अरुण माहेश्वरी
आधी सदी बीत चुकी है। चीन के प्रधानमंत्री झाउ एन लाई ने सन् 1963 में चार आधुनिकीकरण का नारा दिया था। वे संघाई में चीन के वैज्ञानिकों और तकनीशियनों के एक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। यह विज्ञान और तकनीक के मामले में चीन को उसकी जड़ता से मुक्त करने का नारा था। तब चीन के विश्वविद्यालयों की स्थिति जर्जर थी। अन्तरराष्ट्रीय संपर्कों से कटे होने के कारण विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में दुनिया में होरही प्रगति से अनभिज्ञ चीन के पास शिक्षा और शोध के कोई आधुनिक उपकरण नहीं थे। न ही प्रबंधन संबंधी ऐसा आधुनिक सोच था जो इस कमी को दूर करने के रास्ते के उपाय खोज सके। तभी झाउ एन लाई ने चीन के विज्ञान जगत को दुनिया के संदर्भ में खोलने और नई तकनीक हासिल करके तेजी के साथ जीवन के सभी क्षेत्रों के आधुनिकीकरण के कामों को पूरा करने के लिये ‘चार आधुनिकीकरण’ की बात कही थी।
सन् ‘63 के 15 साल बाद, सांस्कृतिक क्रांति के यंत्रणादायी अनुभवों के उपरांत, जब देंग जियाओ पिंग ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की कमान संभाली, चीन के दरवाजों को खोलने की इसी नीति पर कृषि, उद्योग, विज्ञान व तकनीक तथा सेना - इन चार क्षेत्रों में आधुनिकीकरण के अभियान के जरिये उन्होंने ‘चार आधुनिकीकरण’ के नारे को नया आयाम प्रदान किया। राष्ट्र के विकास के लिये 10 साल की एक व्यापक योजना बनायी। लक्ष्य था - नयी सदी तक चीन को हर स्तर पर पश्चिम से प्रतिद्वंद्विता के लायक बनाना। इसके लिये तमाम जरूरी संसाधनों को जुटाने के लिये चीन को खोलने, विकास की महत्वाकांक्षी योजनाओं के लिये हर क्षेत्र में भारी निवेश को हासिल करने के लिये जरूरी कदम उठाये गये। इसके अलावा एक संतुलित सामाजिक विकास को हासिल करने के लिये भी कुछ नीतियां निर्धारित की गयी, जिनमें एक महत्वपूर्ण नीति आबादी के संतुलित विकास की भी थी। शहरवासियों के लिये एक बच्चा और गांव के लोगों के लिये दो बच्चें, बशर्ते गांव के दंपत्ति के पहला बच्चा लड़की हो।
बहरहाल, तबसे लगभग साढ़े तीन दशक का समय बीत गया है। इस बीच चीन के सामने कई प्रकार की सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियां आईं। इनमें सबसे अधिक उल्लेखनीय है - सन् 1989 की तियेन मियेन स्क्वायर की चुनौती जब आर्थिक सुधार और उदारतावाद से संगति रखते हुए वहां के राजनीतिक ढांचे को भी आमूल-चूल बदल डालने की मांग के साथ छात्रों के एक आंदोलन ने सिर उठाया था और चीन की सरकार ने बीजिंग के तियेनमेन स्क्वायर पर छात्रों के प्रदर्शन को पूरी शक्ति के साथ कुचल डाला था।
इन सभी अनुभवों के आधार पर देंग की विचारधारा का जो महल तैयार हुआ, उसकी मुख्य बातें थी :
1.चीन समाजवाद के प्राथमिक चरण पर है। समाजवाद का अर्थ न गरीबी है और न धीमा विकास। इसका मूल उद्देश्य है उत्पादक शक्तियों का विकास ।
2.समाजवाद का अर्थ न समानतावाद है और न ही सामाजिक ध्रुवीकरण। समाजवाद का अंतिम लक्ष्य है - आम समृद्धि। इसका अर्थ यह भी नहीं सब लोग एक साथ समृद्ध हो जायेंगे। कुछ लोगों और कुछ क्षेत्रों को पहले धनी बनने की अनुमति दी जानी चाहिए।
3.योजनाबद्ध विकास अनिवार्य तौर पर समाजवाद नहीं होता और न ही बाजार अर्थ-व्यवस्था अनिवार्य तौर पर पूंजीवाद। समाजवाद के अन्तर्गत भी बाजार अर्थ-व्यवस्था लागू की जा सकती है।
4.जनतंत्र के बिना कोई समाजवाद या समाजवादी आधुनिकीकरण नहीं हो सकता और जनतंत्र समाजवाद का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पहलू है।
5.उच्च स्तर की विचारधारात्मक और नैतिक प्रगति जरूरी है जो समाजवादी संस्कृति का अभिन्न अंग है।
6.सुधार और खुलेपन के जरिये समाजवाद का निर्माण करना होगा। राष्ट्र के भविष्य के लिये सुधार और खुलेपन का बहुत अधिक महत्व है।
7.समाजवाद के निर्माण के लिये जरूरी है कि चीन की कम्युनिस्ट का नेतृत्व और उसमें लगातार सुधार।
कहना न होगा, तब से अब तक मोटे तौर पर चीन की सरकार विचारधारा के इसी ढांचे के अंतर्गत काम कर रही है।
पिछली 9-12 नवंबर 2013 को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं केंद्रीय कमेटी के तीसरे पूर्णाधिवेशन की बैठक संपन्न हुई है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पिछले लगभग चालीस सालों के इतिहास में उसकी हर केंद्रीय कमेटी का तीसरे पूर्णाधिवेशन नीतिगत फैसलों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण रहा है। 1978 में 11वीं केंद्रीय कमेटी के तीसरे पूर्णाधिवेशन में ही देंग के सुधार कार्यक्रम की घोषणा की गयी थी। 1993 में 14वीं केंद्रीय कमेटी के तीसरे पूर्णाधिवेशन में समाजवादी बाजार अर्थ-व्यवस्था संबंधी नीतिगत निर्णय लिये गये थे। इसी परंपरा में अब जी जिनपिंग के नेतृत्व में गठित चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं केंद्रीय कमेटी के पूर्णाधिवेशन के निर्णयों से चीन के भावी विकास के बारे में ठोस समझ कायम की जा सकती है।
केंद्रीय कमेटी के इस पूर्णाधिवेशन में जो नीतिगत निर्णय लिये गये उनमें इस बात को दोहराया गया कि चीन आज भी समाजवाद के प्राथमिक चरण पर है और आने वाले लंबे अर्से तक, सुधार के व्यापक और गहन दौर में, वह इसीपर रहेगा। जोर देकर कहा गया कि चीन की सभी समस्याओं का निदान विकास और आर्थिक सुधार में निहित है।
इस पूर्णाधिवेशन में सुधार के जिन प्रमुख कदमों को अपनाया गया, उनमें चीन की अर्थ-व्यवस्था को और ज्यादा खोलने के साथ ही आय की विषमता को कम करने के लिये आयकर कानूनों को प्रभावी बनाने के प्रशासनिक कदमों की बात कही गयी गयी। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण निर्णय यह भी लिया गया है कि आबादी के बारे में 1978 में प्रति परिवार एक बच्चे की जो नीति अपनाई गयी थी, उसमें परिवर्तन करके इसे दो बच्चों की नीति में बदला जायेगा। इसके साथ ही दंड संहिता में भी एक उल्लेखनीय परिवर्तन की ओर संकेत करते हुए कहा गया है कि मृत्युदंड की सजा को यथासंभव कम करके, श्रम के जरिये अपराधी को सुधर कर समाज की मुख्यधारा में फिर से शामिल होने के मौके पर बल दिया जायेगा। कृषि क्षेत्र में अब तक चली आरही नीतियों की समीक्षा करते हुए कुछ बड़े सुधार के भी निर्णय लिये गये।
मोटे तौर पर विचारधारात्मक निर्णयों के उपरोक्त ढांचे में भावी चीन के प्रशासनिक स्वरूप के बारे में कुछ ठोस अनुमान लगाये जा सकते हैं।
चीन में प्रशासन का विचारधारात्मक आधार
आधी सदी बीत चुकी है। चीन के प्रधानमंत्री झाउ एन लाई ने सन् 1963 में चार आधुनिकीकरण का नारा दिया था। वे संघाई में चीन के वैज्ञानिकों और तकनीशियनों के एक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। यह विज्ञान और तकनीक के मामले में चीन को उसकी जड़ता से मुक्त करने का नारा था। तब चीन के विश्वविद्यालयों की स्थिति जर्जर थी। अन्तरराष्ट्रीय संपर्कों से कटे होने के कारण विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में दुनिया में होरही प्रगति से अनभिज्ञ चीन के पास शिक्षा और शोध के कोई आधुनिक उपकरण नहीं थे। न ही प्रबंधन संबंधी ऐसा आधुनिक सोच था जो इस कमी को दूर करने के रास्ते के उपाय खोज सके। तभी झाउ एन लाई ने चीन के विज्ञान जगत को दुनिया के संदर्भ में खोलने और नई तकनीक हासिल करके तेजी के साथ जीवन के सभी क्षेत्रों के आधुनिकीकरण के कामों को पूरा करने के लिये ‘चार आधुनिकीकरण’ की बात कही थी।
सन् ‘63 के 15 साल बाद, सांस्कृतिक क्रांति के यंत्रणादायी अनुभवों के उपरांत, जब देंग जियाओ पिंग ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की कमान संभाली, चीन के दरवाजों को खोलने की इसी नीति पर कृषि, उद्योग, विज्ञान व तकनीक तथा सेना - इन चार क्षेत्रों में आधुनिकीकरण के अभियान के जरिये उन्होंने ‘चार आधुनिकीकरण’ के नारे को नया आयाम प्रदान किया। राष्ट्र के विकास के लिये 10 साल की एक व्यापक योजना बनायी। लक्ष्य था - नयी सदी तक चीन को हर स्तर पर पश्चिम से प्रतिद्वंद्विता के लायक बनाना। इसके लिये तमाम जरूरी संसाधनों को जुटाने के लिये चीन को खोलने, विकास की महत्वाकांक्षी योजनाओं के लिये हर क्षेत्र में भारी निवेश को हासिल करने के लिये जरूरी कदम उठाये गये। इसके अलावा एक संतुलित सामाजिक विकास को हासिल करने के लिये भी कुछ नीतियां निर्धारित की गयी, जिनमें एक महत्वपूर्ण नीति आबादी के संतुलित विकास की भी थी। शहरवासियों के लिये एक बच्चा और गांव के लोगों के लिये दो बच्चें, बशर्ते गांव के दंपत्ति के पहला बच्चा लड़की हो।
बहरहाल, तबसे लगभग साढ़े तीन दशक का समय बीत गया है। इस बीच चीन के सामने कई प्रकार की सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियां आईं। इनमें सबसे अधिक उल्लेखनीय है - सन् 1989 की तियेन मियेन स्क्वायर की चुनौती जब आर्थिक सुधार और उदारतावाद से संगति रखते हुए वहां के राजनीतिक ढांचे को भी आमूल-चूल बदल डालने की मांग के साथ छात्रों के एक आंदोलन ने सिर उठाया था और चीन की सरकार ने बीजिंग के तियेनमेन स्क्वायर पर छात्रों के प्रदर्शन को पूरी शक्ति के साथ कुचल डाला था।
इन सभी अनुभवों के आधार पर देंग की विचारधारा का जो महल तैयार हुआ, उसकी मुख्य बातें थी :
1.चीन समाजवाद के प्राथमिक चरण पर है। समाजवाद का अर्थ न गरीबी है और न धीमा विकास। इसका मूल उद्देश्य है उत्पादक शक्तियों का विकास ।
2.समाजवाद का अर्थ न समानतावाद है और न ही सामाजिक ध्रुवीकरण। समाजवाद का अंतिम लक्ष्य है - आम समृद्धि। इसका अर्थ यह भी नहीं सब लोग एक साथ समृद्ध हो जायेंगे। कुछ लोगों और कुछ क्षेत्रों को पहले धनी बनने की अनुमति दी जानी चाहिए।
3.योजनाबद्ध विकास अनिवार्य तौर पर समाजवाद नहीं होता और न ही बाजार अर्थ-व्यवस्था अनिवार्य तौर पर पूंजीवाद। समाजवाद के अन्तर्गत भी बाजार अर्थ-व्यवस्था लागू की जा सकती है।
4.जनतंत्र के बिना कोई समाजवाद या समाजवादी आधुनिकीकरण नहीं हो सकता और जनतंत्र समाजवाद का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पहलू है।
5.उच्च स्तर की विचारधारात्मक और नैतिक प्रगति जरूरी है जो समाजवादी संस्कृति का अभिन्न अंग है।
6.सुधार और खुलेपन के जरिये समाजवाद का निर्माण करना होगा। राष्ट्र के भविष्य के लिये सुधार और खुलेपन का बहुत अधिक महत्व है।
7.समाजवाद के निर्माण के लिये जरूरी है कि चीन की कम्युनिस्ट का नेतृत्व और उसमें लगातार सुधार।
कहना न होगा, तब से अब तक मोटे तौर पर चीन की सरकार विचारधारा के इसी ढांचे के अंतर्गत काम कर रही है।
पिछली 9-12 नवंबर 2013 को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं केंद्रीय कमेटी के तीसरे पूर्णाधिवेशन की बैठक संपन्न हुई है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पिछले लगभग चालीस सालों के इतिहास में उसकी हर केंद्रीय कमेटी का तीसरे पूर्णाधिवेशन नीतिगत फैसलों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण रहा है। 1978 में 11वीं केंद्रीय कमेटी के तीसरे पूर्णाधिवेशन में ही देंग के सुधार कार्यक्रम की घोषणा की गयी थी। 1993 में 14वीं केंद्रीय कमेटी के तीसरे पूर्णाधिवेशन में समाजवादी बाजार अर्थ-व्यवस्था संबंधी नीतिगत निर्णय लिये गये थे। इसी परंपरा में अब जी जिनपिंग के नेतृत्व में गठित चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं केंद्रीय कमेटी के पूर्णाधिवेशन के निर्णयों से चीन के भावी विकास के बारे में ठोस समझ कायम की जा सकती है।
केंद्रीय कमेटी के इस पूर्णाधिवेशन में जो नीतिगत निर्णय लिये गये उनमें इस बात को दोहराया गया कि चीन आज भी समाजवाद के प्राथमिक चरण पर है और आने वाले लंबे अर्से तक, सुधार के व्यापक और गहन दौर में, वह इसीपर रहेगा। जोर देकर कहा गया कि चीन की सभी समस्याओं का निदान विकास और आर्थिक सुधार में निहित है।
इस पूर्णाधिवेशन में सुधार के जिन प्रमुख कदमों को अपनाया गया, उनमें चीन की अर्थ-व्यवस्था को और ज्यादा खोलने के साथ ही आय की विषमता को कम करने के लिये आयकर कानूनों को प्रभावी बनाने के प्रशासनिक कदमों की बात कही गयी गयी। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण निर्णय यह भी लिया गया है कि आबादी के बारे में 1978 में प्रति परिवार एक बच्चे की जो नीति अपनाई गयी थी, उसमें परिवर्तन करके इसे दो बच्चों की नीति में बदला जायेगा। इसके साथ ही दंड संहिता में भी एक उल्लेखनीय परिवर्तन की ओर संकेत करते हुए कहा गया है कि मृत्युदंड की सजा को यथासंभव कम करके, श्रम के जरिये अपराधी को सुधर कर समाज की मुख्यधारा में फिर से शामिल होने के मौके पर बल दिया जायेगा। कृषि क्षेत्र में अब तक चली आरही नीतियों की समीक्षा करते हुए कुछ बड़े सुधार के भी निर्णय लिये गये।
मोटे तौर पर विचारधारात्मक निर्णयों के उपरोक्त ढांचे में भावी चीन के प्रशासनिक स्वरूप के बारे में कुछ ठोस अनुमान लगाये जा सकते हैं।
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