अरुण माहेश्वरी
भारतीय काव्यशास्त्र में भरत, मम्म्ट, आनंदवर्द्धन, अभिनवगुप्त आदि की परंपरा में ही एक प्रमुख नाम आता है 17वीं सदी में जहांगीर और शाहजहां के दरबार के एक विद्वान रत्न और दाराशिकोह के विद्या-गुरुओं में एक पंडितराज जगन्नाथ का। काव्य में रस, अलंकार, रीति, वक्रोक्ति आदि तत्वों के संदर्भ में जगन्नाथ याद किये जाते हैं अपने रमणीयता तत्व के लिये, अर्थात सौन्दर्य तत्व के लिये, जो भारतीय काव्यशास्त्र की चर्चा को पश्चिमी सौन्दर्यशास्त्रीय चर्चा से जोड़ने का एक आधार प्रदान करता है।
हमारे प्रधानमंत्री की तमाम गतिविधियों को देखकर पंडित जगन्नाथ का एक कथन याद आता है -
‘‘ कृतं प्रायश्चित्तैश्लमथ तपोदानय जनै:
सवित्रि कामानां यदि जगति जागर्ति भवती।’’
अर्थात भगवान शंकर हमेशा नृत्य करते रहें, तो न किसी प्रायश्चित की जरूरत होगी, न किसी तप, दान, याग आदि की। इस धरती पर जब सभी कामों को पूर्ण करने वाली गंगा उच्छलित हो रही है, तो वैसे ही सब कुछ पर्याप्त है !
पंडित जगन्नाथ के इस श्लोक के पहले की पंक्तियों में कहा गया है कि ब्रह्मा भले ही अनंतकाल तक समाधिस्थ रहें और विष्णु शेषनाग की शैया पर आराम करें, जरूरत है सिर्फ शंकर के नृत्य की।
और कहना न होगा, हमारे शंकर नाच रहे हैं, राजनीति के सौन्दर्य का चमत्कार पैदा करते हुए, भ्रमों का इंद्रजाल तैयार करते हुए। किसान भूख से मरे, मजदूर के जीवन में भारी अनिश्चय हो, नौजवान बेरोजगार हो और स्त्रियां और अन्य कमजोर लोग असुरक्षित - ये नृत्य करते रहे तो इन्हें किसी प्रायश्चित या तप, दान, याग की जरूरत नहीं है !
कल मोदी जी ने अपने मंत्रिमंडल में कुछ परिवर्तन किया है, कह सकते है अपनी ताश के पत्तों को फेंटा है। उनकी क्रीड़ाओं के रहस्य को समझने पर भी, उनके एक पत्ते से थोड़ा सा लगा कि इन्हें अपने सारे खेल के बीच भी थोड़ा सा प्रायश्चित करने की जरूरत महसूस होने लगी है। उन्होंने रौद्र और वीभत्स रस के जरिये संघवीरों में ओज को पैदा करने वाली डीयर स्मृति जी को थोड़ा ठिकाने लगाया है। इसके अलावा, पर तो अरुण जेटली के भी कतरे गये हैं, लेकिन यह शायद शंकर-नर्तन का जितना परिणाम नहीं था, उससे अधिक उनके दुर्भाग्य का क्योंकि उनका नाम जब लिया गया तब समाधिस्थ ब्रह्मा, अर्थात आरएसएस की तंद्र थोड़ी टूट गई थी। अर्नब जैसों को अपनी जेब में रखकर जेटली ने ब्रह्मा के प्रमुख नारद सुब्रह्मण्यम स्वामी को फटकार दिलवाई थी, बस उसका हर्जाना तो देना ही था। जेटली पहले एकबार रक्षा मंत्रालय गंवा चुके थे, अब सूचना प्रसारण मंत्रालय से उन्हें हाथ धोना पड़ा।
बाकी जो हुआ, वह तो आत्म-मुग्ध शिवशंभु का नृत्य भर था। लोग इसमें भले उत्तर प्रदेश देख लें, पिछड़ा वर्ग देख लें या कुछ और। अंतत: यह कलियुग ही है। इनके हाथ से समय निकल चुका है।
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