भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र से उस रहस्य पर से पर्दा उठ गया है कि आखिर वह क्यों मतदान शुरू होजाने के दिन तक प्रसारित नहीं किया गया था। यह घोषणापत्र इस बात का प्रमाण है कि भाजपा ने अंदर ही अंदर इस बार के चुनाव के लिये कोई घोषणापत्र न तैयार करने का फैसला कर लिया था। उन्होंने सचमुच यह तय कर लिया था कि जब हमने ‘प्रधानमंत्री’ बना ही दिया है तो फिर अब घोषणापत्र की क्या जरूरत है! क्या हिटलर की कही बातों का भी कोई विकल्प हो सकता है! नरेन्द्र मोदी बोल ही रहे थे तो फिर और क्या चाहिये था। घोषणापत्र के लिये बनायी गयी कमेटी वगैरह तो ऐसे ही थी !
लेकिन जब चारों ओर से घोषणापत्र की गुहारें उठने लगी तो हर मर्ज का इलाज बने बैठे भाजपा दफ्तर में तैनात कट-पेस्ट मास्टरों ने शायद कमान संभाल ली और दो दिनों के अंदर ही, साहब के निर्देश के अनुसार एक घोषणापत्र तैयार करके छाप डाला। और सबतो उन्होंने कांग्रेस के घोषणापत्र से मार लिया और उसको भाजपाई रंग देने के लिये राममंदिर, धारा 370 और समान नागरिक संहिता का केसरिया घोल मिला दिया।
इन नकलचियों को इतना भी ध्यान नहीं रहा कि भाजपा का यह घोषणापत्र 4
अप्रैल को जारी किया जा रहा है, न कि 26 मार्च को। 26 मार्च को तो कांग्रेस का घोषणापत्र जारी किया गया था। कट-पेस्ट करते वक्त उन्होंने कांग्रेस के घोषणापत्र की तारीख भी अपने घोषणापत्र में डाल दी।
और तो और, इस घोषणापत्र को जारी करते वक्त नरेन्द्र मोदी का जो भाषण तैयार किया गया, उसमें भी हूबहू सोनिया गांधी के उस भाषण के अंशों को डाल दिया गया जो उन्होंने कांग्रेस का घोषणापत्र जारी करते समय दिया था। थोड़ा सा फर्क सिर्फ यह रहा कि नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण के अंत में दो वाक्य ऐसे कह दिये जिनसे लगता था कि वे घोषणापत्र जारी नहीं कर रहे, ‘प्रधानमंत्री’ पद की शपथ ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे कभी अपने लिये कुछ नहीं करेंगे और कभी भी सत्ता का बदइरादों से प्रयोग नहीं करेंगे।
लगता है भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को इसप्रकार बुंदी का किला फतह करवा कर उनको ‘प्रधानमंत्री’ पद की अतृप्त इच्छा से मुक्त करा दिया है !
सोचने की बात यह है कि मोदी सरकार कांग्रेस का विकल्प होगी या उसकी एक भद्दी नकल !
वैसे इतिहास में जाकर देखे तो आरएसएस का भी कभी कोई संविधान नहीं था। उसे सरदार पटेल ने जबर्दस्ती उस समय गोलवलकर पर दबाव डाल कर तैयार करवाया था जब गांधीजी की हत्या के बाद गोलवलकर जेल में थे। संविधान न होने का आरएसएस वालों का तर्क होता था कि हिंदू संयुक्त परिवार का भी क्या कोई संविधान होता है! यह तो एक अलिखित, सदियों की परंपराओं से स्वत: निर्मित संविधान है। परिवार के प्रमुख कर्ता की इच्छा सर्वोपरि होती है, उसे कोई चुनौती नहीं दी जा सकती है।
हास्यास्पद ढंग से वे संघ के अवतरण को ईश्वरीय काम मानते हुए गीता के श्लोक को भी उद्धृत करते थे :
‘‘यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थान धर्मस्य: तदात्मानं सृजाम्यहम।।’’
ऐसे में भाजपा का इस चुनाव के लिये कोई घोषणापत्र न आना ही स्वाभाविक है । उन्होंने मुखिया चुन दिया है। उसकी इच्छा और कथन ही तो घोषणापत्र है, क्योंकि उसे तो कभी चुनौती नहीं दी जा सकती है। ऊपर से, मोदी तो साक्षात ईश्वर भी है - हर हर मोदी ! महादेव का नया अवतार!
फिर कैसा घोषणापत्र, कैसा संविधान। सिर्फ चलेगा, हिटलर का फरमान।
वैसे इस पूरे प्रकरण से वामपंथियों का यह आरोप सही साबित होता है कि
कांग्रेस और भाजपा में बुनियादी नीतियों के विषय में रत्ती भर भी फ़र्क़ नहीं है ।
भाजपा में अतिरिक्त दोष यह है कि वह आरएसएस द्वारा चालित होने के कारण सांप्रदायिक
है और नरेन्द्र मोदी गुजरात जन-संहार के लिये एक प्रमुख ज़िम्मेदार व्यक्ति है ।
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