अमित शाह ने कहा है कि गांधी 'एक चतुर बनिया 'थे । उन्हें पता था कि आजादी के बाद क्या होने वाला है, इसीलिये उन्होंने कहा था कि कांग्रेस को भंग कर दिया जाना चाहिए ।
अमित शाह गांधी जी के मत की आगे और व्याख्या करना भूल गये । वे यह बताने से चूक गये कि उस 'चतुर बनिये' को यह भी पता था कि आजादी के चंद साल बाद, उनकी हत्या हो जाने पर, जनसंघ नामक एक संगठन पैदा होगा और तब शासन की बागडोर उसे सौंप दी जानी चाहिए ।
सचमुच कितना हास्यास्पद होता है जब किसी ख़ास समय में व्यक्त किये गये किसी विचार को सार्वलौकिक सिद्धांत (Universal principle) की तरह पेश किया जाने लगता है । कांग्रेस के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ी गई और शासन की ज़िम्मेदारी कोई और उठायेगा ! क्या अमित शाह में इतनी सी बात की विडंबना को समझने की क्षमता भी नहीं है !
गांधी जी ने नई ज़िम्मेदारी के वहन के लिये कांग्रेस के पुनर्गठन की जो प्रस्तावित की थी, शायद अमित शाह को उसकी जानकारी नहीं है ।
हर मूर्ख सिद्धांतकार अक्सर कुछ ख़ास लक्षणों पर की गई टिप्पणियों को ही सार्वलौकिक सिद्धांतों की तरह पेश किया करते हैं । वे नहीं जानते, ऐसे सार्वलौकिक सिद्धांत अपने जन्म के साथ ही मृत्यु को प्राप्त करने के लिये अभिशप्त होते हैं । फिर भी जो उनका झंडा लहराते हैं, वे या तो कोरा छल कर रहे होते हैं या मरे हुए बच्चे को छाती से चिपका कर रखने वाली बंदरिया की करुण मनोदशा में होते हैं ।
अमित शाह और करुणा, सब जानते हैं, ये दो विपरीत छोर है । इसीलिये 'चतुर बनिये' की ऐसी अप्रासंगिक बात का उनका विलाप उनका एक और धोखा ही हो सकता है !
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