शनिवार, 27 जून 2015

पूरे अमेरिका में समलैंगिक विवाह को वहां के सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानूनी मान्यता और इस राय से जुड़े बुनियादी सवाल





समलैंगिक विवाह के बारे में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने इसी 25 जून को जो फैसला सुनाया है, उससे दुनिया में तहलका मचा हुआ हैं। आज के ‘टेलिग्राफ’ में इस फैसले के कुछ खास अंशों को न्यूयार्क टाइम्स से लेकर प्रकाशित किया गया है। अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट की एक न्यायपीठ में बहुमत से लिये गये इस फैसले पर पीठ के कुछ न्यायाधीशों ने अपनी असहमति भी जाहिर की है। ‘टेलिग्राफ’ की रिपोर्ट में दोनों पक्ष की राय के अंशों को शामिल किया गया है।

समलैंगिकता की तरह के आदमी के व्यवहार के जिन पक्षों की कल्पना से ही हमारे अंदर एक प्रकार की जुगुप्सा सी पैदा हो जाती है, जिसे हम अनैतिक, अप्राकृतिक और कभी-कभी तो पशुवत भी मानते रहे हैं, वह आज पश्चिम की दुनिया में एक अत्यंत ज्वलंत और विचारयोग्य सवाल बना हुआ है। अब अमेरिका में लिये गये इस फैसले का और भी व्यापक अन्तरराष्ट्रीय प्रभाव होगा।

आखिर यह मामला क्या है, और इसे स्वीकृति देने के पीछे कौन से तर्क काम कर रहे हैं, उन्हें जानने के लिये ही हमने फैसले के इन अंशों को ध्यान से पढ़ा। इसमें शक नहीं है कि बहुमत की ओर से इस फैसले के पीछे न्याय के हित में जो तर्क दिये गये हैं वे कई मायनों में हमें नये और महत्वपूर्ण भी लगे। हमारे ऐसा लगने के पीछे हो सकता है कि शायद हम इस विषय के अब तक के विमर्श से काफी अपरिचित रहे हैं। आदमी का व्यवहार भी सामाजिक परिस्थितियों और विचारों के विकास के साथ ही परिवर्तनशील है, इस बात को समझते हुए भी विवाह की तरह की संस्थाओं के बारे में हमारे विचार में कुछ खास प्रकार के यौनिक व्यवहार की धारण इतनी बद्धमूल रही है कि उनके इतर कुछ भी सोच-समझ पाना हमारे लिये नामुमकिन सा रहा है।

इन्हीं कारणों से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के इन चंद खास अंशों का, जिन्हें ‘टेलिग्राफ’ की रिपोर्ट में शामिल किया गया है, हिंदी में अनुवाद करके हमने उन्हें मित्रों के साथ साझा करना उचित समझा। यह सभी मित्रों के लिये सोच का एक गंभीर और दिलचस्प विषय हो सकता है। हम यहां ‘टेलिग्राफ’ की रिपोर्ट का भी लिंक दे रहे हैं :

बहुमत की राय के अंश

न्यायाधीश एंथनी कैनेडी ने अपनी खनकती भाषा में कहा है कि ‘‘समलैंगिक युग्म विवाह का सम्मान करते हैं और ‘‘कानून की नजरों में समान मर्यादा की मांग’’ कर रहे हैं। संविधान के द्वारा उन्हें यह अधिकार प्रदान किया जाता है।

‘‘विवाह से अधिक गहरा कोई मेल-बंधन नहीं होता है, क्योंकि इसमें प्रेम, आस्था, निष्ठा, त्याग और परिवार के सर्वोच्च आदर्श निहित होते हैं। वैवाहिक युगल बन कर दो व्यक्ति जो पहले थे उससे कुछ ऊपर उठ जाते हैं। जैसा कि याचिकर्ताओं ने कहा है, विवाह से ऐसा प्रेम जुड़ा हुआ है जो मृत्यु के बाद भी बना रहता है।

‘‘यह कहना कि ये पुरुष या स्त्री विवाह के विचार का सम्मान नहीं करते, उन्हें गलत समझना है। उनका कहना है कि वे इसका सम्मान करते हैं और इतनी गहराई से सम्मान करते हैं कि वे खुद इसे अपनाना चाहते हैं। वे नहीं चाहते कि सभ्यता की सबसे पुरानी संस्थाओं में से एक, इस संस्था से वे बाहर रहे और अकेलेपन में जीने के लिये मजबूर हो। वे कानून की नजरों में समान सम्मान की मांग कर रहे हैं। संविधान उन्हें यह अधिकार प्रदान करता है। ’’

बहस जारी रहे

न्यायमूर्ति कैनेडी ने माना है कि जो लोग दृढ़ता के साथ यह मानते हैं कि विवाह सिर्फ पुरुष और स्त्री के बीच होना चाहिए, वे समलैंगिक विवाह का विरोध करते रहें। उन्होंने लिखा कि यह बहस चलती रहे, लेकिन इन्हें विवाह करने दिया जाए।

‘‘अन्तत:, इसपर बल दिया जाना चाहिए कि धर्म और धर्मानुयायी पूरे आंतरिक विश्वास के साथ कह सकते हैं कि विधि के विधान के अनुसार समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं दी जाए। ...इसके बजाय वे उनके साथ खुली और शोधमूलक बहस कर सकते हैं जो उनसे सहमत नहीं है और जो धार्मिक आस्था या धर्म-निरपेक्ष (secular) विश्वास के आधार पर समलैंगिक विवाह को अनुमति देने को सही, बल्कि जरूरी मानते हैं। लेकिन जिन शर्तों के आधार पर विपरीत लिंग के युग्मों को विवाह करने की अनुमति दी जाती है उन्हीं शर्तों पर समलैंगिक युवकों को विवाह करने से रोकने का अधिकार संविधान राज्य को नहीं दे सकता। ’’

विवाह की प्रशस्ति

न्यायमूर्ति कैनेडी ने विवाह का उल्लेख करते हुए अपने बहुमत के फैसले में नौ बार ‘मर्यादा’ शब्द का प्रयोग किया है और उन्होंने वैवाहिक स्थिति को ‘‘हमारी सबसे गहन आशाओं और आकांक्षाओं के लिये जरूरी ‘इंद्रियातीत स्थिति’ बताया है।

‘‘शुरू से लेकर आज तक के मानव इतिहास के पृष्ठों ने विवाह के इंद्रियातीत महत्व को दर्शाया है। एक पुरुष और एक स्त्री के बीच आजीवन मेल-बंधन ने हमेशा सभी व्यक्तियों के लिये, उनका जीवन कैसा भी क्यों न हो, श्रेष्ठता और मर्यादा की प्रतिश्रुति प्रस्तुत की है।

धर्मानुयायियों के लिये विवाह पवित्र है और जो इसपर सेकुलर नजरिये से सोचते हैं, उनके लिये यह एक अद्भुत सिद्धि है। इसकी शक्ति दो लोगों को एक ऐसे जीवन का संधान देती है जिसे वे अकेले चल कर हासिल नहीं कर सकते थे, क्योंकि विवाह सिर्फ दो व्यक्तियों की तुलना में कहीं ऊंची बात है। आदमी की मूलभूत जरूरतों से उत्पन्न विवाह हमारी सबसे गहन आशाओं और आकांक्षाओं के लिये जरूरी है।’’

मर्यादा

न्यायमूर्ति कैनेडी ने दलील दी है कि 14वें संशोधन में ‘उचित कार्रवाई’ के प्राविधान में व्यक्ति की मर्यादा का प्रश्न एक केंद्रीय प्रश्न है, जिसमें कहा गया है कि राज्य ‘‘किसी भी व्यक्ति को कानून की कार्रवाई के बिना जीवन, स्वतंत्रता या संपत्ति से वंचित नहीं करेगा।’’ वे कहते हैं कि मर्यादा की बात को इस विचार में अंतर्निहित पाया जा सकता है।

नये अधिकार

न्यायमूति कैनेडी ने बताया कि संस्थापकों ने अमेरिका को ‘अधिकारों का विधेयक’ (Bill of Rights) प्रदान किया था, लेकिन ऐसी कोई नियमावली या सूत्र नहीं दिया था जिनके जरिये हमेशा के लिये अंतिम रूप से तय किया जा सके कि क्या है और क्या नहीं है। उनके अनुसार, यह विकासमान है, उसी प्रकार जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि विवाह का अधिकार संविधान द्वारा एक संरक्षित अधिकार है।

‘‘अन्याय की प्रकृति ऐसी है कि उसे हम हमेशा अपने काल में देख नहीं सकते है। जिन पीढि़यों ने ‘अधिकारों का विधेयक’ और 14वां संशोधन लिखा, उन्होंने स्वतंत्रता के सारे रूप और संभावनाओं को पहले ही जान नहीं लिया था, और इसीलिये आगत पीढ़ी को यह दायित्व दिया कि स्वतंत्रता से जो हम समझते हैं, उसका उपभोग करने के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करें। जब कोई नई अन्तदृ‍र्ष्टि संविधान के केंद्रीय संरक्षणों और उसके कानूनी रूपों में फर्क देखती है तो निश्चित रूप से स्वतंत्रता के दावे की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए।’’

और प्रतीक्षा नहीं

समलैंगिक विवाह के सवाल को राज्यों पर छोड़ने के तर्क के बारे में न्यायमूर्ति कैनेडी कहते हैं कि ऐसा ‘सतर्कता’ वाला रवैया काम का नहीं है। वे लिखते हैं -‘‘इसकी तत्काल जरूरत है। सिर्फ ऐप्रिल द बोएर और जेन राउस की तरह के याचनाकर्ताओं के लिये नहीं, जो अपने बच्चों के लिये संरक्षण चाहते हैं। उनका जीवन तथा उनके बच्चों का शैशव जल्द ही पूरा हो जायेगा।’’

हमारी संवैधानिक व्यवस्था की शक्ति यह है कि व्यक्ति को अपने मूलभूत अधिकार को पाने के लिए कानून की कार्रवाई की प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं है। आहत व्यक्तियों के लिये राष्ट्र की अदालतों के दरवाजे खुले हैं। ...किसी भी व्यक्ति का नुकसान होने पर वह संविधान के संरक्षण का अधिकारी है, ज्यादा लोग भले ही उससे असहमत हो और भले ही विधायिका कोई कदम उठाने से इंकार कर दे। संविधान का विचार ही ‘‘कुछ विषयों को राजनीतिक विवाद के दायरे के बाहर, बहुमत और अधिकारियों की पहुंच से दूर रखना है और उन्हें अदालतों द्वारा अमल के कानूनी सिद्धांतों के रूप में स्थापित करना है।’’

भिन्न मत

इससे मतभेद की चार बातों में से एक में, जिसे मुख्य न्यायाधीश जॉन जी राबर्ट्स ने व्यक्त किया है और जिससे दो और न्यायाधीश अन्तोनिन स्कालिया तथा क्लारेंस थॉमस ने भी अपनी सहमति जाहिर की है, कहा गया है कि न्याय और प्रेम पर आधारित तर्कों का एक ‘‘अविवादित आकर्षण’’ होने पर भी इस मामले को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किये जाने के बजाय राज्यों पर छोड़ दिया जाना चाहिए।

‘‘यह अदालत विधायिका नहीं है। हमारी चिंता का विषय यह नहीं है कि समलैंगिक विवाह एक अच्छा विचार है। संविधान के अन्तर्गत न्यायाधीशों को यह कहने का अधिकार है कि कानून क्या है, न कि कानून क्या होना चाहिए। जिन लोगों ने संविधान को स्वीकृति दी उन्होंने अदालतों को अपनी ‘‘शक्ति या इच्छा के प्रयोग का नहीं, राय देने का अधिकार दिया था।’’

‘‘हम है ही कौन...’’

न्यायमूर्ति राबर्ट्स ने न्यायमूर्ति कैनेडी की इस बात का खंडन किया कि मूलभूत अधिकारों का अभी भी संधान और विकास होना है।

‘‘बहुमत का फैसला कोई कानूनी राय नहीं, मनमर्जी है। इसमें जिस अधिकार की घोषणा की गई है, संविधान में उसका कोई आधार नहीं है और न ही इस अदालत में ऐसा कोई पूर्व-उदाहरण। बहुमत ने खुले आम न्यायिक ‘सतर्कता’ को अस्वीकारा है। खुले आम ‘अन्याय की प्रकृति’ के बारे में अपनी खुद की नई अन्तर्दृष्टि के अनुसार समाज की पुनर्रचना की अपनी इच्छा पर भरोसा रखते हुए मामूली विनम्रता भी नहीं दिखाई है।

‘‘इसके जरिये अदालत ने आधे से ज्यादा राज्यों के विवाह कानूनों को रद्द कर दिया है और लाखों सालों में जिस सामाजिक संस्था ने मानव समाज का आधार तैयार किया, उसे बदल डालने का निर्देश जारी कर दिया है। ...हम अपने को क्या समझ रहे है ?’’

http://epaper.telegraphindia.com/p…/7-0-27@06@2015-1001.html



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