-अरुण माहेश्वरी
पाकिस्तान के बालाकोट में अंदर घुस कर पाक सेना के अड्डों पर भारतीय वायु सेना का हमला पुलवामा की एक जवाबी कार्रवाई है । पुलवामा के बाद देश भर में जो दबाव पैदा हुआ था, उसकी एक बिल्कुल स्वाभाविक अभिव्यक्ति । इसके अलावा किसी के पास अन्य कोई चारा नहीं बचा था ।
भारत की वायु सेना की इस सफल कार्रवाई पाकिस्तान की सेना को कितना नुकसान पहुंचा, अभी इसका पूरा अनुमान मिलना बाकी है । लेकिन आगे देखने की बात यह है कि पुलवामा का यह जवाबी प्रतिकार आगे एक प्रतीकात्मक कार्रवाई तक सीमित रहता है, जैसा सर्जिकल स्ट्राइक में हुआ था, या यह हमले-जवाबी हमले की किसी नई श्रृंखला को जन्म देता है, किसी युद्ध की दिशा में बढ़ता है ।
पुलवामा के हमले के बारे में पाकिस्तान कितने ही सबूतों की मांग क्यों न करें, खुद पाकिस्तान-स्थित जैश-ए-मोहम्मद ने खुला बयान दे कर उस हमले की जिम्मेदारी को स्वीकारा था । इसीलिये सबूतों की मांग के बजाय पाकिस्तान सरकार को जैश के नेता अजहर मसूद और उसके संगठन के विरुद्ध खुद से तत्काल कार्रवाई शुरू करनी चाहिए थी । ऐसी स्थिति में भारत का पाकिस्तान सरकार के रुख की इस सच्चाई के प्रति उदासीन रह कर हाथ पर हाथ धरे बैठा रहना मुमकिन नहीं था ।
पिछले दो दिन से इमरान खान भारत सरकार से शांति को एक मौका देने की मांग कर रहे थे । उनका यह सुर ईंट का जवाब पत्थर से देंगे वाले उनके शुरू के सुर से जरा सा भिन्न था । तभी यह साफ हो गया था कि उन्हें भारत की संभावित कार्रवाई का पूरा अंदेशा हो चुका है ।
इस दौरान, पाकिस्तान सरकार के साथ दूसरे चैनलों के माध्यम से भारत सरकार के संपर्कों की बात भी आ रही थी ।
इस प्रकार के एक घटना-प्रवाह में जॉंबाज भारतीय वायु सेना का यह पूरी तरह से सफल आक्रामक कदम बहुत ही तात्पर्यपूर्ण हो जाता है । इस विषय में अब तक की भारत और पाकिस्तान, दोनों ओर से की गई कूटनीतिक कार्रवाइयां इस बात को सुनिश्चित कर सकती है कि चीजें इससे आगे किसी पूर्ण युद्ध की दिशा में न बढ़ने पाएं । पूरे घटनाक्रम से पाकिस्तान को एक जरूरी सबक ग्रहण करके इस क्षेत्र को क्रमश: शांति के क्षेत्र का रूप देने की दिशा में कोशिश करनी चाहिए । वह ऐसा कितना करेगा, इस पर गहरा संदेह है ।
जब पाकिस्तान सरकार खुद यह कहती है कि उसका देश दहशतगर्दी का सबसे बुरी तरह शिकार देश है, तो उसकी तमाम गतिविधियां युद्ध-युद्ध के खेल को बढ़ावा देने के बजाय भारत के साथ परस्पर-सहयोग की जमीन को पुख्ता करने की दिशा में होनी चाहिए ।
यह सच है कि मोदी जी अपने मीडिया भोंपुओं के साथ इस बिना युद्ध के युद्ध में विजयी का सेहरा बांध कर सेना की कार्रवाई की सफलता का चुनावी लाभ लेने की कोशिश करेंगे । वे इसमें कितना सफल होंगे, यह तो आगे की और परिस्थितियां ही तय करेगी । यदि आगे युद्ध वाली स्थितियां बनती है तो यह सारा मामला चुनाव के विषय से एक पूरी तरह से भिन्न खतरनाक वैश्विक मामला बन जायेगा । फिर भारत में चुनाव का विषय ही बेमाने हो जायेगा, उसमें जीत-हार के विषय जाने दीजिए !
लेकिन यदि यह विषय सिर्फ अकेली प्रतिकारमूलक कार्रवाई का विषय बन कर सीमित रह जाता है तो हमारे अनुसार आगामी चुनाव अंतत: अपनी शर्तों पर ही लड़े जायेंगे । मोदी को इससे मिलने वाला प्रचारात्मक लाभ उनकी जीत को सुनिश्चित करेगा, यह कहना बहुत जल्दबाजी ही नहीं, मूर्खतापूर्ण होगी।
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