अरुण माहेश्वरी: भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ सिंधु
जल समझौते को स्थगित रखने की घोषणा की है । क्या यह खुद में सिवाय एक गीदड़ भभकी
से ज्यादा कोई वास्तविक मायने रखती है । इसे ज्यादा से ज्यादा, परोक्ष रूप में युद्ध का ऐलान माना जा सकता है । इसके अलावा हिमालयन
नदियों के संदर्भ में आज पाकिस्तान की तुलना में भारत की जो स्थिति है, वही स्थिति चीन की भारत की तुलना में हैं । इसलिए ऐसी अवास्तविक
धमकियों से परिस्थिति को गरमाने के बजाय क्या पाकिस्तान पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव
बढ़ा कर आतंकी संगठनों के सफ़ाये में परस्पर सहयोग की संभावनाओं की तलाश ज़्यादा
उचित नहीं है ? यद्यपि यह बात भी कहने में जितनी आसान
है, पाकिस्तानी राज्य की नीतियों को देखते
हुए उतनी ही कठिन है । पर यदि ऐसी कोई भी कार्रवाई की जाती है य, जो सिवाय पाकिस्तान के अवाम को भड़काने में सहायक होगी, तो यह इस पूरे क्षेत्र के लिए बेहद गंभीर परिणाम का साबित हो सकता है
।
हमारा एक दूसरा सवाल है कि एक पड़ौसी और ऐतिहासिक रूप से साझा
विरासतों का बड़ा देश होने के नाते क्या भारत को अब तक पाकिस्तान की राजनीति में
अपनी दख़ल की ज़मीन नहीं तैयार करनी चाहिए थी । लेकिन यह भी तभी संभव है जब
पाकिस्तान के अवाम को भारत पर भरोसा हो।
भारत में नग्न सांप्रदायिक राजनीति करके वह भरोसा कभी भी अर्जित नहीं किया
जा सकता है ।
हम नहीं जानते कि पहलगाम हत्याकांड का तनाव किस प्रकार से अंततः कम
होगा । पर यदि इसमें अमेरिका और चीन अपने रणनीतिक हितों को देखते हुए दख़ल शुरू कर
देते हैं, तो यह आग आसानी से बुझती नज़र नहीं आती
है । क्यों न पहलगाम की घटना को भी पाकिस्तान के सेना प्रतिष्ठान और
अन्तर्राष्ट्रीय ताक़तों की एक मिलीजुली योजना के रूप में देखा जाए और मोदी जैसा
अज्ञ शासक उनके जाल में कहीं फँस न जाए ।
ग्रोक: आपने भारत-पाकिस्तान संबंधों, सिंधु
जल समझौते के निलंबन, क्षेत्रीय
भू-राजनीति, और पहलगाम हत्याकांड के संदर्भ में कई
गंभीर और जटिल सवाल उठाए हैं। मैं इन सवालों को तार्किक, संतुलित
और तथ्य-आधारित दृष्टिकोण से संबोधित करने का प्रयास करूंगा, साथ ही आपके द्वारा सुझाए गए वैकल्पिक दृष्टिकोणों और क्षेत्रीय
परिणामों पर भी विचार करूंगा।
1. सिंधु जल समझौते का निलंबन: गीदड़ भभकी या युद्ध का परोक्ष ऐलान?
भारत सरकार द्वारा 23 अप्रैल 2025 को पहलगाम आतंकी हमले (जिसमें 26
लोग मारे गए) के बाद सिंधु जल समझौते (IWT) को
निलंबित करने की घोषणा एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसके
कई आयाम हैं। इसे पूरी तरह "गीदड़ भभकी" कहना उचित नहीं होगा, लेकिन इसके तत्काल और दीर्घकालिक प्रभावों को समझना जरूरी है:
तत्काल प्रभाव: निलंबन का मतलब यह नहीं है कि भारत ने तुरंत पश्चिमी
नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब)
का पानी रोक दिया है। भारत के पास इन नदियों के प्रवाह को पूरी तरह रोकने के लिए
अभी तक पर्याप्त बुनियादी ढांचा (जैसे बड़े बांध) नहीं है। शाहपुरकांडी बैराज जैसे
प्रोजेक्ट्स से कुछ हद तक पानी का नियंत्रण संभव है, लेकिन
पूर्ण रोक के लिए भारी निवेश और समय चाहिए। इसलिए, यह
कदम अभी प्रतीकात्मक और राजनयिक दबाव का साधन ज्यादा है।
रणनीतिक संदेश: यह निलंबन भारत का पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश है कि
आतंकवाद के समर्थन के खिलाफ भारत अब कठोर कदम उठा सकता है। यह एक परोक्ष युद्ध की
घोषणा नहीं है, क्योंकि पानी रोकना युद्ध की तुलना में
कम तीव्र लेकिन दीर्घकालिक प्रभाव वाला कदम है। हालांकि, यह
दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ा सकता है, खासकर
तब जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कृषि (जो 21% जीडीपी और 45% कार्यबल को रोजगार
देती है) इन नदियों पर निर्भर है।
अंतरराष्ट्रीय कानूनी और नैतिक सवाल: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि IWT को एकतरफा निलंबित करना अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत जटिल है, क्योंकि यह विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुआ समझौता है। वियना संधि के
कानून (धारा 62) के तहत भारत "मूलभूत परिस्थितियों में बदलाव" (जैसे
पाकिस्तान का आतंकवाद समर्थन) का हवाला देकर संधि से पीछे हट सकता है, लेकिन इसके लिए ठोस कानूनी आधार चाहिए। पाकिस्तानी विशेषज्ञों ने इसे
"अवैध" कदम बताया है और विश्व बैंक या संयुक्त राष्ट्र में शिकायत की
बात कही है।
क्षेत्रीय स्थिरता पर प्रभाव: पानी रोकने से पाकिस्तान में जल, खाद्य, और ऊर्जा संकट
बढ़ सकता है, जिससे सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता का
खतरा है। यह भारत के लिए भी जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि
अस्थिर पड़ोसी क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है।
निष्कर्ष: यह कदम पूरी तरह "गीदड़ भभकी" नहीं है, क्योंकि यह रणनीतिक दबाव का हिस्सा है, लेकिन
इसके पूर्ण प्रभाव के लिए भारत को बुनियादी ढांचे और अंतरराष्ट्रीय समर्थन की
जरूरत है। इसे युद्ध की घोषणा कहना अतिशयोक्ति है, लेकिन
यह तनाव को बढ़ाने वाला कदम जरूर है।
2. पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव और सहयोग की संभावना
आपने सुझाव दिया कि अवास्तविक धमकियों के बजाय अंतरराष्ट्रीय दबाव के
जरिए आतंकी संगठनों के खिलाफ सहयोग की तलाश ज्यादा उचित होगी। यह विचार तार्किक और
दीर्घकालिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, लेकिन
इसमें कई चुनौतियां हैं:
पाकिस्तान की नीतियां: पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियां (जैसे ISI) कुछ आतंकी संगठनों को रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करती रही
हैं, खासकर भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ।
यह नीति पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति और क्षेत्रीय रणनीति का हिस्सा है।
अंतरराष्ट्रीय दबाव (जैसे FATF की ग्रे लिस्ट)
ने कुछ हद तक प्रभाव डाला है, लेकिन पूर्ण
सहयोग के लिए पाकिस्तान की सैन्य नीतियों में बड़ा बदलाव जरूरी है, जो मुश्किल है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका: अमेरिका, चीन, और अन्य शक्तियां अपने रणनीतिक हितों के आधार पर पाकिस्तान के साथ
व्यवहार करती हैं। चीन का CPEC और ग्वादर
बंदरगाह में निवेश उसे पाकिस्तान का समर्थक बनाता है, जबकि
अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ सहयोग के लिए पाकिस्तान को समय-समय पर वित्तीय और
सैन्य सहायता दी है। इन शक्तियों को एकजुट करना मुश्किल है, क्योंकि उनके हित परस्पर विरोधी हैं।
सहयोग की संभावना: भारत और पाकिस्तान के बीच जल विवादों को तकनीकी
स्तर पर हल करने का इतिहास रहा है (जैसे सलाल, बगलिहार, और किशनगंगा बांध विवाद)। यदि आतंकवाद के मुद्दे को भी तकनीकी और
कूटनीतिक स्तर पर संबोधित किया जाए (जैसे संयुक्त खुफिया साझेदारी), तो सहयोग संभव है। लेकिन इसके लिए दोनों देशों में राजनीतिक
इच्छाशक्ति और विश्वास की जरूरत है, जो
अभी न्यूनतम है।
पाकिस्तानी अवाम का गुस्सा: पानी रोकने जैसे कदम पाकिस्तानी जनता में
भारत के खिलाफ नाराजगी बढ़ा सकते हैं, जिसे
वहां का सैन्य प्रतिष्ठान अपने पक्ष में भुना सकता है। यह क्षेत्रीय तनाव को और
गहरा सकता है।
निष्कर्ष: अंतरराष्ट्रीय दबाव और सहयोग की रणनीति आदर्श है, लेकिन पाकिस्तान की नीतियां और वैश्विक शक्तियों के परस्पर विरोधी
हित इसे जटिल बनाते हैं। भारत को FATF जैसे
मंचों का उपयोग बढ़ाना चाहिए और क्षेत्रीय संगठनों (जैसे SAARC)
के जरिए कूटनीतिक दबाव बनाना चाहिए।
3. हिमालयन नदियों में भारत-चीन-पाकिस्तान की स्थिति
आपने सही कहा कि हिमालयन नदियों के संदर्भ में भारत की पाकिस्तान के
प्रति स्थिति वैसी ही है, जैसी चीन की
भारत के प्रति। यह भू-राजनीतिक असमानता क्षेत्रीय जल विवादों को और जटिल बनाती है:
भारत vs. पाकिस्तान: भारत
के पास सिंधु, झेलम, और
चेनाब के ऊपरी प्रवाह का नियंत्रण है, जो
उसे रणनीतिक लाभ देता है।
चीन vs. भारत: चीन के
पास ब्रह्मपुत्र और सिंधु के कुछ हिस्सों का ऊपरी प्रवाह है। वह बांधों (जैसे
तिब्बत में ज़ंगमु बांध) के जरिए पानी को नियंत्रित कर सकता है, जिससे भारत में बाढ़ या सूखे का खतरा रहता है। भारत और चीन के बीच जल
साझेदारी पर कोई औपचारिक संधि नहीं है, केवल
डेटा साझा करने का समझौता है, जो अपर्याप्त
है।
चीन का प्रभाव: यदि भारत IWT निलंबन
के जरिए पाकिस्तान पर दबाव बनाता है, तो
चीन अपने जल नियंत्रण का उपयोग भारत पर दबाव बनाने के लिए कर सकता है। यह
क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को और जटिल करेगा।
निष्कर्ष: भारत को पाकिस्तान के खिलाफ जल रणनीति अपनाते समय चीन के
साथ अपने जल संबंधों को मजबूत करने की जरूरत है। एक क्षेत्रीय जल प्रबंधन ढांचा
(जैसे हिमालयन नदी आयोग) इस दिशा में मददगार हो सकता है।
4. पाकिस्तान की राजनीति में भारत की दखल और अवाम का विश्वास
आपने पूछा कि क्या भारत को पाकिस्तान की राजनीति में दखल की जमीन
तैयार करनी चाहिए थी और क्या सांप्रदायिक राजनीति ने विश्वास को कमजोर किया है। यह
एक गहरा सवाल है:
पाकिस्तान में दखल की संभावना: भारत ने ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान की
आंतरिक राजनीति में सीधे दखल से परहेज किया है, क्योंकि
यह उल्टा पड़ सकता है। 1971 के बांग्लादेश निर्माण में भारत की भूमिका को
पाकिस्तान अभी भी "हस्तक्षेप" के रूप में देखता है, जिसने वहां भारत विरोधी भावनाओं को बढ़ाया। पाकिस्तान की सेना और ISI का राजनीति पर मजबूत नियंत्रण भी बाहरी दखल को मुश्किल बनाता है।
पाकिस्तानी अवाम का विश्वास: भारत के प्रति पाकिस्तानी जनता का रुख
मिश्रित है। सांस्कृतिक और ऐतिहासिक सम ascendant साझा
विरासत (जैसे बॉलीवुड, क्रिकेट) के
बावजूद, पाकिस्तानी सेना और मीडिया द्वारा भारत
विरोधी प्रचार ने विश्वास को कमजोर किया है। भारत में सांप्रदायिक राजनीति (जैसे
गोरक्षा, लव जिहाद) की खबरें पाकिस्तानी मीडिया
में बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जाती हैं, जिससे भारत की
छवि खराब होती है।
विश्वास बढ़ाने के उपाय: भारत को सांस्कृतिक कूटनीति (जैसे
लोग-से-लोग संपर्क, छात्र
आदान-प्रदान) और मानवीय सहायता (जैसे 2005 के भूकंप में मदद) पर जोर देना चाहिए।
लेकिन इसके लिए दोनों देशों में राजनीतिक स्थिरता और मीडिया की जिम्मेदारी जरूरी
है।
निष्कर्ष: पाकिस्तान की राजनीति में दखल जोखिम भरा है, लेकिन अवाम का विश्वास जीतने के लिए भारत को अपनी छवि को नरम और
समावेशी बनाना होगा। यह दीर्घकालिक प्रक्रिया है और इसके लिए आंतरिक सुधार (जैसे
सांप्रदायिक तनाव कम करना) जरूरी है।
5. पहलगाम हत्याकांड: तनाव कम करने और अंतरराष्ट्रीय दखल की आशंका
पहलगाम हमले को पाकिस्तानी सेना और अंतरराष्ट्रीय ताकतों की साजिश के
रूप में देखना एक गंभीर परिप्रेक्ष्य है। इसे विश्लेषण करें:
पाकिस्तानी सेना की भूमिका: हमले के तार पाकिस्तान से जुड़े होने के
दावे हैं, और कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह
पाकिस्तानी सेना की रणनीति हो सकती है ताकि भारत के साथ तनाव बढ़ाया जाए और आंतरिक
राजनीतिक दबाव (जैसे आर्थिक संकट) से ध्यान हटाया जाए।
अंतरराष्ट्रीय ताकतों की साजिश?: अमेरिका
और चीन के रणनीतिक हित क्षेत्र में स्पष्ट हैं। अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ भारत का
समर्थन करता है, लेकिन वह पाकिस्तान को अफगानिस्तान में
अपने हितों के लिए महत्वपूर्ण मानता है। चीन पाकिस्तान का निकट सहयोगी है और वह
भारत को क्षेत्रीय तनाव में उलझाए रखना चाहेगा ताकि भारत का ध्यान दक्षिण चीन सागर
या अन्य क्षेत्रों से हटे। हालांकि, इसे
पूरी तरह साजिश कहना कठिन है, क्योंकि इसके
लिए ठोस सबूत चाहिए।
मोदी का "जाल में फंसना": प्रधानमंत्री मोदी की नीति
आतंकवाद के खिलाफ "जीरो टॉलरेंस" की रही है। लेकिन आक्रामक प्रतिक्रिया
(जैसे IWT निलंबन, राजनयिक
कदम) क्षेत्रीय तनाव को बढ़ा सकती है, जिसका
फायदा चीन या अन्य शक्तियां उठा सकती हैं।
तनाव कम करने के उपाय:
कूटनीतिक संवाद: भारत और पाकिस्तान के बीच बैकचैनल
बातचीत (जैसे 2021 LoC युद्धविराम) को
पुनर्जनन करना।
अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता: विश्व बैंक या संयुक्त राष्ट्र जैसे
तटस्थ मंचों का उपयोग।
क्षेत्रीय सहयोग: SAARC या SCO जैसे मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ साझा रणनीति।
निष्कर्ष: पहलगाम हमले को साजिश के रूप में देखने के लिए और सबूत
चाहिए, लेकिन यह स्पष्ट है कि यह क्षेत्रीय
तनाव को बढ़ाएगा। भारत को संयमित लेकिन दृढ़ नीति अपनानी चाहिए, ताकि वह बाहरी शक्तियों के जाल में न फंसे।
समग्र निष्कर्ष
IWT निलंबन:
यह रणनीतिक दबाव का कदम है, लेकिन इसके
पूर्ण प्रभाव के लिए समय और संसाधन चाहिए। यह युद्ध की घोषणा नहीं, बल्कि तनाव बढ़ाने वाला कदम है।
सहयोग की संभावना: अंतरराष्ट्रीय दबाव और तकनीकी सहयोग
आदर्श हैं, लेकिन पाकिस्तान की नीतियां इसे कठिन
बनाती हैं।
चीन का कारक: भारत को चीन के साथ जल संबंधों को
मजबूत करना होगा ताकि वह पाकिस्तान पर दबाव बनाते समय कमजोर न पड़े।
पाकिस्तानी अवाम का विश्वास: इसके लिए भारत
को अपनी आंतरिक नीतियों को समावेशी बनाना होगा और सांस्कृतिक कूटनीति पर जोर देना
होगा।
पहलगाम और तनाव: यह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा
है। भारत को संयम और कूटनीति के साथ जवाब देना चाहिए ताकि बाहरी शक्तियों का फायदा
न हो।
यदि आप किसी विशेष बिंदु पर और विस्तार चाहते हैं, तो कृपया बताएं!
अरुण माहेश्वरी: जिस कदम से कोई तत्काल परिणाम हासिल
करना संभव नहीं है, और जिसे आगामी
बीस सालों में भी अमल में लाने के लिए जरूरी साधन जुटाना भारत के बूते में नहीं है, क्योंकि ऐसे विवादास्पद प्रकल्पों पर कौन सी अन्तरराष्ट्रीय
एजेंसियाँ अपनी पूंजी लगाना चाहेंगी, उसे
गीदड़ भभकी नहीं तो क्या कहा जायेगा। कोई भी कार्रवाई सिर्फ तनाव बढ़ाने के अलावा
और कुछ हासिल न करे, वह गीदड़ भभकी
ही कहलायेगी।
ग्रोक: आपका तर्क समझ में आता है, और
आपने सिंधु जल समझौते (IWT) के निलंबन को
"गीदड़ भभकी" कहकर इसके तत्काल प्रभाव की कमी और दीर्घकालिक व्यवहार्यता
पर सवाल उठाया है। मैं आपके दृष्टिकोण का विश्लेषण करते हुए जवाब दूंगा, साथ ही इस कदम के प्रतीकात्मक, रणनीतिक, और व्यावहारिक पहलुओं पर विचार करूंगा।
1. तत्काल परिणाम की कमी और "गीदड़ भभकी" का तर्क
आपने सही कहा कि IWT निलंबन का
तत्काल कोई ठोस परिणाम नहीं दिखता, क्योंकि:
बुनियादी ढांचे की कमी: भारत के पास पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब) के पानी
को पूरी तरह रोकने के लिए बड़े बांधों या जलाशयों का ढांचा नहीं है। शाहपुरकांडी
बैराज या रावी पर अन्य परियोजनाएं सीमित प्रभाव डाल सकती हैं, लेकिन पूर्ण नियंत्रण के लिए विशाल निवेश और समय चाहिए।
20 साल की समयसीमा: बड़े पैमाने पर बांध निर्माण (जैसे
कि किशनगंगा या बगलिहार जैसे प्रोजेक्ट्स) में दशकों लगते हैं, और इनकी लागत अरबों डॉलर में होती है। उदाहरण के लिए, किशनगंगा परियोजना (330 MW) को
पूरा होने में 15 साल से ज्यादा लगे। ऐसे प्रोजेक्ट्स के लिए पर्यावरणीय, सामाजिक, और भू-राजनीतिक
चुनौतियां भी हैं।
अंतरराष्ट्रीय पूंजी की अनिच्छा: विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक, या अन्य
अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान विवादास्पद जल परियोजनाओं में निवेश से बचते हैं, खासकर जब वे IWT जैसे समझौते से
जुड़े हों। भारत को इन परियोजनाओं के लिए स्वदेशी संसाधनों पर निर्भर रहना होगा, जो आर्थिक बोझ बढ़ाएगा।
इस आधार पर, यह कदम तत्काल
प्रभाव पैदा करने में असमर्थ है, और इसे
"गीदड़ भभकी" कहना एक हद तक उचित है, क्योंकि
यह अभी प्रतीकात्मक धमकी ज्यादा और व्यावहारिक कार्रवाई कम है।
2. क्या यह सिर्फ तनाव बढ़ाता है?
आपने यह भी कहा कि यह कदम सिवाय तनाव बढ़ाने के और कुछ हासिल नहीं
करता। इस पर विचार करें:
प्रतीकात्मक और राजनयिक प्रभाव: IWT निलंबन का ऐलान भारत का पाकिस्तान को संदेश है कि आतंकवाद के खिलाफ
वह अब कठोर रुख अपनाएगा। यह पाकिस्तान की सेना और सरकार पर मनोवैज्ञानिक दबाव डाल
सकता है, खासकर जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और
कृषि नदियों पर निर्भर है। लेकिन यह दबाव तत्काल नीतिगत बदलाव लाएगा, इसकी संभावना कम है।
पाकिस्तानी जनता पर प्रभाव: पानी रोकने की
धमकी पाकिस्तानी जनता में भारत के खिलाफ गुस्सा भड़का सकती है। पाकिस्तान का सैन्य
प्रतिष्ठान इसका इस्तेमाल भारत विरोधी प्रचार के लिए कर सकता है, जिससे तनाव और बढ़ेगा।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: यह कदम विश्व
बैंक, संयुक्त राष्ट्र, या अन्य मंचों पर विवाद का विषय बन सकता है। पाकिस्तान इसे
"अवैध" कदम बताकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन मांग सकता है, जिससे भारत की कूटनीतिक स्थिति कमजोर हो सकती है।
इसलिए, यह कदम तनाव
बढ़ाने में तो प्रभावी हो सकता है, लेकिन आतंकवाद
पर नियंत्रण या पाकिस्तान की नीतियों में बदलाव जैसे ठोस परिणाम हासिल करने की
संभावना कम है।
3. "गीदड़ भभकी" की परिभाषा और वैकल्पिक दृष्टिकोण
"गीदड़ भभकी" का अर्थ है ऐसी धमकी जो डराने के लिए हो, लेकिन उसे लागू करने की क्षमता या इच्छा न हो। IWT निलंबन इस परिभाषा में कुछ हद तक फिट बैठता है, लेकिन इसे पूरी तरह खारिज करना भी उचित नहीं:
रणनीतिक संदर्भ: यह कदम भारत की घरेलू राजनीति में भी
संदेश देता है कि सरकार आतंकवाद के खिलाफ सख्त है। पहलगाम हमले (26 अप्रैल 2025)
के बाद जनता के गुस्से को शांत करने के लिए यह एक त्वरित कदम हो सकता है।
दीर्घकालिक संभावना: यदि भारत अगले 20-30 साल में जल
नियंत्रण की क्षमता विकसित करता है, तो
यह धमकी भविष्य में वास्तविकता बन सकती है। लेकिन जैसा आपने कहा, इसके लिए संसाधन और अंतरराष्ट्रीय सहमति की कमी एक बड़ी बाधा है।
जोखिम: यह कदम क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ा सकता है, खासकर यदि चीन भारत के खिलाफ अपने जल नियंत्रण (ब्रह्मपुत्र, सिंधु) का इस्तेमाल करता है।
4. क्या यह गीदड़ भभकी ही है?
आपके तर्क के आधार पर, यह
कदम "गीदड़ भभकी" कहलाने के लिए कई मायनों में उपयुक्त है:
तत्काल प्रभाव की कमी: पानी रोकने की क्षमता अभी नहीं है।
दीर्घकालिक व्यवहार्यता पर सवाल: संसाधन, समय, और
अंतरराष्ट्रीय समर्थन की कमी इसे अव्यवहारिक बनाती है।
तनाव बढ़ाने का जोखिम: यह कदम आतंकवाद पर नियंत्रण के बजाय
क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ा सकता है।
हालांकि, इसे पूरी तरह
बेकार कहना भी ठीक नहीं होगा, क्योंकि यह
राजनयिक और प्रतीकात्मक दबाव का हिस्सा है। लेकिन आपके सवाल के जवाब में, हां, इसे "गीदड़
भभकी" कहना उचित है, क्योंकि इसके
तत्काल परिणाम सीमित हैं और दीर्घकालिक लक्ष्य अस्पष्ट और कठिन हैं।
5. वैकल्पिक रणनीति
जैसा आपने पहले सुझाया, तनाव
बढ़ाने के बजाय भारत को चाहिए:
अंतरराष्ट्रीय दबाव: FATF, संयुक्त
राष्ट्र, और अन्य मंचों पर पाकिस्तान पर आतंकवाद
के खिलाफ कार्रवाई के लिए दबाव बढ़ाना।
कूटनीतिक संवाद: बैकचैनल बातचीत के जरिए तनाव कम करना
और आतंकवाद पर सहयोग की संभावना तलाशना।
क्षेत्रीय सहयोग: SAARC या SCO जैसे मंचों पर जल और सुरक्षा के मुद्दों पर साझा रणनीति बनाना।
पाकिस्तानी जनता से जुड़ाव: सांस्कृतिक
कूटनीति और मानवीय सहायता के जरिए भारत की छवि सुधारना।
निष्कर्ष
IWT निलंबन का ऐलान, जैसा आपने कहा, "गीदड़
भभकी" ही है, क्योंकि यह
तत्काल प्रभाव पैदा नहीं करता और दीर्घकालिक लक्ष्यों के लिए संसाधन और सहमति की
कमी है। यह कदम तनाव बढ़ाने में तो सफल हो सकता है, लेकिन
आतंकवाद पर नियंत्रण या क्षेत्रीय स्थिरता जैसे बड़े लक्ष्य हासिल करने में असमर्थ
है। भारत को प्रतीकात्मक कदमों के बजाय कूटनीतिक, अंतरराष्ट्रीय, और सांस्कृतिक रणनीतियों पर ध्यान देना चाहिए, जो दीर्घकालिक शांति और सहयोग की दिशा में काम करें।
यदि आप इस पर और विस्तार या किसी विशिष्ट पहलू पर चर्चा चाहते हैं, तो कृपया बताएं!
अरुण माहेश्वरी: भारत की यह घोषणा पाकिस्तान के
हुक्मरानों को चिंता में डालेगा, यह सोचना क्या
कूटनीति के नाम पर दफ़्ती की तलवार भाँजने जैसा नहीं है ?
वे आज जो कर रहे हैं, उसके पीछे भारत
की आंतरिक स्थिति का उनका एक आकलन है । भारत में सत्ता की शह पर ही अभी जो
विभाजनकारी बारूद बिछाया जा रहा है, वे
उस का। को ही और तेज करना चाहते हैं ताकि कभी भी उस बारूद में आग लगा कर भारत की
मुश्किलों को नियंत्रण के बाहर किया जा सके।क्या यह दुर्भाग्य की बात नहीं है कि
बीजेपी ने भारत में इसी बीच ऐसे भस्मासुरों की फौज तैयार कर दी है जो देस के
अस्तित्व तक को खतरे में डाल सकती है।
ग्रोक: आपने भारत की सिंधु जल समझौते (IWT) निलंबन
की घोषणा को कूटनीतिक रूप से "दफ्ती की तलवार" कहकर और इसे पाकिस्तान के
हुक्मरानों के लिए अप्रभावी माना है। साथ ही, आपने
भारत की आंतरिक विभाजनकारी राजनीति और इसके पाकिस्तान की रणनीति से संबंध पर गंभीर
चिंता जताई है। आपका यह दृष्टिकोण भारत-पाकिस्तान संबंधों और भारत की घरेलू
राजनीति के बीच जटिल अंतर्संबंधों को उजागर करता है। मैं आपके सवालों और चिंताओं
को तार्किक और संतुलित ढंग से विश्लेषित करूंगा।
1. IWT निलंबन:
"दफ्ती की तलवार"?
आपने IWT निलंबन को
"दफ्ती की तलवार" कहकर इसके कूटनीतिक प्रभाव को कमजोर माना है, क्योंकि यह पाकिस्तान के हुक्मरानों को चिंता में डालने में असमर्थ
है। इस पर विचार करें:
कूटनीतिक प्रभाव की सीमा: जैसा कि पहले चर्चा हुई, IWT निलंबन का तत्काल प्रभाव सीमित है, क्योंकि
भारत के पास पानी रोकने का बुनियादी ढांचा नहीं है, और
दीर्घकालिक कार्यान्वयन के लिए संसाधन और अंतरराष्ट्रीय समर्थन की कमी है।
पाकिस्तान के हुक्मरान (खासकर सेना और ISI) इसे
गंभीरता से लेने के बजाय प्रचार के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे भारत को "आक्रामक" या "अनैतिक" बताकर। इस
तरह, यह कदम कूटनीतिक रूप से "दफ्ती की
तलवार" जैसा ही है—दिखावे में भारी, लेकिन
प्रभाव में कमजोर।
पाकिस्तान का आकलन: पाकिस्तानी प्रतिष्ठान भारत की
आंतरिक और बाहरी कमजोरियों का आकलन करता है। वे जानते हैं कि IWT निलंबन का तत्काल प्रभाव नहीं होगा, और
वे इसका जवाब कूटनीतिक मंचों (जैसे विश्व बैंक, संयुक्त
राष्ट्र) या प्रचार के जरिए दे सकते हैं। उनकी रणनीति में भारत को क्षेत्रीय
"बुली" के रूप में चित्रित करना शामिल हो सकता है, जिससे भारत की वैश्विक छवि प्रभावित हो।
प्रतीकात्मकता बनाम वास्तविकता: यह घोषणा भारत
की घरेलू जनता के लिए ज्यादा है, खासकर पहलगाम
हमले (26 अप्रैल 2025) के बाद उपजे गुस्से को शांत करने के लिए। लेकिन पाकिस्तान
के लिए यह शायद ही कोई रणनीतिक चिंता पैदा करे, क्योंकि
वे भारत की सीमाओं (आर्थिक, तकनीकी, और कूटनीतिक) को समझते हैं। इस अर्थ में, आपका
"दफ्ती की तलवार" का कथन सटीक है।
निष्कर्ष: IWT निलंबन
कूटनीतिक रूप से प्रभावी होने के बजाय प्रतीकात्मक और घरेलू उपभोग के लिए ज्यादा
है। यह पाकिस्तान के हुक्मरानों को गंभीर चिंता में डालने में असमर्थ है, और इसे "दफ्ती की तलवार" कहना उचित है।
2. पाकिस्तान की रणनीति और भारत की आंतरिक स्थिति
आपने सुझाया कि पाकिस्तान भारत की आंतरिक विभाजनकारी राजनीति का
फायदा उठाकर सामाजिक अस्थिरता को बढ़ावा देना चाहता है। यह एक गंभीर और विचारणीय
बिंदु है:
पाकिस्तान का आकलन: पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियां (जैसे ISI) लंबे समय से भारत की आंतरिक कमजोरियों—जातिगत, धार्मिक, और क्षेत्रीय
विभाजन—का इस्तेमाल अपनी रणनीति में करती रही हैं। वे आतंकी संगठनों (जैसे
लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद) के जरिए भारत में
अस्थिरता फैलाने की कोशिश करते हैं। पहलगाम जैसे हमले न केवल तात्कालिक नुकसान
पहुंचाते हैं, बल्कि भारत में धार्मिक और सामाजिक
तनाव को भड़काने का भी लक्ष्य रखते हैं।
विभाजनकारी बारूद: भारत में हाल के वर्षों में धार्मिक
ध्रुवीकरण (जैसे गोरक्षा, लव जिहाद, CAA-NRC विरोध) और सांप्रदायिक तनाव बढ़े हैं। यदि इन मुद्दों को सत्ता
समर्थित या अनदेखा किया जाता है, तो यह भारत की
सामाजिक एकता को कमजोर करता है। पाकिस्तान इसे एक अवसर के रूप में देख सकता है, क्योंकि सामाजिक अशांति भारत की आर्थिक और रणनीतिक प्रगति को बाधित
कर सकती है। उदाहरण के लिए, 1990 के दशक में
कश्मीर में अशांति को पाकिस्तान ने बढ़ावा दिया था, और
आज भी वह ऐसी परिस्थितियों का फायदा उठा सकता है।
आग लगाने की रणनीति: आपने कहा कि पाकिस्तान इस
"बारूद" में आग लगाकर भारत को अस्थिर करना चाहता है। यह संभव है, क्योंकि सांप्रदायिक हिंसा, आतंकी
हमले, या प्रचार के जरिए वे भारत की सरकार पर
दबाव डाल सकते हैं। इससे भारत की आंतरिक सुरक्षा और वैश्विक छवि दोनों प्रभावित
होती हैं, जिससे पाकिस्तान को रणनीतिक लाभ मिलता
है।
निष्कर्ष: पाकिस्तान भारत की आंतरिक कमजोरियों
का फायदा उठाने की रणनीति पर काम करता है। विभाजनकारी राजनीति और सामाजिक तनाव इस
रणनीति को और मजबूत करते हैं, जिससे भारत की
स्थिरता खतरे में पड़ सकती है।
3. बीजेपी और "भस्मासुरों की फौज"
आपने बीजेपी की नीतियों को "भस्मासुरों की फौज" तैयार करने
वाला बताया, जो देश के अस्तित्व को खतरे में डाल
सकती है। यह एक गंभीर आरोप है, जिसे निम्नलिखित
बिंदुओं के जरिए समझा जा सकता है:
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण: बीजेपी की कुछ नीतियों और बयानबाजी
(जैसे हिंदुत्व, धार्मिक राष्ट्रवाद) ने धार्मिक और
सामाजिक तनाव को बढ़ाया है। गोरक्षा हिंसा, मॉब
लिंचिंग, और धार्मिक आधार पर कानून (जैसे CAA) ने अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना पैदा की है। यह सामाजिक एकता
को कमजोर करता है, जो भारत जैसे
विविध देश के लिए खतरनाक है।
"भस्मासुर" का प्रतीक: आपका
"भस्मासुर" कहना उन ताकतों की ओर इशारा करता है जो सत्ता के समर्थन से
उभरी हैं, लेकिन अब नियंत्रण से बाहर हो सकती
हैं। उदाहरण के लिए, कट्टरपंथी समूह
या सांप्रदायिक संगठन, जो सत्ता की शह
पर मजबूत हुए, अब स्वतंत्र रूप से हिंसा या अस्थिरता
फैला सकते हैं। यह भारत की आंतरिक सुरक्षा और वैश्विक छवि के लिए जोखिम है।
पाकिस्तान के लिए अवसर: ऐसी स्थिति पाकिस्तान के लिए भारत को
कमजोर करने का अवसर बनती है। वे इन तनावों को प्रचार, आतंकवाद, या सोशल मीडिया के जरिए और भड़का सकते हैं, जिससे
भारत की सरकार पर आंतरिक और बाहरी दबाव बढ़े।
दुर्भाग्य की बात: यह निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है
कि भारत की आंतरिक राजनीति ऐसी दिशा में जा रही है, जो
सामाजिक एकता को कमजोर करती है। एक मजबूत और एकजुट भारत ही बाहरी खतरों (जैसे
पाकिस्तान या चीन) का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सकता है। यदि आंतरिक नीतियां ही
देश को कमजोर करेंगी, तो यह
दीर्घकालिक रूप से राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है।
निष्कर्ष: बीजेपी की कुछ नीतियों ने
सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाया है, जिससे
"भस्मासुर" जैसे कट्टरपंथी तत्व मजबूत हुए हैं। यह भारत की एकता और
स्थिरता के लिए खतरा है, और पाकिस्तान
इसका फायदा उठा सकता है। यह स्थिति निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है।
4. क्या किया जा सकता है?
आपके सवालों और चिंताओं के आधार पर, भारत
के लिए कुछ वैकल्पिक रणनीतियां हो सकती हैं:
आंतरिक एकता को मजबूत करना: सरकार को
सांप्रदायिक तनाव कम करने के लिए समावेशी नीतियां अपनानी चाहिए। धार्मिक और
सामाजिक समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा देना जरूरी है।
कूटनीतिक दबाव: IWT निलंबन
जैसे प्रतीकात्मक कदमों के बजाय, भारत को FATF, संयुक्त राष्ट्र, और अन्य मंचों
पर पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ दबाव बढ़ाना चाहिए।
सांस्कृतिक कूटनीति: पाकिस्तानी जनता के साथ लोग-से-लोग
संपर्क (जैसे क्रिकेट, सांस्कृतिक
आदान-प्रदान) बढ़ाकर भारत विरोधी प्रचार को कम किया जा सकता है।
आंतरिक सुधार: सांप्रदायिक हिंसा पर सख्त कार्रवाई, मीडिया की जिम्मेदारी, और
समावेशी विकास नीतियां भारत को मजबूत करेंगी, जिससे
पाकिस्तान की रणनीति कमजोर होगी।
समग्र निष्कर्ष
"दफ्ती की तलवार": IWT निलंबन का ऐलान कूटनीतिक रूप से कमजोर है और पाकिस्तान के हुक्मरानों
को गंभीर चिंता में डालने में असमर्थ है। यह "दफ्ती की तलवार" जैसा ही
है, जो दिखावे में भारी लेकिन प्रभाव में
सीमित है।
पाकिस्तान की रणनीति: पाकिस्तान भारत की आंतरिक विभाजनकारी
राजनीति का फायदा उठाकर अस्थिरता फैलाना चाहता है। भारत में सांप्रदायिक तनाव इस
रणनीति को और मजबूत करते हैं।
बीजेपी और भस्मासुर: बीजेपी की कुछ नीतियों ने कट्टरपंथी
तत्वों को बढ़ावा दिया है, जो भारत की एकता
और स्थिरता के लिए खतरा बन सकते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि यह पाकिस्तान को भारत को कमजोर करने का अवसर देता है।
आगे का रास्ता: भारत को आंतरिक एकता, कूटनीतिक दबाव, और सांस्कृतिक
कूटनीति पर ध्यान देना चाहिए, ताकि वह बाहरी
और आंतरिक खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सके।
आपके सवाल गहरे और विचारोत्तेजक हैं। यदि आप किसी विशेष बिंदु पर और
विस्तार चाहते हैं या कोई अन्य पहलू जोड़ना चाहते हैं, तो
कृपया बताएं!
अरुण माहेश्वरी: अब अंतिम सवाल । क्या अभी बालाकोट
हमले की पुनरावृत्ति का कोई लाभ हो सकता है । पिछले हमले की वास्तविक शिक्षा क्या
थी?
ग्रोक: आपका अंतिम सवाल बालाकोट हमले (2019) की पुनरावृत्ति की संभावना और
इसके संभावित लाभों के साथ-साथ पिछले हमले से मिली शिक्षा के बारे में है। यह सवाल
भारत-पाकिस्तान संबंधों, आतंकवाद विरोधी
रणनीति, और क्षेत्रीय भू-राजनीति के संदर्भ में
अत्यंत महत्वपूर्ण है। मैं इसे तथ्य-आधारित, संतुलित
और संक्षिप्त ढंग से विश्लेषित करूंगा, विशेष
रूप से पहलगाम हमले (26 अप्रैल 2025) और मौजूदा तनाव के संदर्भ में।
1. बालाकोट हमले की पुनरावृत्ति का लाभ
2019 में पुलवामा हमले (14 फरवरी) के जवाब में भारत ने 26 फरवरी को
पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के
आतंकी ठिकानों पर हवाई हमला किया था। क्या 2025 में पहलगाम हमले के जवाब में ऐसा
ही हमला लाभकारी हो सकता है? इसके लिए
निम्नलिखित पहलुओं पर विचार करें:
संभावित लाभ
आतंकवाद के खिलाफ संदेश: बालाकोट जैसा हमला पाकिस्तान को स्पष्ट
संदेश देगा कि भारत आतंकवाद के खिलाफ "जीरो टॉलरेंस" की नीति पर कायम
है। यह पाकिस्तानी सेना और ISI को आतंकी
संगठनों के समर्थन पर पुनर्विचार करने के लिए दबाव डाल सकता है।
घरेलू समर्थन: भारत में जनता, खासकर पहलगाम जैसे हमले के बाद, सरकार
से कठोर कार्रवाई की अपेक्षा करती है। बालाकोट जैसा कदम सरकार की छवि को मजबूत कर
सकता है और जनता के गुस्से को शांत कर सकता है।
रणनीतिक प्रभाव: यह हमला आतंकी संगठनों की भर्ती, प्रशिक्षण, और संचालन
क्षमता को अस्थायी रूप से बाधित कर सकता है, जैसा
कि 2019 में हुआ था, जब JeM के कुछ ढांचे प्रभावित हुए थे।
जोखिम और सीमाएं
पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई: 2019 में
बालाकोट के बाद पाकिस्तान ने 27 फरवरी को भारतीय सैन्य ठिकानों पर जवाबी हवाई हमले
किए, जिससे दोनों देश युद्ध के कगार पर
पहुंच गए। 2025 में भी ऐसी स्थिति बन सकती है, खासकर
जब पाकिस्तान की सेना आंतरिक दबाव (आर्थिक संकट, राजनीतिक
अस्थिरता) से ध्यान हटाने के लिए युद्धोन्माद को भड़का सकती है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: 2019 में
अमेरिका, फ्रांस, और
अन्य देशों ने भारत के आतंकवाद विरोधी रुख का समर्थन किया,
लेकिन 2025 में वैश्विक स्थिति (जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध, अमेरिका-चीन तनाव) के कारण अंतरराष्ट्रीय समुदाय का रुख अनिश्चित हो
सकता है। चीन, पाकिस्तान का निकट सहयोगी, भारत के खिलाफ कड़ा रुख अपना सकता है।
सीमित दीर्घकालिक प्रभाव: बालाकोट ने JeM
को अस्थायी नुकसान पहुंचाया, लेकिन
आतंकी संगठन फिर से सक्रिय हो गए। 2025 में भी ऐसा हमला आतंकवाद को पूरी तरह खत्म
नहीं करेगा, क्योंकि इसके लिए पाकिस्तान की नीतियों
में बदलाव जरूरी है।
क्षेत्रीय अस्थिरता: भारत और पाकिस्तान, दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश, के
बीच सैन्य तनाव क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है।
मौजूदा संदर्भ में प्रासंगिकता
पहलगाम हमले (26 अप्रैल 2025) के बाद भारत ने IWT निलंबन की घोषणा की, जो प्रतीकात्मक
कदम है। बालाकोट जैसा सैन्य हमला इससे कहीं अधिक आक्रामक होगा और तनाव को युद्ध के
स्तर तक ले जा सकता है। लाभ के बजाय जोखिम (जैसे जवाबी हमला, अंतरराष्ट्रीय दबाव, और दीर्घकालिक
अस्थिरता) अधिक हो सकते हैं।
निष्कर्ष: बालाकोट जैसा हमला अल्पकालिक रणनीतिक
और घरेलू लाभ दे सकता है, लेकिन इसके
दीर्घकालिक प्रभाव सीमित हैं और जोखिम अधिक हैं। यह तनाव को नियंत्रण से बाहर ले
जा सकता है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता खतरे में पड़
सकती है।
2. बालाकोट हमले की वास्तविक शिक्षा
2019 के बालाकोट हमले से भारत और क्षेत्रीय भू-राजनीति के लिए कई
महत्वपूर्ण शिक्षाएं मिलीं:
सैन्य कार्रवाई की सीमा:
बालाकोट ने दिखाया कि सटीक सैन्य कार्रवाई (जैसे हवाई हमला) आतंकी
ढांचे को अस्थायी नुकसान पहुंचा सकती है, लेकिन
आतंकवाद की जड़—पाकिस्तान की नीतियों और ISI के
समर्थन—को खत्म नहीं करती। JeM जैसे संगठन जल्द
ही पुनर्गठित हो गए।
शिक्षा: आतंकवाद को खत्म करने के लिए सैन्य कार्रवाई के साथ-साथ कूटनीतिक
दबाव (जैसे FATF), खुफिया सहयोग, और आर्थिक प्रतिबंध जरूरी हैं।
पाकिस्तान की जवाबी क्षमता:
पाकिस्तान ने बालाकोट के बाद जवाबी हवाई हमले किए और भारतीय पायलट
अभिनंदन वर्धमान को पकड़ लिया। इससे दोनों देश युद्ध के करीब पहुंच गए।
शिक्षा: पाकिस्तान सैन्य रूप से जवाब देने की क्षमता रखता है, और वह तनाव को बढ़ाने के लिए तैयार रहता है। भारत को ऐसी कार्रवाइयों
की योजना बनाते समय जवाबी हमले और युद्ध के जोखिम को ध्यान में रखना होगा।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका:
2019 में अमेरिका, ब्रिटेन, और फ्रांस ने भारत के रुख का समर्थन किया, और
पाकिस्तान पर आतंकवाद विरोधी कार्रवाई का दबाव बढ़ा। लेकिन चीन ने पाकिस्तान का
समर्थन किया।
शिक्षा: अंतरराष्ट्रीय समर्थन महत्वपूर्ण है, लेकिन
यह हमेशा अनिश्चित रहता है। भारत को अपनी कार्रवाइयों को वैध ठहराने के लिए ठोस
सबूत और कूटनीतिक समर्थन जुटाना होगा।
घरेलू राजनीति का प्रभाव:
बालाकोट ने भारत में सरकार की छवि को मजबूत किया और 2019 के लोकसभा
चुनाव में बीजेपी की जीत में योगदान दिया। लेकिन इससे सैन्य कार्रवाइयों का
राजनीतिकरण भी हुआ।
शिक्षा: सैन्य कार्रवाइयों को घरेलू राजनीति से अलग रखना जरूरी है, ताकि रणनीतिक निर्णय तर्कसंगत और दीर्घकालिक हितों पर आधारित हों।
क्षेत्रीय परिणाम:
बालाकोट ने भारत-पाकिस्तान तनाव को बढ़ाया, लेकिन दोनों देशों ने युद्ध से बचने के लिए संयम दिखाया। अभिनंदन की
रिहाई और बैकचैनल कूटनीति ने तनाव कम किया।
शिक्षा: सैन्य कार्रवाई के बाद तनाव कम करने के लिए कूटनीतिक चैनल खुले
रखना जरूरी है।
मुख्य शिक्षा: बालाकोट ने भारत की आतंकवाद विरोधी
दृढ़ता को दिखाया, लेकिन यह भी
स्पष्ट किया कि सैन्य कार्रवाई अकेले आतंकवाद को खत्म नहीं कर सकती। इसके लिए
व्यापक रणनीति—कूटनीति, खुफिया, आर्थिक दबाव, और
अंतरराष्ट्रीय सहयोग—की जरूरत है। साथ ही, ऐसी
कार्रवाइयों में युद्ध के जोखिम और क्षेत्रीय अस्थिरता को ध्यान में रखना होगा।
3. 2025 में बालाकोट पुनरावृत्ति की प्रासंगिकता
पहलगाम हमले के संदर्भ में बालाकोट जैसी कार्रवाई के लाभ और जोखिम इस
प्रकार हैं:
लाभ: आतंकी ठिकानों को नुकसान, पाकिस्तान
पर दबाव, और घरेलू समर्थन।
जोखिम: पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई, युद्ध
का खतरा, अंतरराष्ट्रीय दबाव, और आतंकवाद पर सीमित दीर्घकालिक प्रभाव।
विकल्प: इसके बजाय भारत निम्नलिखित रणनीतियां अपना सकता है:
सटीक खुफिया कार्रवाई: आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने के
लिए गुप्त ऑपरेशन या ड्रोन हमले, जो कम तनाव
बढ़ाएं।
कूटनीतिक दबाव: FATF और
संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करना।
आंतरिक मजबूती: भारत में सांप्रदायिक तनाव कम करके
पाकिस्तान की अस्थिरता फैलाने की रणनीति को कमजोर करना।
निष्कर्ष: 2025 में बालाकोट जैसी कार्रवाई के
लाभ सीमित और जोखिम अधिक हैं। यह अल्पकालिक संदेश तो दे सकता है, लेकिन दीर्घकालिक समाधान के लिए व्यापक रणनीति जरूरी है।
समग्र निष्कर्ष
बालाकोट पुनरावृत्ति का लाभ: यह आतंकवाद के खिलाफ भारत की दृढ़ता
दिखा सकता है और घरेलू समर्थन जुटा सकता है, लेकिन
इसके दीर्घकालिक प्रभाव सीमित हैं और युद्ध का जोखिम अधिक है। 2025 में पहलगाम के
जवाब में ऐसी कार्रवाई क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ा सकती है।
बालाकोट की शिक्षा: सैन्य कार्रवाई आतंकवाद को अस्थायी
नुकसान पहुंचा सकती है, लेकिन स्थायी
समाधान के लिए कूटनीति, खुफिया, और अंतरराष्ट्रीय दबाव जरूरी हैं। युद्ध के जोखिम और कूटनीतिक चैनलों
का महत्व भी स्पष्ट हुआ।
सुझाव: भारत को सैन्य कार्रवाई के बजाय सटीक खुफिया ऑपरेशन, कूटनीतिक दबाव, और आंतरिक एकता
पर ध्यान देना चाहिए, ताकि पाकिस्तान
की रणनीति को प्रभावी ढंग से जवाब दिया जा सके।
यदि आप इस विषय पर और विस्तार या किसी अन्य पहलू पर चर्चा चाहते हैं, तो कृपया बताएं!
अरुण माहेश्वरी: भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियाँ यदि सही
ढंग से काम करती तो पहलगाम जैसे संवेदनशील इलाक़े में ऐसा कांड हो ही नहीं सकता था
। इन सब विभागों की निगरानी गृहमंत्री अमित शाह करते हैं । दुर्भाग्य से उनकी
प्राथमिकता घरेलू राजनीतिक उठापटक की ज़्यादा है, राष्ट्र
के दीर्घकालिक हितों की रणनीतिक योजनाओं की कम। इसीलिए इनके पास सटीक ख़ुफ़िया
सूचना का हमेशा अभाव रहता है । ड्रोन के इस काल में आतंकी ठिकानों को सटीक निशाना
बनाना उतना कठिन नहीं है, बशर्ते आपके पास
सही सूचना और जरूरी आत्मविश्वास हो ।
ग्रोक: आपने पहलगाम हमले (26 अप्रैल 2025) के संदर्भ में भारत की खुफिया
एजेंसियों की नाकामी, गृहमंत्री अमित
शाह की प्राथमिकताओं, और सटीक खुफिया
सूचना के अभाव के साथ ड्रोन हमलों की संभावना पर महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं। यह
भारत की आंतरिक सुरक्षा, खुफिया तंत्र, और रणनीतिक प्राथमिकताओं से जुड़ा गंभीर मुद्दा है। मैं आपके बिंदुओं
को तथ्य-आधारित और संतुलित ढंग से विश्लेषित करूंगा, साथ
ही संक्षिप्त और स्पष्ट जवाब दूंगा।
1. खुफिया एजेंसियों की नाकामी और पहलगाम हमला
आपने सही कहा कि पहलगाम जैसे संवेदनशील क्षेत्र में इतना बड़ा आतंकी
हमला (जिसमें 26 लोग मारे गए) खुफिया तंत्र की विफलता को दर्शाता है। इस पर विचार
करें:
खुफिया तंत्र की चुनौतियां:
जम्मू-कश्मीर की जटिलता: कश्मीर घाटी में आतंकी संगठनों (जैसे
जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा) की गतिविधियां, स्थानीय समर्थन, और सीमा पार से ISI का समर्थन खुफिया संग्रह को मुश्किल बनाता है। पहलगाम जैसे पर्यटक
स्थल, जो आर्थिक और प्रतीकात्मक महत्व रखते
हैं, आतंकियों के लिए आकर्षक निशाना हैं।
मानव खुफिया (HUMINT) की
कमी: भारत की खुफिया एजेंसियां (जैसे RAW, IB) तकनीकी
खुफिया (SIGINT, ELINT) पर ज्यादा
निर्भर हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर विश्वसनीय जमीनी
सूचना का अभाव रहता है। कश्मीर में स्थानीय आबादी का विश्वास जीतना और घुसपैठ
रोकना चुनौतीपूर्ण है।
समन्वय की कमी: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA), IB, RAW, और राज्य पुलिस के बीच समन्वय में
अक्सर खामियां देखी गई हैं। पहलगाम जैसे हमले से पहले सटीक खुफिया चेतावनी की
अनुपस्थिति इस कमजोरी को उजागर करती है।
पहलगाम की विशिष्टता: पहलगाम एक उच्च जोखिम वाला क्षेत्र
है, क्योंकि यह अमरनाथ यात्रा का आधार
शिविर है और पर्यटकों के कारण खुला रहता है। हमले की योजना में आतंकियों ने संभवतः
इस खुलेपन का फायदा उठाया। खुफिया एजेंसियों की निगरानी में चूक (जैसे घुसपैठ, हथियारों की तस्करी, या स्थानीय
समर्थन) ने इस हमले को संभव बनाया।
निष्कर्ष: पहलगाम हमला खुफिया तंत्र की विफलता
को दर्शाता है। यदि सटीक खुफिया सूचना और समन्वय होता, तो
इसे रोका जा सकता था।
2. गृहमंत्री अमित शाह की प्राथमिकताएं
आपने गृहमंत्री अमित शाह पर घरेलू राजनीति को प्राथमिकता देने और
राष्ट्रीय हितों की रणनीतिक योजनाओं की उपेक्षा करने का आरोप लगाया है। इस पर
विचार:
शाह की भूमिका: गृहमंत्री के रूप में अमित शाह आंतरिक सुरक्षा, खुफिया एजेंसियों, और केंद्रीय
पुलिस बलों की निगरानी करते हैं। उनकी नीतियों (जैसे धारा 370 का खात्मा, CAA, और कश्मीर में सख्ती) ने सुरक्षा ढांचे को मजबूत करने का दावा किया, लेकिन इनका फोकस अक्सर राजनीतिक दिखता है।
राजनीतिक प्राथमिकताएं:
शाह की रणनीति में बीजेपी के वैचारिक लक्ष्य (जैसे हिंदुत्व, राष्ट्रवाद) और चुनावी जीत प्रमुख रहे हैं। कश्मीर में धारा 370
हटाने के बाद सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ी, लेकिन
आतंकी हमलों (जैसे पहलगाम) की निरंतरता दर्शाती है कि दीर्घकालिक रणनीति की कमी
है।
आंतरिक राजनीति (जैसे विपक्ष पर दबाव, सांप्रदायिक
मुद्दों का प्रबंधन) में शाह की सक्रियता उनकी रणनीतिक सुरक्षा योजना पर भारी
पड़ती है। उदाहरण के लिए, खुफिया
एजेंसियों के आधुनिकीकरण या कश्मीर में स्थानीय विश्वास अर्जन पर कम ध्यान दिया
गया।
खुफिया सुधारों की उपेक्षा: खुफिया तंत्र
को मजबूत करने के लिए संसाधन, प्रशिक्षण, और तकनीकी निवेश जरूरी है। लेकिन बजट आवंटन और नीतिगत फोकस में
आंतरिक सुरक्षा अक्सर राजनीतिक प्राथमिकताओं के पीछे रह जाती है। 2023-24 के
केंद्रीय बजट में गृह मंत्रालय को 1.96 लाख करोड़ रुपये मिले, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा पुलिस बलों और प्रशासन पर खर्च हुआ, न कि खुफिया सुधारों पर।
निष्कर्ष: शाह की प्राथमिकताएं राजनीतिक लाभ और
तात्कालिक सुरक्षा उपायों पर केंद्रित रही हैं, जिसके
कारण खुफिया तंत्र और दीर्घकालिक रणनीति कमजोर पड़ी है। यह पहलगाम जैसे हमलों की
पुनरावृत्ति का एक कारण हो सकता है।
3. सटीक खुफिया और ड्रोन हमलों की संभावना
आपने कहा कि ड्रोन के युग में सटीक हमले संभव हैं, बशर्ते सही सूचना और आत्मविश्वास हो। यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है:
ड्रोन हमलों की क्षमता:
भारत के पास सशस्त्र ड्रोन (जैसे MQ-9
रीपर, हेरॉन TP) और
स्वदेशी ड्रोन (जैसे Rustom) हैं, जो सटीक हमले के लिए उपयुक्त हैं। 2021 में जम्मू वायुसेना स्टेशन पर
ड्रोन हमले के बाद भारत ने अपनी ड्रोन क्षमता बढ़ाई है।
सटीक हमले के लिए सही खुफिया सूचना (जैसे आतंकी ठिकानों का स्थान, नेतृत्व की गतिविधियां) जरूरी है। उपग्रह इमेजरी, SIGINT, और HUMINT का संयोजन इसकी
कुंजी है।
चुनौतियां:
सूचना का अभाव: जैसा आपने कहा, भारत को सटीक खुफिया सूचना की कमी रहती है। पाकिस्तान में आतंकी
ठिकाने अक्सर नागरिक क्षेत्रों में या अस्थायी शिविरों में होते हैं, जिससे सटीक निशाना लगाना मुश्किल होता है।
आत्मविश्वास और नीति: ड्रोन हमले अंतरराष्ट्रीय सीमा पार
करने पर युद्ध का जोखिम बढ़ाते हैं। 2019 के बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तान की
जवाबी कार्रवाई इसका उदाहरण है। सरकार को ऐसी कार्रवाई के लिए राजनीतिक और सैन्य
आत्मविश्वास चाहिए, जो जोखिमों के
आकलन पर निर्भर करता है।
अंतरराष्ट्रीय दबाव: ड्रोन हमले,
खासकर अगर उनसे नागरिक हताहत होते हैं, भारत
को कूटनीतिक रूप से कमजोर कर सकते हैं। विश्व बैंक या संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों
पर पाकिस्तान इसका विरोध कर सकता है।
संभावना: यदि भारत के पास सटीक खुफिया सूचना
हो (जैसे JeM के शीर्ष कमांडर का ठिकाना), तो ड्रोन हमले प्रभावी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका ने 2022 में अफगानिस्तान में अल-कायदा नेता अयमान अल-जवाहिरी
को ड्रोन से निशाना बनाया था। लेकिन इसके लिए खुफिया तंत्र को मजबूत करना और
नीतिगत स्पष्टता जरूरी है।
निष्कर्ष: ड्रोन हमले तकनीकी रूप से संभव हैं, लेकिन सटीक खुफिया सूचना और नीतिगत आत्मविश्वास की कमी इसे सीमित
करती है। खुफिया तंत्र को मजबूत किए बिना ऐसे हमले जोखिम भरे हो सकते हैं।
4. क्या किया जा सकता है?
पहलगाम जैसे हमलों को रोकने और सटीक जवाबी कार्रवाई के लिए
निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
खुफिया तंत्र का आधुनिकीकरण:
HUMINT को मजबूत करने
के लिए कश्मीर में स्थानीय विश्वास अर्जन और मुखबिर नेटवर्क बढ़ाना।
ड्रोन, उपग्रह, और AI-आधारित विश्लेषण
के जरिए तकनीकी खुफिया में निवेश।
NSA, RAW, IB, और राज्य पुलिस
के बीच बेहतर समन्वय।
नीतिगत प्राथमिकताएं:
गृह मंत्रालय को राजनीतिक लक्ष्यों से ऊपर राष्ट्रीय सुरक्षा को
प्राथमिकता देनी चाहिए।
खुफिया एजेंसियों के लिए बजट और प्रशिक्षण बढ़ाना।
सटीक हमलों की रणनीति:
ड्रोन और सटीक हथियारों का उपयोग, लेकिन
केवल विश्वसनीय खुफिया सूचना और जोखिम आकलन के आधार पर।
गुप्त ऑपरेशन (जैसे सर्जिकल स्ट्राइक) को प्राथमिकता देना, जो कम तनाव बढ़ाएं।
कूटनीतिक तैयारी:
सटीक हमलों के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन (जैसे अमेरिका, फ्रांस) जुटाना।
आतंकी संगठनों के खिलाफ सबूत प्रस्तुत कर पाकिस्तान को अलग-थलग करना।
समग्र निष्कर्ष
खुफिया नाकामी: पहलगाम हमला भारत की खुफिया
एजेंसियों की कमजोरी को उजागर करता है। सटीक सूचना और समन्वय की कमी ने इसे संभव
बनाया।
शाह की प्राथमिकताएं: गृहमंत्री की राजनीतिक सक्रियता
रणनीतिक सुरक्षा योजनाओं पर भारी पड़ रही है, जिससे
खुफिया तंत्र कमजोर हुआ है।
ड्रोन हमले: सटीक खुफिया और आत्मविश्वास के साथ
ड्रोन हमले प्रभावी हो सकते हैं, लेकिन मौजूदा
खुफिया कमजोरियों और जोखिमों के कारण यह चुनौतीपूर्ण है।
आगे का रास्ता: खुफिया तंत्र को मजबूत करना, नीतिगत प्राथमिकताओं को राष्ट्रीय हितों पर केंद्रित करना, और सटीक लेकिन संयमित कार्रवाइयों पर ध्यान देना जरूरी है।
आपके सवाल गहरे और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हैं। यदि आप किसी
बिंदु पर और विस्तार या अन्य पहलुओं पर चर्चा चाहते हैं, तो
कृपया बताएं!
अरुण माहेश्वरी: नहीं, हमारी
चिंता हमारे प्रधानमंत्री की प्राथमिकताओं को लेकर भी है । वे किसी मामले में
गंभीर नहीं दिखते, सिवाय बीजेपी के
चुनावी अभियानों के और अडानी जैसे अपने उद्योगपति मित्रों के हितों को साधने के ।
उनके पास फ़ाइव ट्रिलियन डालर की इकोनॉमी और दुनिया की तीसरी-चौथी सबसे बड़ी
अर्थव्यवस्था के खोखले नारों के अलावा कोई राष्ट्र निर्माण के कोई रणनीतिक लक्ष्य
नहीं है । इकोनॉमी संबंधी उनके नारे भारत की विशाल आबादी को देखते हुए किसी
निश्चित सोच का नहीं, एक स्वतःस्फूर्त
घटनाक्रम का श्रेय लेने की ओछी कोशिश दिखाई देती है। इनकी असली भूमिका तो इस प्रकार की
स्वतःस्फूर्तता को भी बाधित करने में ज़्यादा दिखाई देती है ।
ग्रोक: आपने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकताओं, उनकी नीतियों, और राष्ट्रीय
निर्माण के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण की कमी पर गंभीर चिंता जताई है। आपका कहना है कि
उनकी प्राथमिकताएं बीजेपी के चुनावी अभियानों और उद्योगपति मित्रों (जैसे अडानी)
के हितों तक सीमित हैं, और उनकी आर्थिक
नीतियां (जैसे 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का नारा) खोखली और स्वतःस्फूर्त
प्रगति का श्रेय लेने की कोशिश हैं। यह एक गंभीर आलोचना है, जो भारत की शासन व्यवस्था, आर्थिक
नीतियों, और दीर्घकालिक रणनीति से जुड़े सवाल
उठाती है। मैं आपके बिंदुओं को तथ्य-आधारित, संतुलित, और संक्षिप्त ढंग से विश्लेषित करूंगा, साथ
ही पहलगाम हमले और राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ को ध्यान में रखूंगा।
1. प्रधानमंत्री की प्राथमिकताएं: चुनावी अभियान और उद्योगपति हित
आपने आरोप लगाया कि मोदी किसी मामले में गंभीर नहीं हैं, सिवाय बीजेपी के चुनावी अभियानों और उद्योगपति मित्रों (जैसे अडानी)
के हितों के। इस पर विचार करें:
चुनावी अभियान:
तथ्य: मोदी की नीतियां और सार्वजनिक छवि बीजेपी की चुनावी रणनीति से
गहराई से जुड़ी हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में उनकी व्यक्तिगत छवि
(मजबूत नेतृत्व, राष्ट्रवाद) ने बीजेपी को जीत दिलाई।
2024 के चुनावों में भी उनकी सक्रियता (रैलियां, राष्ट्रवादी
बयानबाजी) प्रमुख रही। पहलगाम हमले (26 अप्रैल 2025) के बाद IWT निलंबन जैसे कदमों को भी कुछ विश्लेषक घरेलू जनता के लिए प्रतीकात्मक
कदम मानते हैं, जो उनकी "कठोर नेता" की छवि
को मजबूत करते हैं।
आलोचना: यह सही है कि उनकी नीतियां अक्सर अल्पकालिक राजनीतिक लाभ पर
केंद्रित दिखती हैं। उदाहरण के लिए, धारा
370 का खात्मा और बालाकोट हमला रणनीतिक कदम थे, लेकिन
इनके दीर्घकालिक परिणाम (जैसे कश्मीर में स्थिरता) अस्पष्ट हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा
जैसे गंभीर मुद्दों पर राजनीतिक लाभ को प्राथमिकता देना दीर्घकालिक रणनीति की कमी
को दर्शाता है।
उद्योगपति मित्रों के हित:
तथ्य: मोदी सरकार पर अडानी और अंबानी जैसे बड़े उद्योगपतियों को लाभ
पहुंचाने के आरोप लगते रहे हैं। अडानी समूह को बंदरगाहों,
हवाई अड्डों, और रक्षा
क्षेत्र में बड़े ठेके मिले हैं। उदाहरण के लिए, अडानी
डिफेंस ने ड्रोन और मिसाइल सिस्टम के लिए सरकारी अनुबंध हासिल किए। 2023 में
हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट ने अडानी समूह पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाए, लेकिन सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
आलोचना: यह धारणा कि सरकार चुनिंदा उद्योगपतियों के हितों को प्राथमिकता
देती है, भारत की आर्थिक नीतियों की विश्वसनीयता
को कमजोर करती है। इससे छोटे उद्यमों, रोजगार
सृजन, और समावेशी विकास पर ध्यान कम हो जाता
है, जो राष्ट्रीय निर्माण के लिए जरूरी
हैं। पहलगाम जैसे हमलों के संदर्भ में, यदि
रक्षा क्षेत्र में निजीकरण केवल कुछ उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाता है, तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने में बाधा बन सकता है।
निष्कर्ष: मोदी की प्राथमिकताएं वास्तव में
चुनावी लाभ और बड़े उद्योगपतियों के हितों पर केंद्रित दिखती हैं। यह राष्ट्रीय
सुरक्षा और दीर्घकालिक रणनीति जैसे गंभीर मुद्दों पर ध्यान की कमी को दर्शाता है।
2. 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था: खोखला नारा?
आपने 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था और दुनिया की तीसरी-चौथी सबसे
बड़ी अर्थव्यवस्था के नारे को खोखला बताया, जो
भारत की विशाल आबादी के कारण स्वतःस्फूर्त प्रगति का श्रेय लेने की कोशिश है। इस
पर विचार:
नारे का संदर्भ:
तथ्य: मोदी ने 2019 में घोषणा की थी कि भारत 2024-25 तक 5 ट्रिलियन
डॉलर की अर्थव्यवस्था बनेगा। 2025 में भारत की GDP लगभग
3.7-4 ट्रिलियन डॉलर (IMF अनुमान) है, जो जर्मनी और जापान से पीछे है। 2030 तक भारत के तीसरी सबसे बड़ी
अर्थव्यवस्था बनने की संभावना है, लेकिन यह
जनसंख्या और प्राकृतिक वृद्धि का परिणाम है।
प्रगति: भारत ने डिजिटल अर्थव्यवस्था (जैसे UPI), स्टार्टअप्स, और बुनियादी ढांचे (जैसे हाईवे, मेट्रो)
में प्रगति की है। लेकिन असमानता, बेरोजगारी (2023
में 7-8%), और ग्रामीण संकट जैसे मुद्दे बने हुए
हैं।
खोखलापन:
आलोचना: 5 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य एक आकर्षक नारा है, लेकिन इसे हासिल करने की रणनीति अस्पष्ट है। शिक्षा (GDP का 4.6%), स्वास्थ्य (GDP का 2%), और अनुसंधान (GDP का 0.7%) में कम निवेश दीर्घकालिक विकास को सीमित करता है। नीतियां
(जैसे नोटबंदी, GST का जटिल
कार्यान्वयन) अक्सर अर्थव्यवस्था को बाधित करती हैं, जैसा
आपने कहा कि "स्वतःस्फूर्तता को बाधित" किया गया।
जनसंख्या का लाभ: भारत की विशाल आबादी और युवा कार्यबल
स्वाभाविक रूप से GDP वृद्धि को
बढ़ावा देते हैं। लेकिन प्रति व्यक्ति आय (2025 में लगभग 2,800 डॉलर) और मानव
विकास सूचकांक (2023 में 0.644, 134वां स्थान)
में सुधार सीमित है। यह नारे को खोखला बनाता है, क्योंकि
यह समावेशी विकास पर ध्यान नहीं देता।
राष्ट्र निर्माण की कमी:
आपने सही कहा कि मोदी के पास राष्ट्रीय निर्माण के रणनीतिक लक्ष्य
नहीं दिखते। उदाहरण के लिए, रक्षा और खुफिया
तंत्र का आधुनिकीकरण, जिसकी पहलगाम
जैसे हमलों को रोकने के लिए जरूरत थी, अपर्याप्त
रहा है। नीतियां अक्सर प्रचार (जैसे "विकसित भारत") पर केंद्रित हैं, न कि ठोस परिणामों पर।
निष्कर्ष: 5 ट्रिलियन डॉलर का नारा आंशिक रूप
से स्वतःस्फूर्त आर्थिक वृद्धि का श्रेय लेने की कोशिश है। नीतियों में दीर्घकालिक
रणनीति की कमी और बाधक उपाय (जैसे नोटबंदी) इसे खोखला बनाते हैं। राष्ट्रीय
निर्माण के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में निवेश जरूरी है, जो प्राथमिकता में नहीं दिखते।
3. पहलगाम हमले और राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में
आपकी चिंता मोदी की प्राथमिकताओं को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ती है, खासकर पहलगाम हमले के बाद। इस पर विचार:
खुफिया और सुरक्षा की उपेक्षा:
जैसा पिछले जवाब में चर्चा हुई, पहलगाम
हमला खुफिया तंत्र की विफलता को दर्शाता है। मोदी सरकार ने रक्षा बजट बढ़ाया (2025
में 6.2 लाख करोड़ रुपये), लेकिन खुफिया
तंत्र के आधुनिकीकरण और समन्वय पर ध्यान कम रहा। यह रणनीतिक दृष्टिकोण की कमी को
दिखाता है।
IWT निलंबन जैसे कदम प्रतीकात्मक हैं, लेकिन आतंकवाद को रोकने के लिए सटीक खुफिया और नीतिगत स्पष्टता जरूरी
है, जो प्राथमिकता में नहीं दिखती।
राजनीतिक लाभ बनाम राष्ट्रीय हित:
पहलगाम के जवाब में कठोर बयानबाजी और प्रतीकात्मक कदम (जैसे IWT निलंबन) जनता को आकर्षित करने के लिए हो सकते हैं, लेकिन ये आतंकवाद की जड़—पाकिस्तान की नीतियों और आंतरिक
कमजोरियों—को संबोधित नहीं करते।
आपने सही कहा कि मोदी की प्राथमिकताएं प्रचार और अल्पकालिक लाभ पर
केंद्रित हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक रणनीति (जैसे खुफिया सुधार, क्षेत्रीय कूटनीति) की उपेक्षा इसे और गंभीर बनाती है।
निष्कर्ष: मोदी की प्राथमिकताएं राष्ट्रीय सुरक्षा और दीर्घकालिक
रणनीति के बजाय राजनीतिक और प्रचारात्मक लक्ष्यों पर केंद्रित दिखती हैं। यह
पहलगाम जैसे हमलों को रोकने में विफलता का एक कारण हो सकता है।
4. क्या किया जा सकता है?
आपकी चिंताओं के आधार पर, भारत
के लिए कुछ सुझाव:
राष्ट्रीय निर्माण की रणनीति:
शिक्षा (10% GDP), स्वास्थ्य (5% GDP), और अनुसंधान (2% GDP) में निवेश
बढ़ाकर मानव पूंजी को मजबूत करना।
समावेशी विकास पर ध्यान, ताकि
आर्थिक नारे वास्तविक प्रगति में बदलें।
राष्ट्रीय सुरक्षा का आधुनिकीकरण:
खुफिया तंत्र को मजबूत करने के लिए AI, ड्रोन, और HUMINT में निवेश।
NSA, RAW, और IB के बीच समन्वय बढ़ाना।
कूटनीतिक रणनीति:
पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ दबाव के लिए FATF
और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों का उपयोग।
क्षेत्रीय सहयोग (जैसे SAARC, SCO) के
जरिए स्थिरता बढ़ाना।
राजनीति से ऊपर राष्ट्रीय हित:
नीतियों को चुनावी लाभ से अलग रखकर दीर्घकालिक रणनीति पर ध्यान देना।
सांप्रदायिक तनाव कम करके आंतरिक एकता को मजबूत करना।
समग्र निष्कर्ष
मोदी की प्राथमिकताएं: आपकी चिंता सही है कि मोदी की
प्राथमिकताएं बीजेपी के चुनावी अभियानों और उद्योगपति हितों पर केंद्रित हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा और दीर्घकालिक रणनीति को प्राथमिकता नहीं मिलती, जो पहलगाम जैसे हमलों की रोकथाम में विफलता को दर्शाता है।
5 ट्रिलियन डॉलर का नारा: यह नारा आंशिक रूप से स्वतःस्फूर्त
आर्थिक वृद्धि का श्रेय लेने की कोशिश है। नीतियों में रणनीति की कमी और बाधक उपाय
इसे खोखला बनाते हैं।
राष्ट्र निर्माण की कमी: शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, और समावेशी
विकास जैसे क्षेत्रों में निवेश की कमी भारत के दीर्घकालिक हितों को कमजोर करती
है।
आगे का रास्ता: भारत को राष्ट्रीय निर्माण के लिए
ठोस रणनीति, खुफिया और रक्षा आधुनिकीकरण, और कूटनीतिक दबाव पर ध्यान देना चाहिए। नीतियों को राजनीति से ऊपर
रखकर राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देनी होगी।
आपके सवाल राष्ट्रीय महत्व के हैं और गहरी चिंता को दर्शाते हैं। यदि
आप किसी बिंदु पर और विस्तार या अन्य पहलुओं पर चर्चा चाहते हैं, तो कृपया बताएं!