सोमवार, 4 मई 2015

कार्ल मार्क्स का 198वां जन्मदिन




आज़, मार्क्स के 198वें जन्मदिन पर याद आती है उनके दामाद पाल लफार्ग की निम्नलिखित तमाम बातें :

‘‘मार्क्स का विचार था कि अनुसंधान के अंतिम फल की चिंता किये बिना विज्ञान का अनुशीलन विज्ञान के लिये ही किया जाना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही सार्वजनिक जीवन में सक्रिय सहभागिता का त्याग करके, अथवा बिल के चूहे की तरह अपने को अध्ययन-कक्ष या प्रयोगशाला में बंद करके और समकालीनों के सार्वजनिक जीवन तथा राजनीतिक संघर्ष से तटस्थ रहकर वैज्ञानिक महज अपने को हेय ही बना सकता है।’’

‘‘वे कहा करते थे, ‘मैं विश्व नागरिक हूं, मैं जहां कहीं भी हूं, सक्रिय हूं।’’

‘‘किताबें उनके लिये विलास-सामग्री नहीं, औजार थीं। वे कहा करते थे, ‘ये मेरी बांदियां हैं और इन्हें मेरी इच्छा के अनुसार मेरे सेवा करने होगी।’’

‘‘डार्विन की भांति वे भी उपन्यास पढ़ने के बड़े शौकीन थे।’’

‘‘वे इस उक्ति को बार-बार दोहराना पसंद करते थे कि ‘जीवन संघर्ष में विदेशी भाषा एक हथियार है।’’

‘‘उनका विचार था कि जब तक कोई विज्ञान गणित का उपयोग करना नहीं सीख लेता, तब तक वस्तुत: विकसित रूप नहीं प्राप्त कर सकता।’’

‘‘चिंतन उनका सबसे बड़ा सुख था। मैंने अक्सर उन्हें उनकी जवानी के दर्शन-गुरू हेगेल के शब्द दुहराते हुए सुना :‘‘किसी कुकर्मी के अपराधमूलक चिंतन में भी स्वर्ग के चमत्कारों से अधिक वैभव तथा गरिमा होती है।’’

‘‘जब मार्क्स ने अपने चारित्रिक प्रमाण-प्राचूर्य तथा तर्क-वैपुल्य के साथ मुझे मानव-समाज के विकास-संबंधी अपना तेजस्वी सिद्धांत समझाया था, तब मुझे ऐसा लगा था मानो मेरी आंखों के सामने से पर्दा हट गया हो। मैंने पहले पहल विश्व-इतिहास की तर्क-संगति को स्पष्ट रूप से देखा और सामजिक विकास के व्यापारों का, जो देखने में इतने अन्तर्विरोधपूर्ण हैं, उसके भौतिक कारणों के साथ ताल-मेल बिठा पाया।’’

‘‘वे अपनी कृतियों से भी कहीं अधिक ऊंचे थे।’’

‘‘मार्क्स अपनी कृति से कभी संतुष्ट नहीं होते थे, उसमें बाद को हमेशा परिवर्तन करते रहते थे और निरंतर पाते थे कि उनकी अभिव्यक्ति उनके चिंतन की ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाती।’’

‘‘उनके आलोचक यह कभी सिद्ध नहीं कर सके कि वे लापरवाह थे अथवा अपने तर्कों को ऐसे तथ्यों पर आधारित करते थे, जो जांच की कड़ी कसौटी पर खरे न उतर सकें।’’

‘‘मार्क्स की साहित्यिक ईमानदारी भी उतनी ही जबर्दस्त थी, जितनी वैज्ञानिक ईमानदारी।’’

‘‘उनके काम करने का ढंग अक्सर उनके ऊपर ऐसे कार्यभार लाद देता था, जिनकी गुरुता की कल्पना पाठक मुश्किल से कर सकते हैं।’’

‘‘मार्क्स और एंगेल्स हमारे युग में पुराकालीन कवियों द्वारा वर्णित मित्रता के आदर्श का मूर्त रूप थे।’’

‘‘अन्य किसी भी व्यक्ति की तुलना में मार्क्स एंगेल्स की राय की अधिक कद्र करते थे, क्योंकि मार्क्स के ख्याल से एंगेल्स ही वह व्यक्ति थे जो उनके सहकर्मी हो सकते थे।’’

‘‘मार्क्स जितने स्नेही पति और पिता थे, उतने ही अच्छे मित्र भी थे। उनकी पत्नी, बेटियां, एंगेल्स और हेलेन उन जैसे व्यक्ति के स्नेह-पात्र होने के योग्य भी थे।’’

कार्ल मार्क्स के 198वें जन्मदिन पर उनके प्रति आंतरिक श्रद्धांजलि।

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