17 दिसंबर 2014, जब 55 साल बाद पहली बार क्यूबा और अमेरिका के राष्ट्रपतियों के बीच टेलिफोन पर वार्ता हुई और दोनों देशों में कूटनीतिक संबंधों की पुनर्बहाली का निर्णय लिया गया। तब हवाना की सड़कों पर नौजवानों के उच्छवास ने सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था। उस ऐतिहासिक फैसले पर हमें भी निराला जी की कविता की पंक्तियां याद आगयी थी - ‘‘बहुत दिनों बाद खुला आसमान/ निकली है धूप, हुआ खुश जहान।’’
17 दिसंबर 2014 को टेलिफोन वार्ता से लातिन अमेरिका के इतिहास में एक नये सफे को जोड़ने का यह जो सिलसिला शुरू हुआ, उसके चार महीना बीतते न बीतते जो बात ध्वनि तरंगों के माध्यम से हुई थी, वही अब आमने-सामने शुरू हुई। मौका था पनामा में शुरू हुए समिट आफ अमेरिकाज (अमेरिकी देशों की शिखर वार्ता) का जिसमें अन्य तमाम लातिन अमेरिकी देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और क्यूबा के राष्ट्रपति रॉउल कैस्त्रो भी पहुंचे थे और यही पर पचास साल में पहली बार दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मुलाकात हुई और मुलाकात के साथ ही पूरे एक घंटे की लंबी बातचीत भी हुई। इन दो राष्ट्राध्यक्षों के हाथ मिलाने की घटना को ही कूटनीति की दुनिया के लोग लातिन अमेरिका के इतिहास में एक नये चरण के प्रारंभ के रूप में देख रहे है।
दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच इस बातचीत के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में राष्ट्रपति ओबामा ने कहा कि हमारे बीच मतभेद है, और रहेंगे भी। लेकिन मतभेदों के साथ ही आगे हमारे बीच परस्पर सम्मान और सौजन्य भी बना रहेगा। यही वह तरीका है जिससे हम इतिहास के एक नये पृष्ठ की ओर बढ़ेंगे। ओबामा ने जनतंत्र और मानवाधिकार के सवाल का जिक्र प्रमुख तौर पर किया।
क्यूबा के राष्ट्रपति रॉउल कैस्त्रो ने कहा कि हम सिर्फ एक नहीं, तमाम विषयों पर आपस में वार्ता को जारी रखना चाहते हैं। लेकिन इसके लिये हमे अपार धीरज बनाये रखना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि मैंने राष्ट्रपति ओबामा से वार्ता के दौरान क्यूबा की क्रांति के बारे में काफी भावावेग के साथ अपनी बात रखी थी। लेकिन ओबामा का तो तब जन्म भी नहीं हुआ था जब अमेरिका ने क्यूबा के साथ संबंधों पर प्रतिबंध लगाये थे। ओबामा व्यक्तिगत रूप से उस कदम के लिये जिम्मेदार नहीं थे, इसीलिये मैंने उनसे क्षमा भी मांगी।
राष्ट्रपति ओबामा ने राष्ट्रपति कैस्त्रो की बात से सहमति जाहिर करते हुए कहा कि शीत युद्ध का काफी दिन पहले ही अंत हो चुका है। जो लड़ाई मेरे जन्म के पहले शुरू हुई थी, उसे आगे जारी रखने में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि आज राष्ट्रपति कैस्त्रो और मैं यहां बैठ कर बात कर रहे हैं, यह एक ऐतिहासिक क्षण है। मैं आशावादी हूं। हम अपने संबंधों को सुधारने की प्रक्रिया को जारी रखेंगे और यह सिर्फ क्यूबा के लिये नहीं, इस पूरे क्षेत्र के लिये इतिहास का एक संक्रमणकाल कहलायेगा। हमारे दोनों देशों के बीच बातचीत जारी रहेगी और तमाम मतभेदों के बावजूद, जारी रहेगी।
इस शिखर वार्ता के दौरान ओबामा ने सिर्फ रॉउल कैस्त्रो से ही नहीं, वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलैस मादुरो के साथ भी मुलाकात की। मादुरो ने इस बैठक को एक हार्दिकता के साथ हुई बैठक बताया। इस बैठक के पहले ही ओबामा ने साफ तौर पर यह कह दिया था कि वे वेनेजुएला को खतरनाक नहीं मानते हैं, जबकि महीने भर पहले ही अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने वेनेजुएला को खतरनाक घोषित किया था।
इस पूरे संदर्भ में याद आती है, नोम चोमस्की की बात। आज की दुनिया में अमेरिका की भूमिका के बारे में उन्होंने कहा था कि अमेरिकी नीतियों में यदि मामूली बदलाव भी होता है तो बाकी दुनिया के लिये उसके काफी बड़े मायने हो सकते हैं। लातिन अमेरिका के देशों ने अपनी राष्ट्रीय सार्वभौमिकता की लंबी लड़ाई के जरिये आज अमेरिकी हुक्मरानों को अपनी लातिन अमेरिकी नीति के बारे में नये सिरे से विचार करने के लिये मजबूर किया है। क्यूबा और वेनेजुएला के राष्ट्रपतियों के साथ राष्ट्रपति ओबामा की इन बैठकों को इसीलिये लातिन अमेरिका के राजनीतिक इतिहास में एक नये अध्याय के प्रारंभ के तौर पर देखा जा रहा है।
हम यहां 17 दिसंबर 2014 की अपनी टिप्पणी का लिंक दे रहे हैं :
http://chaturdik.blogspot.in/2014/12/blog-post_18.html
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