—अरुण माहेश्वरी
पांच राज्यों के चुनावों की घोषणा हो चुकी है । आगामी 22 नवंबर से मतदान शुरू होगा और 11 दिसंबर को सभी राज्यों के परिणाम एक साथ आ जायेंगे ।
इसी बीच, इन सभी राज्यों में इस चुनावी शतरंज की बिसात प्राय: बिछ चुकी है । गठबंधन, महागठबंधन से जुड़ी राजनीतिक चर्चाओं ने अंतत: पूरे विपक्ष के सामने एक बात साफ कर दी है कि मोदी-शाह गिरोह को हराना है । वे कैसे हारेंगे, कैसे नहीं — इसका सरे-जमीन आकलन करते हुए अपनी रणनीति तय करनी है । इन पांच राज्यों में से तीन ऐसे है जहां कांग्रेस पार्टी के पास अकेले मोदी को सीधी टक्कर देने की पूरी ताकत है । बाकी दोनों राज्यों में यदि भाजपा कोई खास मायने नहीं रखती है तो मोदी-विरोधी रणनीति का भी कोई अर्थ नहीं है ।
जब यह साफ है कि तीन राज्यों में मोदी के खिलाफ अकेले कांग्रेस की ही टक्कर होने की है, तब हाशिये पर खड़े दूसरे दल अपने होने भर का अहसास दिलाने जितनी कवायद ही कर सकते हैं, इस लड़ाई में उनकी स्वतंत्र कोई खास भूमिका नहीं है । वे भले मायावती की निजी हैसियत के लिये काम कर रही बसपा की तरह की पार्टियां हो या वामपंथी पार्टियां । इसी बीच जो चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण आए हैं, वे भी यही बता रहे हैं कि इन तीनों राज्यों में कांग्रेस जीत रही है । मोदी कंपनी पराजय की कगार पर है ।
2019 के लिये भी, मोदी गिरोह को शिकस्त देने के लिये कांग्रेस का पुनरुज्जीवित होना पूरे जनतांत्रिक और धर्म-निरपेक्ष विपक्ष के लिये एक प्राथमिक जरूरत है । अपने कुछ तात्कालिक दबावों में भले आज अखिलेश यादव या मायावती या कोई अन्य कांग्रेस को अहंकारी कह लें, लेकिन 2019 की लड़ाई में सभी जानते हैं कि देश में जनतंत्र की पताका को ऊंचा उठाये रखने की उस लड़ाई में सेनापति की भूमिका कांग्रेस को ही अदा करनी पड़ेगी । इसीलिये, उसका मजबूत और उत्साहित होना उस लड़ाई में मोदी खेमे के तंबू को उखाड़ फेंकने के लिये सबसे जरूरी है । बाकी, जिसकी जिस राज्य में जितनी ताकत है, उसी के अनुसार वह 2019 की लड़ाई में अपना योगदान करेगा । किसके सहयोग से इस लड़ाई में फायदा होगा और किसे छोड़ देने से, इसका ठोस आकलन राज्यवर गठबंधन-महागठबंधन के स्वरूपों को निर्धारित करेगा । गुजरात, पंजाब और हरियाणा में भी इस लड़ाई में कांग्रेस के अलावा दूसरे किसी दल की कोई अलग से विशेष भूमिका नहीं होगी । जिन राज्यों में बीजेपी का अभी कोई अस्तित्व ही नहीं है, जैसे केरल, आंध्र, तमिलनाडु, उड़ीसा, बंगाल, पंजाब, उत्तर-पूर्व के कुछ राज्य — वहां धर्म-निरपेक्ष जनतांत्रिक दलों की प्रतिद्वंद्विता का बने रहना ही शुभ है । अन्यथा वहां विपक्ष के शून्य में भाजपा जैसे अवांछित तत्वों के प्रवेश की संभावना बनेगी । यहां तक कि असम और त्रिपुरा में भी भाजपा कांग्रेस को हड़प कर ऊपर आई है । वह जैसे आई है, वैसे ही विलीन भी हो जायेगी ।
बहरहाल, इन पांच राज्यों के चुनावों से जो सबसे बड़ी बात होने जा रही है, वह है जनता के एक हिस्से पर मोदी-शाह-आरएसएस की अपराजेयता की मानसिक जकड़बंदी का टूटना । यह अब दिन के उजाले की तरह साफ हो जायेगा कि वे अपने को जिस प्रकार अपराजेय और सर्व-व्यापी दिखाना चाहते हैं, वह सच्चाई से कोसो दूर है । तानाशाहों की अपराजेयता की छवि ही उनकी असली शक्ति होती है । उसका आतंक बना रहे, कोई उसका विरोध करने की हिम्मत नहीं कर सकता — यह धाक बनी रहे, इसके बाद तो पूरा परिवेश उसी की गूंज-अनुगूंज से भर जाता है !
मोदी ने पिछले साढ़े चार साल कुछ इसी प्रकार का तुमार बांधने में व्यतीत किये हैं । प्रदर्शनप्रिय मोदी मानते रहे हैं कि दृष्ट के बाहर कोई सत्य नहीं होता है । इसीलिये लोगों को नजर आने वाले सारे माध्यमों पर, जैसे टेलिविजन, अखबार, इंटरनेट और सभी माध्यमों पर अपना एकाधिकार कर लो, जीवन भर के लिये तुम ही तुम बने रहोगे । इस चक्कर में नोटबंदी की तरह का घनचक्करों वाला काम कर दिया तो जीएसटी को विकृत करने का आधी रात का भुतहा जश्न मनाया । सेना को भी अपने इस धंधे में शामिल करके झूठो सर्जिकल स्ट्राइक का त्यौहार मनाना शुरू कर दिया । यहां तक कि उन्होंने राजनय को भी अपने खुद के प्रदर्शन का, सेल्फियां लेने का क्षेत्र बना दिया । और कुल मिला कर अंत में हालत यह है कि न महंगाई पर कोई अंकुश लग पा रहा है और न उद्योग धंधों में गिरावट का, रुपये की तबाही का सिलसिला थम रहा है । दैनंदिन खर्च चलाने के लिये पेट्रोल डीजल पर अधिक से अधिक कर जुटाने का जुगत करना पड़ रहा है ।
बहरहाल, अभी भी मोदी अपनी सारी दमनकारी एजेंशियों के प्रयोग से अपने आतंक को बनाने के लिये दिन-रात एक किये हुए हैं। मायावती, मुलायम जैसों को एक बार के लिये दबा कर रखने में उन्हें इससे मदद भी मिली है । यहां तक कि सोशल मीडिया में भी विरोधियों की बातों को रोकने की कोशिश की जा रही है ।
लेकिन इन राज्यों के चुनाव परिणाम तो जब आयेंगे, तब आयेंगे — आज ही राहुल गांधी ने मोदी के राफेल के महाघोटाले, नोटबंदी की तरह के निर्बुद्धिपूर्ण कदम और राज्य के संचालन में उनकी चरम अयोग्यता को पूरे साहस के साथ जिस प्रकार बेपर्द करना शुरू कर दिया है, उसकी छाप गोदी मीडिया कहे जाने वाले परजीवियों पर भी पड़ने लगी है । मोदी-शाह की अपराजेयता का समूचा आडंबर इन चुनावों में उनकी हार के पहले ही टूट कर गिर चुका है । 2019 में तो संबित पात्रा की तरह के गालियां बकने वालों के कंधों पर टिकी यह कंपनी वास्तव में धूल में मिलती दिखाई देगी ।
पांच राज्यों के चुनावों की घोषणा हो चुकी है । आगामी 22 नवंबर से मतदान शुरू होगा और 11 दिसंबर को सभी राज्यों के परिणाम एक साथ आ जायेंगे ।
इसी बीच, इन सभी राज्यों में इस चुनावी शतरंज की बिसात प्राय: बिछ चुकी है । गठबंधन, महागठबंधन से जुड़ी राजनीतिक चर्चाओं ने अंतत: पूरे विपक्ष के सामने एक बात साफ कर दी है कि मोदी-शाह गिरोह को हराना है । वे कैसे हारेंगे, कैसे नहीं — इसका सरे-जमीन आकलन करते हुए अपनी रणनीति तय करनी है । इन पांच राज्यों में से तीन ऐसे है जहां कांग्रेस पार्टी के पास अकेले मोदी को सीधी टक्कर देने की पूरी ताकत है । बाकी दोनों राज्यों में यदि भाजपा कोई खास मायने नहीं रखती है तो मोदी-विरोधी रणनीति का भी कोई अर्थ नहीं है ।
जब यह साफ है कि तीन राज्यों में मोदी के खिलाफ अकेले कांग्रेस की ही टक्कर होने की है, तब हाशिये पर खड़े दूसरे दल अपने होने भर का अहसास दिलाने जितनी कवायद ही कर सकते हैं, इस लड़ाई में उनकी स्वतंत्र कोई खास भूमिका नहीं है । वे भले मायावती की निजी हैसियत के लिये काम कर रही बसपा की तरह की पार्टियां हो या वामपंथी पार्टियां । इसी बीच जो चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण आए हैं, वे भी यही बता रहे हैं कि इन तीनों राज्यों में कांग्रेस जीत रही है । मोदी कंपनी पराजय की कगार पर है ।
2019 के लिये भी, मोदी गिरोह को शिकस्त देने के लिये कांग्रेस का पुनरुज्जीवित होना पूरे जनतांत्रिक और धर्म-निरपेक्ष विपक्ष के लिये एक प्राथमिक जरूरत है । अपने कुछ तात्कालिक दबावों में भले आज अखिलेश यादव या मायावती या कोई अन्य कांग्रेस को अहंकारी कह लें, लेकिन 2019 की लड़ाई में सभी जानते हैं कि देश में जनतंत्र की पताका को ऊंचा उठाये रखने की उस लड़ाई में सेनापति की भूमिका कांग्रेस को ही अदा करनी पड़ेगी । इसीलिये, उसका मजबूत और उत्साहित होना उस लड़ाई में मोदी खेमे के तंबू को उखाड़ फेंकने के लिये सबसे जरूरी है । बाकी, जिसकी जिस राज्य में जितनी ताकत है, उसी के अनुसार वह 2019 की लड़ाई में अपना योगदान करेगा । किसके सहयोग से इस लड़ाई में फायदा होगा और किसे छोड़ देने से, इसका ठोस आकलन राज्यवर गठबंधन-महागठबंधन के स्वरूपों को निर्धारित करेगा । गुजरात, पंजाब और हरियाणा में भी इस लड़ाई में कांग्रेस के अलावा दूसरे किसी दल की कोई अलग से विशेष भूमिका नहीं होगी । जिन राज्यों में बीजेपी का अभी कोई अस्तित्व ही नहीं है, जैसे केरल, आंध्र, तमिलनाडु, उड़ीसा, बंगाल, पंजाब, उत्तर-पूर्व के कुछ राज्य — वहां धर्म-निरपेक्ष जनतांत्रिक दलों की प्रतिद्वंद्विता का बने रहना ही शुभ है । अन्यथा वहां विपक्ष के शून्य में भाजपा जैसे अवांछित तत्वों के प्रवेश की संभावना बनेगी । यहां तक कि असम और त्रिपुरा में भी भाजपा कांग्रेस को हड़प कर ऊपर आई है । वह जैसे आई है, वैसे ही विलीन भी हो जायेगी ।
बहरहाल, इन पांच राज्यों के चुनावों से जो सबसे बड़ी बात होने जा रही है, वह है जनता के एक हिस्से पर मोदी-शाह-आरएसएस की अपराजेयता की मानसिक जकड़बंदी का टूटना । यह अब दिन के उजाले की तरह साफ हो जायेगा कि वे अपने को जिस प्रकार अपराजेय और सर्व-व्यापी दिखाना चाहते हैं, वह सच्चाई से कोसो दूर है । तानाशाहों की अपराजेयता की छवि ही उनकी असली शक्ति होती है । उसका आतंक बना रहे, कोई उसका विरोध करने की हिम्मत नहीं कर सकता — यह धाक बनी रहे, इसके बाद तो पूरा परिवेश उसी की गूंज-अनुगूंज से भर जाता है !
मोदी ने पिछले साढ़े चार साल कुछ इसी प्रकार का तुमार बांधने में व्यतीत किये हैं । प्रदर्शनप्रिय मोदी मानते रहे हैं कि दृष्ट के बाहर कोई सत्य नहीं होता है । इसीलिये लोगों को नजर आने वाले सारे माध्यमों पर, जैसे टेलिविजन, अखबार, इंटरनेट और सभी माध्यमों पर अपना एकाधिकार कर लो, जीवन भर के लिये तुम ही तुम बने रहोगे । इस चक्कर में नोटबंदी की तरह का घनचक्करों वाला काम कर दिया तो जीएसटी को विकृत करने का आधी रात का भुतहा जश्न मनाया । सेना को भी अपने इस धंधे में शामिल करके झूठो सर्जिकल स्ट्राइक का त्यौहार मनाना शुरू कर दिया । यहां तक कि उन्होंने राजनय को भी अपने खुद के प्रदर्शन का, सेल्फियां लेने का क्षेत्र बना दिया । और कुल मिला कर अंत में हालत यह है कि न महंगाई पर कोई अंकुश लग पा रहा है और न उद्योग धंधों में गिरावट का, रुपये की तबाही का सिलसिला थम रहा है । दैनंदिन खर्च चलाने के लिये पेट्रोल डीजल पर अधिक से अधिक कर जुटाने का जुगत करना पड़ रहा है ।
बहरहाल, अभी भी मोदी अपनी सारी दमनकारी एजेंशियों के प्रयोग से अपने आतंक को बनाने के लिये दिन-रात एक किये हुए हैं। मायावती, मुलायम जैसों को एक बार के लिये दबा कर रखने में उन्हें इससे मदद भी मिली है । यहां तक कि सोशल मीडिया में भी विरोधियों की बातों को रोकने की कोशिश की जा रही है ।
लेकिन इन राज्यों के चुनाव परिणाम तो जब आयेंगे, तब आयेंगे — आज ही राहुल गांधी ने मोदी के राफेल के महाघोटाले, नोटबंदी की तरह के निर्बुद्धिपूर्ण कदम और राज्य के संचालन में उनकी चरम अयोग्यता को पूरे साहस के साथ जिस प्रकार बेपर्द करना शुरू कर दिया है, उसकी छाप गोदी मीडिया कहे जाने वाले परजीवियों पर भी पड़ने लगी है । मोदी-शाह की अपराजेयता का समूचा आडंबर इन चुनावों में उनकी हार के पहले ही टूट कर गिर चुका है । 2019 में तो संबित पात्रा की तरह के गालियां बकने वालों के कंधों पर टिकी यह कंपनी वास्तव में धूल में मिलती दिखाई देगी ।
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