-अरुण माहेश्वरी
मोदी का आत्म-निर्भर कैसे आत्म-विनाश का कार्यक्रम है, इसे विश्व अर्थ-व्यवस्था के एक तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले 15 देशों के बीच रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनोमिक पार्टनरशिप (आरसेप) वाणिज्य संधि में भारत के न शामिल होने से अच्छी तरह से समझाजा सकता है । कल, 15 नवंबर को ही पूरी हुए यह स्वतंत्र वाणिज्य संधि आज की दुनिया में सबसे बड़ी स्वतंत्र वाणिज्य संधि है । इसमेंशामिल 15 देशों में दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के संगठन एशिआन के दस देशों के अलावा दक्षिण कोरिया, चीन, जापान, आस्ट्रेलियाऔर न्यूजीलैंड भी शामिल है । एशिआन के सदस्य देश हैं - ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलयेशिया, म्यांमार, फ़िलिपींस, सिंगापुर, थाईलैण्ड और वियतनाम ।
दुनिया की इतनी महत्वपूर्ण क्षेत्रीय वाणिज्य संधि से भारत ने अपने को अलग रख कर कौन सी बुद्धिमानी का परिचय दिया है, इसे मोदीके सिवाय शायद ही दूसरा कोई जानता होगा । इतना जरूर जाहिर है कि इसके मूल में मोदी की ‘आत्म-निर्भर’ भारत की अमूर्त सीसमझ जरूर काम कर रही है , जिसमें शायद दुनिया से पूरी तरह कट कर चलने और चरम ग़रीबी की दशा में जीने को ही ‘आत्म-निर्भरता’ मान लिया गया हैं ।
कहना न होगा, मोदी का यह फ़ैसला भारतीय अर्थ-व्यवस्था के विकास की संभावनाओं पर ही रोक लगा देने की तरह का एक चरमआत्म-घाती फ़ैसला साबित होगा । नोटबंदी, विकृत जीएसटी की श्रृंखला में ही यह निर्णय भी अमेरिकी इशारों पर भारतीय अर्थ-व्यवस्थाकी तबाही का एक और फ़ैसला है ।
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