-अरुण माहेश्वरी
शायद वह दिन बहुत दूर नहीं है जब अन्तर्राष्ट्रीय मंचों से आरएसएस को एक आतंकवादी संगठन घोषित करने की पुरज़ोर माँगे उठने लगेगी ।
केंद्र का एक मंत्री अनुराग ठाकुर हाथ उछाल-उछाल कर सरे-आम एक चुनावी सभा में सीएए-विरोधी करोड़ों आंदोलनकारियों को गालियाँ देते उन्हें गोलियाँ मारने का आह्वान कर रहा हैं ।
सीपीएम के पोलिट ब्यूरो की सदस्या वृंदा करात, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी, कर्नाटक के लोकप्रिय अभिनेता और नेता प्रकाश राज, लिंगायत संप्रदाय के एक धर्म गुरू निजगुणानन्द और जयप्रकाश, प्रसिद्ध लेखक के एस भगवान,अभिनेता चेतन कुमार, कर्नाटक के पूर्व मंत्री और सामाजिक कार्यकर्ता बी टी ललिता नायक, शिक्षाविद महेशचंद्र गुरू, बजरंग दल के ही पूर्व नेता महीन्द्र कुमार, कवि चन्द्रशेखर पाटिल, और पत्रकार दिनेश अमीन मुट्टू तथा अग्नि श्रीधर को चिट्ठी देकर कुल पंद्रह जनों को हत्या की धमकी दी गई है ।
यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा 2015 में कर्नाटक के ही जाने-माने लेखक एम एम कुलबर्गी, महाराष्ट्र के समाजकर्मी दाभोलकर के बाद 2017 में गौरी लंकेश को मारा गया था और पानसारे की हत्या की गई थी । उन्हीं दिनों कन्नड़ के लेखक के एस भगवान को भी मारने की धमकी दी गई थी ।
इन सभी हत्याओं की जाँच में आरएसएस से ही परोक्ष रूप में संबद्ध एक सनातन संस्था के विरुद्ध सारे सबूत मिलने पर भी आज तक केंद्र सरकार एनआईए के ज़रिये ही उन मामलों को दबाए हुए है ।
आज जैसे बीजेपी अपने कथित घोषणापत्र की दुहाई देते हुए धारा 370 को हटाने और सीएए, एनआरसी को लागू करने की हठ को दोहरा रही है, उसी प्रकार निश्चित तौर पर शस्त्रपूजक आरएसएस के अंदर अपनी शस्त्र वाहिनी तैयार करके उसे उतार देने और नियमित सेना के एक अंश की मदद से पूरे देश पर अपना अधिकार क़ायम करने की तरह के आतंकवादी सोच पर अमल की योजनाओं पर चर्चा भी किसी न किसी रूप में शुरू हो गई होगी । और, संभव है कि उनके कुछ समूहों ने इस पर अमल की तैयारियाँ भी शुरू कर दी होगी ।
यह सब हमारी कोरी कल्पना या निराधार आशंकाएँ नहीं हैं । सारी दुनिया में उग्रवाद और आतंकवाद बिल्कुल इसी प्रकार पनपा करता है । जैसे तालिबान, लश्कर और आइसिस पैदा हुए, जैसे भारत में ही वामपंथ के अंदर से नक्सलवाद और माओवाद पैदा हुए, उसी प्रकार आरएसएस के अंदर से सनातन संस्था, प्रज्ञा ठाकुर का गुट और नग्न गोडसे पूजकों के समूह पैदा हो रहे हैं । बंदूक़ की नली से सत्ता पर क़ब्ज़ा करने की वासना राजनीति के अंदर की सबसे आदिम हिंस्रता की अभिव्यक्ति है, जो कहीं भी मौक़ा पा कर दहाड़ते हुए जनतांत्रिक सभ्यता को पीछे ठेल कर सामने आ ज़ाया करती है ।
सबसे बड़ी मुसीबत है आरएसएस के ऐसे तमाम तत्वों को आज उसके केंद्र सरकार में मौजूद नेताओं का खुला समर्थन मिल रहा है । खुद अमित शाह में साजिशाना ढंग से अपराधपूर्ण गतिविधियों की प्रवृत्ति प्रबल रही है । जेएनयू पर पिछले दिनों जिस नंगई के साथ उन्होंने छात्रों पर हिंसक हमले करवाएँ, वैसा कोई भी ज़िम्मेदार राजनीतिक नेता कल्पना भी नहीं कर सकता है । इन्होंने ही प्रज्ञा ठाकुर की तरह की एक प्रकार से दागी आतंकवादी को भोपाल से सांसद बनवा कर अपनी धौंस का परिचय दिया था । उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे भी इसी प्रकार का सोच काम कर रहा था । आदित्यनाथ प्रशासन के बाक़ी सभी कामों में तो सुस्त रहते हैं, लेकिन विरोधियों के ख़िलाफ़ हिंसक कार्रवाई में उतने ही चुस्त दिखाई देते है ।
आज एक ओर जिस अनुपात में मोदी कंपनी की आर्थिक और प्रशासनिक मामलों में अयोग्यता जाहिर हो रही है, बिल्कुल उसी अनुपात में बीजेपी के अंदर की ऐसी तमाम उग्रवादी ताक़तों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है । राजनीतिक विमर्श के जनतांत्रिक और तर्क-प्रधान तौर-तरीक़ों को तिलांजलि देकर पशु शक्ति और झूठ के बल पर सत्ता में बने रहने की लालसा ज़ोर पकड़ने लगती है ।
पिछले दिनों इनके मंत्री राधामाधव ने जिस प्रकार बिना चुनाव के मोदी के सत्ता पर बने रहने की जो बात कही और अभी अमित शाह जिस भरोसे के साथ हर विषय में झूठ और गंदगी फैलाने वाली अपनी साइबर सेना की अजेय शक्ति पर खुले आम अपना विश्वास ज़ाहिर कर रहे हैं तथा आम सभा में तमाम विरोधियों को जेलों में ठूँस देने के पक्ष में नारे लगवा रहे हैं, यह सब उनकी इसी उग्रवादी प्रवृत्ति के द्योतक है ।
सत्ताधारी राजनीति में इसी प्रवृत्ति को फासीवाद कहा जाता है । भारत में जनतांत्रिक प्रतियोगिता में ये आगे जैसे-जैसे पराजित होंगे, ये आतंकवाद की दिशा में बढ़ने के लिये मजबूर होंगे । आतंकवाद शस्त्रपूजक आरएसएस की तात्विक सचाई है । इसके पूरी तरह से सामने आने में शायद ज़्यादा वक्त नहीं है । यह इसलिये, क्योंकि आरएसएस-बीजेपी के अंदर उन प्रवृत्तियों से लड़ने का कोई रुझान नहीं दिखाई दे रहा है । अमित शाह की तरह के लोगों ने इनके पूरे ताने-बाने पर क़ब्ज़ा कर लिया है ।
शायद वह दिन बहुत दूर नहीं है जब अन्तर्राष्ट्रीय मंचों से आरएसएस को एक आतंकवादी संगठन घोषित करने की पुरज़ोर माँगे उठने लगेगी ।
केंद्र का एक मंत्री अनुराग ठाकुर हाथ उछाल-उछाल कर सरे-आम एक चुनावी सभा में सीएए-विरोधी करोड़ों आंदोलनकारियों को गालियाँ देते उन्हें गोलियाँ मारने का आह्वान कर रहा हैं ।
सीपीएम के पोलिट ब्यूरो की सदस्या वृंदा करात, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी, कर्नाटक के लोकप्रिय अभिनेता और नेता प्रकाश राज, लिंगायत संप्रदाय के एक धर्म गुरू निजगुणानन्द और जयप्रकाश, प्रसिद्ध लेखक के एस भगवान,अभिनेता चेतन कुमार, कर्नाटक के पूर्व मंत्री और सामाजिक कार्यकर्ता बी टी ललिता नायक, शिक्षाविद महेशचंद्र गुरू, बजरंग दल के ही पूर्व नेता महीन्द्र कुमार, कवि चन्द्रशेखर पाटिल, और पत्रकार दिनेश अमीन मुट्टू तथा अग्नि श्रीधर को चिट्ठी देकर कुल पंद्रह जनों को हत्या की धमकी दी गई है ।
यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा 2015 में कर्नाटक के ही जाने-माने लेखक एम एम कुलबर्गी, महाराष्ट्र के समाजकर्मी दाभोलकर के बाद 2017 में गौरी लंकेश को मारा गया था और पानसारे की हत्या की गई थी । उन्हीं दिनों कन्नड़ के लेखक के एस भगवान को भी मारने की धमकी दी गई थी ।
इन सभी हत्याओं की जाँच में आरएसएस से ही परोक्ष रूप में संबद्ध एक सनातन संस्था के विरुद्ध सारे सबूत मिलने पर भी आज तक केंद्र सरकार एनआईए के ज़रिये ही उन मामलों को दबाए हुए है ।
आज जैसे बीजेपी अपने कथित घोषणापत्र की दुहाई देते हुए धारा 370 को हटाने और सीएए, एनआरसी को लागू करने की हठ को दोहरा रही है, उसी प्रकार निश्चित तौर पर शस्त्रपूजक आरएसएस के अंदर अपनी शस्त्र वाहिनी तैयार करके उसे उतार देने और नियमित सेना के एक अंश की मदद से पूरे देश पर अपना अधिकार क़ायम करने की तरह के आतंकवादी सोच पर अमल की योजनाओं पर चर्चा भी किसी न किसी रूप में शुरू हो गई होगी । और, संभव है कि उनके कुछ समूहों ने इस पर अमल की तैयारियाँ भी शुरू कर दी होगी ।
यह सब हमारी कोरी कल्पना या निराधार आशंकाएँ नहीं हैं । सारी दुनिया में उग्रवाद और आतंकवाद बिल्कुल इसी प्रकार पनपा करता है । जैसे तालिबान, लश्कर और आइसिस पैदा हुए, जैसे भारत में ही वामपंथ के अंदर से नक्सलवाद और माओवाद पैदा हुए, उसी प्रकार आरएसएस के अंदर से सनातन संस्था, प्रज्ञा ठाकुर का गुट और नग्न गोडसे पूजकों के समूह पैदा हो रहे हैं । बंदूक़ की नली से सत्ता पर क़ब्ज़ा करने की वासना राजनीति के अंदर की सबसे आदिम हिंस्रता की अभिव्यक्ति है, जो कहीं भी मौक़ा पा कर दहाड़ते हुए जनतांत्रिक सभ्यता को पीछे ठेल कर सामने आ ज़ाया करती है ।
सबसे बड़ी मुसीबत है आरएसएस के ऐसे तमाम तत्वों को आज उसके केंद्र सरकार में मौजूद नेताओं का खुला समर्थन मिल रहा है । खुद अमित शाह में साजिशाना ढंग से अपराधपूर्ण गतिविधियों की प्रवृत्ति प्रबल रही है । जेएनयू पर पिछले दिनों जिस नंगई के साथ उन्होंने छात्रों पर हिंसक हमले करवाएँ, वैसा कोई भी ज़िम्मेदार राजनीतिक नेता कल्पना भी नहीं कर सकता है । इन्होंने ही प्रज्ञा ठाकुर की तरह की एक प्रकार से दागी आतंकवादी को भोपाल से सांसद बनवा कर अपनी धौंस का परिचय दिया था । उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे भी इसी प्रकार का सोच काम कर रहा था । आदित्यनाथ प्रशासन के बाक़ी सभी कामों में तो सुस्त रहते हैं, लेकिन विरोधियों के ख़िलाफ़ हिंसक कार्रवाई में उतने ही चुस्त दिखाई देते है ।
आज एक ओर जिस अनुपात में मोदी कंपनी की आर्थिक और प्रशासनिक मामलों में अयोग्यता जाहिर हो रही है, बिल्कुल उसी अनुपात में बीजेपी के अंदर की ऐसी तमाम उग्रवादी ताक़तों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है । राजनीतिक विमर्श के जनतांत्रिक और तर्क-प्रधान तौर-तरीक़ों को तिलांजलि देकर पशु शक्ति और झूठ के बल पर सत्ता में बने रहने की लालसा ज़ोर पकड़ने लगती है ।
पिछले दिनों इनके मंत्री राधामाधव ने जिस प्रकार बिना चुनाव के मोदी के सत्ता पर बने रहने की जो बात कही और अभी अमित शाह जिस भरोसे के साथ हर विषय में झूठ और गंदगी फैलाने वाली अपनी साइबर सेना की अजेय शक्ति पर खुले आम अपना विश्वास ज़ाहिर कर रहे हैं तथा आम सभा में तमाम विरोधियों को जेलों में ठूँस देने के पक्ष में नारे लगवा रहे हैं, यह सब उनकी इसी उग्रवादी प्रवृत्ति के द्योतक है ।
सत्ताधारी राजनीति में इसी प्रवृत्ति को फासीवाद कहा जाता है । भारत में जनतांत्रिक प्रतियोगिता में ये आगे जैसे-जैसे पराजित होंगे, ये आतंकवाद की दिशा में बढ़ने के लिये मजबूर होंगे । आतंकवाद शस्त्रपूजक आरएसएस की तात्विक सचाई है । इसके पूरी तरह से सामने आने में शायद ज़्यादा वक्त नहीं है । यह इसलिये, क्योंकि आरएसएस-बीजेपी के अंदर उन प्रवृत्तियों से लड़ने का कोई रुझान नहीं दिखाई दे रहा है । अमित शाह की तरह के लोगों ने इनके पूरे ताने-बाने पर क़ब्ज़ा कर लिया है ।
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