणाल कामरा का कथित व्यंग्य सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान सामान्य व्यवहार का चित्रण भर है । सचमुच, व्यंग्यकार कोअपनी बात के लिए यथार्थ के बाहर कहीं और भटकने की ज़रूरत नहीं हुआ करती है ।
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