आज के ‘टेलिग्राफ़’ में रामचंद्र गुहा के लेख ‘In praise of archives and archivists : Riches and Dust’ में डा. हरिदेव शर्मा की तस्वीर और उनके प्रति श्रद्धांजलि के शब्दों ने हमारी 1990-1996 के पहले दिल्ली प्रवास की उन प्रिय स्मृतियों को ताज़ा कर दिया जिनमें जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी (जेएनएमएमएल) के इन डिप्टी लाइब्रेरियन का हमेशा बहुत ऊंचा स्थान रहता है । गुहा ने अपने अनुभवों से तमाम शोधार्थियों के साथ सहयोग के उनके समर्पित भाव के बारे में जो लिखा है, उसके हर शब्द की मैं ताईद करता हूँ ।
उसी काल में हमने आरएसएस के बारे में जो किताब लिखी थी, बिना शर्मा जी के सक्रिय सहयोग के उस कापूरा होना असंभव था ।अपने विचारों में सोशलिस्ट, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के वे जीते-जागते विश्वकोश थे । उनके चैंबर में घंटों गप करने का हमें मौक़ा मिला था ।वहीं पर हिंदी के एक किंवदंती पुरुष, हैदराबाद की ‘कल्पना’ पत्रिका के संपादक-मालिक बद्रीविशाल पित्ती से भी हमारा परिचय हुआ था ।
हरिदेव जी ने ही हमें आरएसएस के केशव कुंज स्थित मुख्यालय में जाने के लिए प्रेरित किया और वहाँ के एक वरिष्ठ अधिकारी प्यारेलाल जी से मिलने की व्यवस्था की ।वहाँ स्थित किताबों की दुकान से हमें काफी ज़रूरी सामग्री मिली थी ।
हरिदेव जी की कई बातों में से एक बात जिसे कभी नहीं भूलता हूँ, वह थी गोलवलकर की किताब ‘वी ऑर आवर नेशनहुड डिफाइन्ड’ के बारे में । एनएमएमएल के संग्रहालय में अभी भी वह पुस्तक बची हुई है या नहीं, नहीं जानता । पर उन्हीं दिनों हरिदेव जी ने उसके पहले और चौथे संस्करण की प्रतियाँ देते हुए हमसे कहा था कि संघ के लोग इस किताब को देश के सभी पुस्तकालयों-संग्रहालयों से गायब करवा रहे हैं, इन्हें ले जाकर इनकी जेरोक्श प्रतियाँ अपने पास रख लीजिए ।वे दोनों जेरोक्श कराई गई किताबें आज भी हमारे निजी संग्रहालय की मूल्यवान चीज़ें हैं ।
एनएमएमएल में आम तौर पर किताबों की लेंडिंग की अनुमति नहीं होती थी । लेकिन यह शर्मा जी की विशेष कृपा थी कि वे अपने नामसे किताबें इश्यू करवा कर हमें एक-दो दिन के लिए दे दिया करते थे । मुझे यह कहने में ज़रा भी हिचक नहीं है कि उनके सहयोग के बिना हमारी उस किताब का पूरा होना संभव नहीं था ।
शर्मा जी की भारत के स्वतंत्रता आंदोलन पर रजनी पाम दत्ता की जानकारियों और समझ के बारे में घनघोर आपत्तियाँ थी और वे अक्सर हमसे उसकी चर्चा किया करते थे । उसी क्रम में कामरेड अयोध्या सिंह की किताबों पर उनकी टिप्पणियाँ भी हम कभी नहीं भूल पाते हैं ।
रामचंद्र गुहा ने अपने लेख में एनएमएमएल के संग्रहालय को जिस आदर और श्रद्धा के साथ याद किया है, वह हमारी भावनाओं से पूरी तरह मेल खाता है । जिस जतन से वह संग्रहालय तैयार हुआ और उसकी सामग्रियों को जिस तरह से सहेज कर रखा गया है, वह अविस्मरणीय है । कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों के निजी काग़ज़ात, पुराने तमाम अख़बारों की माक्रोफिल्म का जैसा संग्रह यहाँ है, वह सचमुच विरल था ।
दिल्ली में पार्लियामेंट लाइब्रेरी और एनएमएमएल, ये दो स्थान ही थे जहाँ हमने अपने दिल्ली प्रवास का अधिकांश समय बिताया था और इनकी स्मृतियों को ही जीवन के सबसे बेहतरीन क्षणों के तौर पर देखता हूँ । इसमें एनएमएमएल की तो हरदेव शर्मा के बिना कल्पना करके ही मन भारी हो जाता है ।
हम यहाँ रामचंद्र गुहा के लेख को साझा कर रहे हैं :
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