सोमवार, 2 नवंबर 2015

क्या कहेंगे प्रधानमंत्री जी की इन आत्महंता नीतियों को ?


-अरुण माहेश्वरी

कहते है ना कि किसी भी व्यक्ति के बारे में अनर्थकारी भविष्यवाणी तभी सच साबित होती है जब उस व्यक्ति को भविष्यवाणी के बारे में बता दिया जाता है। तब वह सचेत होकर उससे बचने के लिये तमाम उट-पटांग काम शुरू कर देता है और खुद ही ऐसे हालात पैदा कर देता है कि जिस नियति से वह बचना चाहता है, उसीकी चपेट में बुरी तरह फंस जाता है।

आज बिहार चुनाव को लेकर वही दशा नरेंद्र मोदी की हो गयी है। जैसे-जैसे उनको चारों ओर से यह सुनाई देने लगा कि वे बिहार में हार रहे हैं, इस हार को टालने के लिये उन्होंने इतने बुरे काम शुरू कर दिये हैं कि अब हार से बचना तो दूर, क्रमश: बात इसपर आकर टिक गयी है कि उनकी हार कितनी बुरी होने वाली है। बिहार में कहीं दिल्ली की कहानी तो नहीं दोहरा दी जायेगी? क्या एनडीए को दस प्रतिशत सीटें भी मिलेंगी ?

फ्रायड ने जिसे आदमी के अवचेतन की इडिपस ग्रंथी कहा था, व्यक्ति की अपने माता-पिता के प्रति आकर्षण की असहज ग्रंथी, उसका स्रोत भी यही था। । इडिपस की कहानी में उसके पिता को ज्योतिषी ने बता दिया था उसका बेटा उसे मार कर अपनी मां से ही शादी कर लेगा। पिता इस भविष्यवाणी से बचने के लिए अति सचेत हो गया। उसने बचपन में ही बेटे को अपने से दूर जंगल में भेज दिया। इसीलिए बाद में जब उसका बेटे से मुकाबला हुआ, बेटा उसे पहचान ही नहीं पाया और वह बेटे के हाथों मारा गया। बेटे ने अपनी सौतेली मां से ही शादी कर ली। कहने का मतलब यह है कि अगर इडिपस का पिता उस भविष्यवाणी को नहीं जानता तो इडिपस आराम से अपने मां-बाप के साथ रहता और इस ‘इडिपस-ग्रंथी’ नामकी कोई चीज पैदा नहीं होती।

हिंदी में कहावत है कि जब गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की ओर भागता है। समरसेट मौम के नाटक ‘शैपे’(Sheppey) में एक कहानी है - बगदाद का एक व्यापारी अपने नौकर को बाजार से सामान लाने भेजता है। नौकर जल्द ही बाजार से थरथराता हुआ लौट आता है। मालिक पूछता है, क्या हुआ ? नौकर कहता है, बाजार में भीड़ में एक औरत मुझसे टकराई। वह मौत थी। मुझे घूर-घूर कर देख रही थी। मुझे यहां से फौरन भागना होगा। मालिक, अपना घोड़ा दीजिए, मौत से बचने शहर से दूर चला जाऊंगा। मालिक ने अपना घोड़ा दे दिया और नौकर उसपर छलांग लगाते हुए सुदूर समारा की ओर चला गया। बाद में मालिक खुद बाजार गया। उसकी भी वहां मौत से मुलाकात हुई। मालिक ने उससे पूछा कि तुम सुबह यहां हमारे नौकर को क्यों घूर रही थी ? मौत ने कहा, मैं अचरज में थी। उससे तो मेरी मुलाकात समारा में होना तय था।

कहना न होगा, प्रधानमंत्री मोदी अनायास ही बिहार में आज नाना प्रकार के झूठे पोस्टरों और सांप्रदायिक विभाजन की सबसे जघन्य चालों से शायद ऐसी ही किसी अनर्थकारी नियति को पाने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं !

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