मोदी जी के स्तवक पत्रकार स्वपन दासगुप्त का आज के ‘टेलिग्राफ’ में एक लेख छपा है - भारत चल पड़ा है (India is moving) ।
पुराने ‘शाइनिंग इंडिया’ का एक नया संस्करण, मूविंग इंडिया।
गौर करने की बात है कि उनके इसी लेख के साथ टेलिग्राफ ने एक तस्वीर भी छापी है जिसमें लंदन के मादम तुसाद म्यूजियम में मोदी जी के मोम के पुतले पर एक कलाकार टच-अप कर रही है, अर्थात उसे थोड़ा संवार रही है।
लव जेहाद से गोमांस और गोरक्षा के भारी उत्पातों, पड़ौसी देशों से संबंधों और कश्मीर के मामलों तथा तेल के अन्तरराष्ट्रीय बाजार में अकल्पनीय गिरावट के बावजूद आम लोगों की रोजमर्रे की सामग्रियों की महंगाई के मामले में भारी विफलताओं से बिगड़ चुकी इस सरकार की तस्वीर को स्वपन दासगुप्त इस लेख से संवार रहे हैं।
दासगुप्त गोमांस-गोरक्षा की तरह के मुद्दों को एक बुराई मानते हैं। इस शासन की और भी ऐसी अनेक बातें हैं जिन्हें वे इसी प्रकार सिर्फ बुरा बता कर दरकिनार कर देना चाहते हैं। लेकिन मोदी साहब की अर्थनीति ! वे कहते हैं - वाह, क्या बात है। उनके शब्दों में इस मामले में ‘‘मोदी की ईमानदारी, पूर्ण एकाग्रता और नेतृत्वकारी क्षमता’’ अद्वितीय है।
मोदी शासन की सारी बुराइयों को तराजू के एक पलड़े पर और दूसरे पलड़े पर उसकी अर्थनीति को रख कर बराबर कर देने, बल्कि पलड़े को मोदी के पक्ष में ही थोड़ा झुका देने का दासगुप्त का यह सारा व्यायाम किस बात का संकेत है ? उनकी बुराइयों और कथित अच्छाई का यह कैसा तालमेल हैं ? क्या यह कोई ऐसा अगोचर ईश्वरीय विधान है जिसे दासगुप्त ने पैगंबर की तरह प्रकाश में लाने का जिम्मा अपने सिर पर ले लिया है ?
दासगुप्त नहीं जानते कि जीवन की ठोस समस्याओं का समाधान उनके दिमाग के चक्कर-घिन्नी वाले तर्कों से नहीं निकलने वाला है। लोग सड़कों पर उतरने लगे हैं। इस शासन का असली इलाज वे खुद ढूंढ लायेंगे।
वैसे दासगुप्त की इस पैगंबरी की सचाई तो टेलिग्राफ की यह तस्वीर ही खोल देती है जिसमें एक मेक-अप कलाकार मोदी जी की बिगड़ी सूरत पर टच-अप कर रहा है !
-अरुण माहेश्वरी
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