रविवार, 15 मार्च 2020

ज्योतिरादित्य सिंधिया की आगे भारी दुर्गति सुनिश्चित है


-अरुण माहेश्वरी


सिंधिया ने कहा है कि कांग्रेस में रहते हुए जनता की सेवा अब संभव नहीं है ।

सवाल है कि जब वे कांग्रेस में थे और केंद्र में मंत्री भी, तब की कांग्रेस और आज की कांग्रेस में कौन सा फ़र्क़ है ? सिवाय इसके कि तब कांग्रेस सत्ता में थी और आज सत्ता में नहीं है, क्या कांग्रेस में लेश मात्र भी फ़र्क़ आया है ?

इसका अर्थ है कि सिंधिया मानते है कि सत्ता के बाहर रह कर ‘जनता’ की सेवा नहीं की जा सकती है ! एक कथित तौर पर बड़ा नेता ऐसी बात तब कह रहा है जब देश में जनतांत्रिक व्यवस्था है जिसमें सत्ता पक्ष के अलावा विपक्ष को भी राज्य का एक अविभाज्य अंग माना जाता है !

जनतंत्र में सत्ताधारी पक्ष सत्ता में होता है तो विपक्ष भी सत्ता के समान दावेदार के रूप में पूरे सत्तातंत्र का ही एक हिस्सा होता है । किसी भी पक्ष का सत्ता पर परम अधिकार जैसी धारणा का जनतंत्र में कोई स्थान नहीं होता है ।

यह तो राजशाही और शासन की तानाशाही फासिस्ट व्यवस्थाओं की विशिष्टता है जिसमें विपक्ष की उपस्थिति से इंकार करके चला जाता है । अर्थात् जो सत्ता में है, वहीं सब कुछ है, बाक़ी सभी शून्य है ।

सिंधिया वंशानुगत रूप में भारत के एक राजपरिवार से आते हैं । जो इन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते हैं, वे उन्हें एक अहंकारी महाराजा भी कहते हैं ।

भारत में आज़ादी के दिनों से ही आरएसएस की यह विशिष्टता रही है कि वह एक ओर तो पेशवाओं की हिंदू पद पादशाही के आदर्श को मानता रहा है और इसीलिये कांग्रेस की जनतांत्रिक राजनीति के विरुद्ध कई रियासती राजाओं से आरएसएस के गहरे संबंध रहे हैं । आरएसएस को खड़ा करने में उनकी भूमिका के तमाम प्रमाण मौजूद है । ग्वालियर के सिंधिया राज्य से आरएसएस का रिश्ता तभी से रहा है । वहीं, दूसरी ओर आरएसएस का मूलभूत आदर्श मुसोलिनी और हिटलर का फासीवाद रहा है ।

जनसंघ और भाजपा के गठन में राजमाता विजयाराजे सिंधिया की केंद्रीय भूमिका से सब परिचित हैं । उनकी बोटियाँ भी उनके ही पदचिह्नों पर चल रही है । उनका शिक्षित बेटा माधवराव सिंधिया अपने जनतांत्रिक बोध के कारण आरएसएस से अलग रहा, लेकिन अब माधवराव के बेटे ने फिर से राज परिवार की राह पकड़ ली है ।

यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें ज्योतिरादित्य यह मानता है कि सत्ता से हट चुकी कांग्रेस उसके काम की नहीं है, क्योंकि उनके राजशाही के आदर्श कहते हैं कि जो सत्ता में नहीं है, वह राज्य के कामों के लिये किसी काम का नहीं है । सिंधिया की तरह के लोग तभी राजनीति में होने का कोई मतलब समझते हैं, जब वे सत्ता में हो । यही वजह है कि समय के साथ ऐसे लोग सत्ता के पीछे दौड़ते-दौड़ते अपने वजूद को खोकर बुरी तरह से अपनी दुर्गति कर लिया करते हैं । ज्योतिरादित्य खुद को उसी दिशा में झोंक चुका है । आने वाले दिन अंतत: उसकी चरम बदहवासी के दिन ही साबित होंगे ।

11.03.2020

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