प्रधानमंत्री की पीठ पर मुकेश अंबानी का हाथ । इस चित्र पर सब हैरान हैं ।
कहने के लिये तो वामपंथी शैली में सरकार के नेताओं को अक्सर पूँजीपतियों का दलाल कहा जाता हैं । इसके बावजूद, पंडित नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक, यहाँ तक कि राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी कभी ऐसा कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं दिया, जिससे यह लगे कि अमुक नेता पूरी तरह से किसी पूँजीपति की सरपरस्ती में काम कर रहा है ।
इसके विपरीत इन्दिरा गांधी जेआरडी टाटा से लेकर बिड़लाओं और धीरूभाई अंबानी के साथ अपने दफ़्तर में कैसा कठोर व्यवहार करती थी, इसे लेकर ढेरों क़िस्से प्रचलित हैं। नेहरू, शास्त्री के ज़माने तक तो बात ही कुछ और थी । कांग्रेस नेतृत्व पूँजीवादी विकास की नीतियों पर चलने के बावजूद पूँजीपतियों के साथ उसका प्रकट व्यवहार थोड़ा अलग रहा है । सिर्फ़ कांग्रेस के नेताओं का नहीं, अटल बिहारी और आडवाणी तक ने किसी पूँजीपति को उनकी पीठ पर हाथ रखने की अनुमति नहीं दी थी ।
भारत के राजनेताओं की घोषित नीतियों और उनके निजी व्यवहार के बीच के ऐसे द्वैत को पिछले दिनों एक व्यापक सैद्धांतिक चौखटे में समझने की कोशिश की गई थी । प्रभाट पटनायक ने 'टेलिग्राफ़' में अपने एक लेख में इसे सारी दुनिया के स्तर पर नेहरू, नासिर, सुकर्णो की तरह के नव-स्वाधीन देशों के राजनीतिक नेतृत्व के संदर्भ में समझते हुए इस नये राजनीतिक नेतृत्व को एक मध्यवर्ती वर्ग (intermediate class) का प्रतिनिधि कहा था । इस लेखक ने प्रभात की इस अवधारणा को ज्योति बसु, लालू यादव, मुलायम सिंह, मायावती, जयललिता तक खींचा था ।
पूँजीपतियों के प्रति राजनेताओं के इस व्यवहार के पीछे सबसे बड़ा सच यह रहा है कि यह राजनीतिक नेतृत्व इस बात को जानता था कि भारत के पूँजीपतियों ने जनता के जीवन में सुधार करने वाली अभिनव सामग्रियों की खोज, अर्थात शोध और विकास के कामों के ज़रिये धन नहीं कमाया हैं । इनकी आमदनी अधिक से अधिक राजनीतिक नेताओं के संरक्षण से बाज़ार में अपनी इजारेदारी, कोटा-परमिट और सार्वजनिक धन, सार्वजनिक उद्यमों की लूट पर निर्भर रही है । सरकारी संरक्षण में आम लोगों के संचित धन की लूट पर भी ।
ग़ौर करने लायक बात यह है कि पूँजी के आदिम संचय की यह प्रक्रिया भारत में अभी भी ख़त्म नहीं हुई है । सरकार की शह से प्राकृतिक स्रोतों की लूट आज भी यहाँ के पूँजीपतियों की आमदनी का सबसे बड़ा स्रोत है । भारत के पूँजीपतियों ने आज तक शायद अपनी पहल पर ऐसे एक भी उत्पाद का ईजाद नहीं किया है, जिसे सारी दुनिया के लोग अपने जीवन में अपना सकें । पूँजीपति राजनेताओं पर अपनी इस निर्भरशीलता को अच्छी तरह जानते हैं। इसके बावजूद, मुकेश अंबानी प्रधानमंत्री की पीठ पर हाथ रखने का साहस कर पाये, यह एक विचारणीय बात है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें