-अरुण माहेश्वरी
देश के सभी चैनल अभी एक ही बात से आसमान को सिर पर उठाये हुए हैं कि ‘भारत के लोग काला धन निकालने के मोदी के निर्णय से बेहद खुश हैं’। घंटों लाईन में खड़े बेहद परेशान लोगों तक से यह कहलवाया जा रहा है कि वे ‘‘मोदी जी के काला धन निकालने के कदम से तो खुश है, लेकिन...’’।
और कहना न होगा, उनकी इस ‘लेकिन’ के बाद की रिक्तता में ही आज इन सभी लोगों के जीवन की सारी कठिनाइयों का दर्द छिपा हुआ है। ‘काला धन’ उनके लिये रेगिस्तान में दूरस्थ पानी का भ्रम पैदा करने वाली मरीचिका ही है, जिसके पीछे दौड़ते-हांफते हिरण के पास अंत में उसी मरुभूमि में दम तोड़ देने के अलावा और कोई चारा नहीं हुआ करता।
टेलिविजन चैनल आम लोगों की आंखों के ऐसे ही मरीचिका वाले भ्रम की या तो रिपोर्ट कर रहे हैं, या जान-बूझ कर उसे पैदा करने में जुटे हुए हैं। यह एक प्रकार से नि:स्व हो चुके देश के आम लोगों के आखेट का एक क्रूर खेल है। आम लोगों से उनकी कमाई का सब कुछ छीन कर उन्हें बैंकों के सामने भिखारियों की तरह खड़ा कर दिया गया है, फिर भी कहीं से कोई प्रतिवाद का स्वर न उठने पाए, इसलिये सबको दूरस्थ पानी के विशाल सरोवर भ्रम से उसे अबूझ सी अनंत मायावी लालसाओं के जाल में धकेल दिया जा रहा है।
जैसे पूंजीवाद के बारे में कहते हैं कि वह आदमी में भोग की एक अनंत कामना पैदा करके उसे इस प्रकार फंसाता है कि आदमी अपने दिन-रात भूल कर किसी यंत्र की तरह चौबीसों घंटे काम में जुटा रहता है। यह ‘काला धन’ निकालने वाला खेल भी घटिया राष्ट्रवाद का एक वैसा ही ईष्र्या, द्वेष और प्रतिहिंसा की अंतहीन भावना में फंसा कर आदमी को उसकी मानवीय अस्मिता के सभी स्वस्थ तत्वों तक से वंचित कर देने का, अर्थात उसकी मानवीयता को मार देने खेल है। हिटलर ने ऐसे ही राष्ट्रवादी उन्माद का एक रूप दिखाया था जब उसने यूरोप के बहुत सारे देशों के साथ ही अंत में खुद पूरे जर्मनी को एक खंडहर और श्मशान बना कर छोड़ा था।
भारत में ‘काला धन निकालने’ के काम में जुटे भाजपा के नेता, उनके भक्त और उनके भोंपू टेलिविजन चैनल ऐसी ही आत्म-विनाशकारी मरीचिका के पीछे एक अंधी दौड़ में पूरे देश को उतार कर हमारे देश की अर्थ-व्यवस्था की मूलभूत आंतरिक शक्ति को ही छीन लेने को उतारू है। विदेशी पूंजीपति और आईएमएफ की तरह के उनके संस्थान भारतीय अर्थ-व्यवस्था के इस सर्वनाश के लिये मोदीजी को खूब बधाइयां दे रहे हैं।
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