प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति ओबामा को गीता भेंट करके अपनी ख़ुद की धार्मिक निष्ठा और विश्वास का तो प्रदर्शन किया , लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति को यह भी बता दिया कि वे भारत की अब तक की घोषित धर्म-निरपेक्षता की नीति को नहीं मानते ।
वैसे तो, धर्म-निरपेक्षता का सारी दुनिया में सर्वमान्य अर्थ जीवन को धार्मिक विश्वासों और रूढ़ियों से पूरी तरह मुक्त रखना माना जाता है । राज्य की नीतियों के प्रसंग में धर्म-निरपेक्षता का अर्थ है - सरकार के किसी भी काम में किसी धार्मिक विचार या संस्थान की दख़लंदाज़ी न हो । राज्य चालित होगा राष्ट्र के संविधान और समानता, भाईचारा, जन-कल्याण और मानवाधिकार के मूल्यों के आधार पर, किसी भी प्रकार की रूढ़ियों और अंध-विश्वासों के आधार पर नहीं ।
भारत में, आधुनिक जनतंत्र के मूल्यों के प्रति प्रकट निष्ठा के बावजूद यहाँ के राजनेताओं ने व्यापक जनता के धर्मभीरू और धर्मप्राण चरित्र तथा समाज में नाना प्रकार के धर्मों और पंथों की जकड़बंदी को देखते हुए धर्म-निरपेक्षता को एक सुविधाजनक नया आयाम दिया - सर्वधर्म समभाव का आयाम । मान लिया गया कि सर्वधर्म समभाव स्वत: राज्य को किसी धर्म विशेष के प्रति झुकाव के दोष से मुक्त रखेगा और उसे जनतांत्रिक संविधान के आधार पर चालित करेगा ।
लेकिन हमारे प्रधानमंत्री तो धर्म-निरपेक्षता की इन दोनों कसौटियों पर खरे नहीं उतरे ।
जैसे सारी दुनिया में ईसाई धर्म के प्रचारकों को सर्वत्र बाइबिल बाँटते हुए पाया जाता हैं, लगभग उसी तर्ज़ पर प्रधानमंत्री ने हिंदू धर्म-ग्रंथ गीता भेंट करके अमेरिका में ख़ुद को एक हिंदू धर्म-प्रचारक के रूप में पेश किया। शिष्टतावश कोई कहे या न कहे, ओबामा को उनकी यह भेंट अमेरिकी प्रशासन और समाज में उनके कट्टर धार्मिक पूर्वाग्रहों के बारे में पहले से ही जिस प्रकार के संदेह छाये हुए हैं, उन संदेहों को और बल पहुँचायेगा । भारत-अमेरिका संबंधों में सुधार और विश्व में हमारे प्रधानमंत्री की स्वीकार्यता की दृष्टि से इसे हम बुरी कूटनीति कहेंगे ।
वैसे तो, धर्म-निरपेक्षता का सारी दुनिया में सर्वमान्य अर्थ जीवन को धार्मिक विश्वासों और रूढ़ियों से पूरी तरह मुक्त रखना माना जाता है । राज्य की नीतियों के प्रसंग में धर्म-निरपेक्षता का अर्थ है - सरकार के किसी भी काम में किसी धार्मिक विचार या संस्थान की दख़लंदाज़ी न हो । राज्य चालित होगा राष्ट्र के संविधान और समानता, भाईचारा, जन-कल्याण और मानवाधिकार के मूल्यों के आधार पर, किसी भी प्रकार की रूढ़ियों और अंध-विश्वासों के आधार पर नहीं ।
भारत में, आधुनिक जनतंत्र के मूल्यों के प्रति प्रकट निष्ठा के बावजूद यहाँ के राजनेताओं ने व्यापक जनता के धर्मभीरू और धर्मप्राण चरित्र तथा समाज में नाना प्रकार के धर्मों और पंथों की जकड़बंदी को देखते हुए धर्म-निरपेक्षता को एक सुविधाजनक नया आयाम दिया - सर्वधर्म समभाव का आयाम । मान लिया गया कि सर्वधर्म समभाव स्वत: राज्य को किसी धर्म विशेष के प्रति झुकाव के दोष से मुक्त रखेगा और उसे जनतांत्रिक संविधान के आधार पर चालित करेगा ।
लेकिन हमारे प्रधानमंत्री तो धर्म-निरपेक्षता की इन दोनों कसौटियों पर खरे नहीं उतरे ।
जैसे सारी दुनिया में ईसाई धर्म के प्रचारकों को सर्वत्र बाइबिल बाँटते हुए पाया जाता हैं, लगभग उसी तर्ज़ पर प्रधानमंत्री ने हिंदू धर्म-ग्रंथ गीता भेंट करके अमेरिका में ख़ुद को एक हिंदू धर्म-प्रचारक के रूप में पेश किया। शिष्टतावश कोई कहे या न कहे, ओबामा को उनकी यह भेंट अमेरिकी प्रशासन और समाज में उनके कट्टर धार्मिक पूर्वाग्रहों के बारे में पहले से ही जिस प्रकार के संदेह छाये हुए हैं, उन संदेहों को और बल पहुँचायेगा । भारत-अमेरिका संबंधों में सुधार और विश्व में हमारे प्रधानमंत्री की स्वीकार्यता की दृष्टि से इसे हम बुरी कूटनीति कहेंगे ।
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