-अरुण माहेश्वरी
आध्यात्म के नाम पर मूलत: देह-व्यापार में लगा ढोंगी बाबा वीरेंद्र दीक्षित का आध्यात्मिक विश्वविद्यालय भारत में सभी आध्यात्मिक आश्रमों की आम सच्चाई है । ये आदमी के आत्मिक उत्थान के नाम पर सबसे पहले उसकी आत्मिक स्वतंत्रता ही नहीं, उसकी पूर्ण स्वतंत्रता का हरण करते हैं । आश्रम में आने वालों से पूर्ण समर्पण का मुचलका लिखवा कर उनके मन के साथ ही उनके तन और धन पर भी अपना अधिकार कायम कर लेते हैं ।
आगे, मूलत: पुरुषों के धन और स्त्रियों की देह के बल पर ये तेजी से अपना साम्राज्य फैलाते हैं ।
गोपनीयता इन आश्रमों के संचालन का मूल तत्व है । इनमें शामिल हर व्यक्ति सर्वोच्च मुखिया के प्रति पूरी तरह से निष्ठावान समझे जाने के नाते हर दूसरे व्यक्ति के लिये मुखिया के जासूस से कम नहीं होता है । आश्रम के माहौल में आश्रमवासियों के आपसी संबंधों की गोपनीयता के लिये कोई संभावना नहीं रहती है ।
यह बाहर के बड़े समाज के अंदर एक अन्य समाज का पूरी तरह से कटा हुआ टापू होता है । इनमें प्रवेश करने वाला व्यक्ति वस्तुत: बाकी समाज से अपनी नौका जला कर आता है । इसीलिये अंतत: उसकी दशा ग़ुलामों से भी बदतर होती है ।
इन आश्रमों में पनपने वाली अनैतिकताओं की बीमारी कैंसर के ट्यूमर की तरह अंदर ही अंदर विकराल रूप धारण करती रहती है । काल क्रम में इनका मेटास्टेटिक विस्तार व्यापक समाज से इन्हें जोड़ने वाली धमनियों के जरिये समाज में भी कहीं-कहीं दिखाई देने लगता है ।
वैसे भी इनके अंदर का रहस्य बाहर के व्यापक समाज के लिये आकर्षण का विषय होता है, लेकिन इनकी अंदुरूनी सचाइयों से पूरी तरह परिचित होने का समाज के पास अवसर नहीं होता । आम जीवन की विरूपताएं उनके लिये इनकी रहस्यमयता को अपने लिये काम्य बनाती है और इसीलिये इनके गह्वर में और कुछ न कुछ लोगों के गिरने की संभावना हमेशा बनी रहती है । वे इनमें शामिल न हो कर भी कम से कम बाहर से ही इनको सहायता पहुँचाते रहते है ।
गोपनीय संगठनों की रहस्यमयता के आकर्षण और व्यापक समाज के बीच के संबंधों का यह एक सामान्य सूत्र है । यह बात गोपनीय ढंग से काम करने वाले प्रत्येक संगठन पर कमोबेस लागू होती है । जब तक इनके गुह्य संसार की अनैतिकताएं अपनी अति को पार नहीं करती है या किसी भी वजह से इनके सख़्त गोपनीय ताने-बाने में कोई दरार नहीं पड़ती है, इनका कारोबार आराम से चलता रहता है ।
लेकिन जब इनका रोग अपनी चौहद्दियों के बाहर, छूत के रोग की तरह, सेक्स के साथ अन्य अनैतिक कामों के अड्डों की तरह बाहर आने लगता है, मैटास्टेटिक कैंसर की तरह, तब राज्य से इनकी टकराहट अनिवार्य हो जाती है । यह गीदड़ की मौत आने पर शहर की ओर जाने की तरह की स्थिति होती है ।
अपनी इस परिणति से बड़े से बड़े, शासक बन कर बैठे हुए मानव-विरोधी गोपनीय संगठन भी बच नहीं सकते । मनुष्य और सभ्यता की स्वतंत्रता की ओर अविराम यात्रा में इन सबका अंत इसी प्रकार अपरिहार्य होता है ।
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