गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

स्वपन दासगुप्त के इस असंगत वाक्य का क्या अर्थ है ?

-अरुण माहेश्वरी



एक ओर अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प कह रहा है कि अगर वह चुनाव में हार गया तो भी वह इस हार को नहीं स्वीकारेगा, और दूसरी ओर भारत में उसके एक समर्थक स्वपन दासगुप्त बता रहे हैं कि डोनाल्ड की हार में भी उसकी जीत है।

आज के ‘टेलिग्राफ’ में स्वपन दासगुप्ता ने अपने लेख “Trumpet Solo” में यह तो माना है कि ट्रम्प निश्चित तौर पर हार रहा है। लेकिन लेख के अंत तक आते-आते उन्होंने एक अनोखा वाक्य लिखा है - “ Even after his ‘groping’ is forgotten, the anger that Trump articulated will continue to haunt America” ( उसकी ‘झपट्टा मारने’ की बात को भुला दिया जाता है तब भी, ट्रम्प ने जिस आक्रोश को व्यक्त किया है वह अमेरिका को हमेशा सताता रहेगा।)

अपने इस कथन के पीछे स्वपन दासगुप्त का असली उद्देश्य क्या रहा है, कहना मुश्किल है। लेकिन उनके इस वाक्य की संरचना से लगता है जैसे वे मानते हैं कि ट्रम्प की स्त्रियों के यौनांगों पर ‘झपट्टा मारने’ की बात में भी कोई खास संदेश निहित था, और लोग भले ही उसे भूल जाए, लेकिन उसने मुसलमानों और आप्रवासन को लेकर जो गुस्सा जाहिर किया है, उसे नहीं भूल पायेंगे !

क्या कहेंगे इसे - स्वपन दासगुप्त के असंगत सोच की एक स्वाभाविक अभिव्यक्तिमूलक-त्रुटि या ट्रम्प जितना ही उनका अपना घटिया नीति-बोध ! ट्रम्प की तरह के उग्र दक्षिणपंथी विचारों का उनके ‘झपट्टा मारू’ सोच से क्या सचमुच कोई स्वाभाविक संबंध है ! क्या यही किसी फासीवादी ‘स्त्री-विरोधी’ व्यक्ति का वह अश्लील पक्ष है, जो कभी खुल कर सामने नहीं आता, लेकिन ट्रम्प ने उसे खोल दिया !

हम सभी जानते हैं कि स्वपन दासगुप्त की पूरी सहानुभूति ट्रम्प के साथ है। वे इस पर पहले भी लिख चुके हैं। ट्रम्प की मुसलमान-विरोधी और आप्रवासन-विरोधी बातों में वे बिल्कुल सही आज की भाजपा की राजनीति की झलक देखते रहे हैं। लेकिन, संधियों का सामान्य स्त्री-विरोधी रुख ट्रम्प की ‘झपट्टा मारू’ बातों के समर्थन तक भी जा सकता है, इसे ही उन्होंने अपने इस वाक्य से जैसे जाहिर किया है। यद्यपि हमें तो यह तार्किक असंगति से दूषित एक वाक्य लगता है, लेकिन संभव है कि शायद ऐसी असंगति ही उनके सोच का असली सच हो ! आज स्वपन दासगुप्त को अफसोस है कि जब बात खुल कर सामने आ ही गई है तब फिर लोग ट्रम्प की इस विकृति को भी क्यों उसी प्रकार नहीं अपनाते हैं, जिस प्रकार वे उनके मुसलमान-विरोधी गुस्से को कभी नहीं भूलेंगे !

अवचेतन शायद इसीप्रकार लेखक के वाक्यों की संगति को नष्ट किया करता है !

यहां स्वपन दासगुप्त के इस लेख का लिंक दिया जा रहा है -
http://www.telegraphindia.com/1161021/jsp/opinion/story_114601.jsp#.WAmmYY997IU

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