-अरुण माहेश्वरी
हमारे सामने यह सवाल अब केवल भारतीय राजनीति का नहीं रह गया है कि उसमें शशि थरूर कहाँ खड़े हैं; यह एक मनोविश्लेषणात्मक-टोपोलॉजिकल प्रश्न भी बन चुका है — एक ऐसा प्रश्न जो जॉक लकान के उस विचार के आलोक में और अधिक स्पष्ट होता है जहाँ प्रमाता की संरचना एक गाँठ के रूप में दिखाई देती है: बोरोमियन गाँठ (Borromean Knot) के रूप में।
इस गाँठ में तीन छल्ले होते हैं — और यदि इनमें से कोई एक भी काट दिया जाए, तो बाकी दो स्वतः अलग हो जाते हैं। लकान ने इन छल्लों को प्रमाता (subject) के तीन मूलभूत आयामों के रूप में देखा: रीयल (Real), प्रतीकात्मक (Symbolic), और छविमूलक (Imaginary)। इन्हें उन्होंने RSI कहा — Real, Symbolic, Imaginary।
रीयल का अर्थ सामान्य यथार्थ नहीं, प्रमाता के चित्त में प्रवेश करने वाला वह विशेष यथार्थ होता है जिसके साक्षात्कार से प्रमाता में विशेष प्रकार के भावों का उद्रेक होता है । इसे मनोविश्लेषण की भाषा में लकानियन रीयल कहा जाता है। सिंबोलिक वह प्रतीकात्मकता है जो प्रमाता के संस्कारों, उसकी भाषा और संस्कृति के रूप में उसे गढ़ती है । और इमेजिनेरी का संबंध काल्पनिकता से नहीं, प्रतिमा/छवि से है जो प्रमाता की अपने मन और समाज में छवि को दर्शाती है । यह भी प्रमाता के गठन का एक मुख्य कारक होता है ।
नीचे दिया गया चित्र बोरोमियन गाँठ की संरचना का चित्र है, जिसमें तीन छल्ले एक-दूसरे से ऐसे जुड़े हुए हैं कि कोई भी एक अलग हो जाए तो बाकी दो भी स्वतः बिखर जाते हैं ।
(यह चित्र बोरोमियन गाँठ की संरचना को रंगों के माध्यम से स्पष्ट करता है — हरा (Real), नीला(Symbolic), और लाल (Imaginary)। इन तीनों के सामंजस्य से ही प्रमाता का संतुलन बनता है।)
थरूर की बोरोमियन संरचना
शशि थरूर की अब तक की सार्वजनिक छवि — एक शानदार अंग्रेज़ी वक्ता, संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारी, कांग्रेस के सांसद, और एक उदार, धर्मनिरपेक्ष भारतीय बुद्धिजीवी की रही है। इस पूरी संरचना को RSI के आलोक में देखा जा सकता है।
इसका रीयल है — केरल में कांग्रेस पार्टी के भीतर की जमीनी गुटबाज़ी, जातीय समीकरण, कांग्रेस का उनके प्रति अप्रत्याशित व्यवहार, और सीपीआईएम–आरएसएस के द्वंद्व का क्षेत्रीय दबाव। ये सभी वे कठोर यथार्थ (Real) हैं जो थरूर की लोक-छवि और प्रतीकात्मक स्थिति को निरंतर चुनौती देते हैं।
इस संरचना का प्रतीकात्मक छल्ला कांग्रेस की सेकुलर विचारधारा, संसद की भाषा, संविधानवाद, और वैश्विक बहसों में उनकी भागीदारी है — यही उन्हें एक विशेष विचारशील स्थान (discursive location) प्रदान करता था।
जहाँ तक उनके छविमूलक छल्ले का संबंध है, वह उनके आत्म-प्रतिबिंब से जुड़ा है — एक आधुनिक, महानगरीय, फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी बोलने वाले संस्कारित भारतीय की छवि, जिसने उनकी सार्वजनिक हैसियत को गढ़ा।
पर जब किसी भी वजह से RSI की यह संरचना टूटती है, तो प्रमातागिर कर जिस चीज से चिपक जाता है उसे अनंत वासनाओं के चिह्न, पसरे हुए अंग्रेज़ी के अंक आठ ∞ से चिह्नित किया जाता हैं। inner eight जो लकान के object a की सूचक है। केवल अपनी ही कभी न पूरी होने वाली प्यास या वांछना से चिपके प्रमाता को बाकी दो छल्ले फिर से बाँध नहीं पाते हैं।
यह ∞ (अनंतता) चिह्न प्रमाता के संदर्भ में एक संरचनात्मक आत्म-केंद्रिकता (self-referential entanglement) को दर्शाता है, एक ऐसी फाँस जिसमें प्रमाता झाड़ी में फँसे हुए हिरण की तरह अपनी ही अतृप्त वांछा के जाल का शिकार हो जाता है।
जब प्रमाता की बोरोमियन गांठ किसी सपाट आकृति में बदल जाती है तो फिर इसका कोई भी छल्ला किसी काम का नहीं रह जाता ।
प्रमाता अपनी प्रतीकात्मक, छविमूलक और रीयल की संरचना से गिरकर उसके किसी भी एक छल्ले से चिपके हुए अनंत वासनाओं के अवशिष्ट लूप में फँसा रहता है।
शशि थरूर आज अब अपनी पहचान की अब तक की RSI संरचना के केंद्र में नहीं रहे हैं, वे उससे गिर चुके हैं। वे एक inner eight वाले लूप में चिपके हुए हैं । एक विघटित प्रमाता में पनप गई गांठ से, जो अब राजनीति में कोई नई संरचना नहीं रच सकता, केवल अपनी ही सदा अतृप्त रहने वाली वासनाओं के चारों ओर घूम सकते हैं ।
(object a के चिपकने से विकृत होती RSI संरचना, जिसमें प्रमाता अब अपनी अनंत वांछाओं के ‘inner eight’ में फँसा है।)
(यह टिप्पणी जॉक लकान के Encore (1972-73) के उस सेमिनार की व्याख्या के सूत्रों से तैयार की गई है जिसका शीर्षक है — Rings of string) Encore (1972-73) के उस सेमिनार की व्याख्या के सूत्रों से तैयार की गई है जिसका शीर्षक है — Rings of string)
आप बोरोंमियान गांठ सुलझाते और फिर फिर उलझाते सुलझाते रहें गुरु! वे परम निर्लज्ज है आपको चतुर्दिक चक्करघिन्नी कटवाते रहेंगे महाराज !!
जवाब देंहटाएंवे उलझा नहीं रहे, अपना नमूना पेश करते हैं ।
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