सोमवार, 28 मई 2018

2019 और आरएसएस की 'सांस्कृतिक' तैयारियां



आज के 'टेलिग्राफ' में एक रिपोर्ट है 2019 के चुनाव में आरएसएस की व्यापक तैयारियों के बारे में — विपक्ष की एकता का डर संघ और भाजपा को करीब ला रहा है (Fear of opposition unity binds Sangh and BJP)।(https://epaper.telegraphindia.com/imageview_190924_174033198_4_71_29-05-2018_4_i_1_sf.html) यह रिपोर्ट मूलत: 2019 में आरएसएस की तैयारियों के बारे में है । आरएसएस के प्रचार का यह एक खास और पुराना तरीका है कि वह लोगों के सामने अपनी शक्ति और तैयारियों के ऐसे अपराजेय विराट-रूप की माया रचता रहता है ताकि आम लोगों का एक हिस्सा तो उस रूप की दानवता से ही पस्त-हिम्मत हो कर राजनीतिक प्रक्रिया से अलग हो जाए ।

आज ही एक पत्रकार मित्र ने 'व्हाट्स अप' पर एक वीडियो साझा किया जिसमें ऐंकर जानवरों की तरह चीख-चीख कर कह रहा है कि किस प्रकार 2019 के चुनाव में पाकिस्तान ने कांग्रेस की मदद करने का फैसला किया है, क्योंकि इन चिंघाड़ने वाले ऐंकर महोदय के अनुसार यदि 2019 में फिर से मोदी जीत जाते हैं तो “पाकिस्तान के लिये करने को कुछ नहीं रह जायेगा । वह खत्म हो जायेगा ।”

मित्र ने हमें लिखा कि 2019 में मोदी-आरएसएस यही चाल चलने वाले हैं । पाकिस्तान का हौवा खड़ा करने की चाल !

मित्र महोदय को हमने लिखा कि पाकिस्तान तो एक ऐसा विषय है जिसकी चर्चा किये बिना किसी भी संघ वाले के प्रचार की गाड़ी ही स्टार्ट नहीं होती । उस पर किक मारने के बाद ही उनकी गाड़ी का गुर्राना शुरू होता है । इसलिये इसे लेकर ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है ।

हमने मित्र महोदय से प्रति-प्रश्न किया कि यह बताइयें कि क्या संघ 2019 में मोदी को किनारे रख कर चुनाव लड़ने की सोच रहा है ? नहीं, यह उनके लिये मुमकिन ही नहीं है । एक तानाशाह को तैयार करना संघ की विचारधारा का अभिन्न अंग है । मोदी कमजोर हो या मजबूत, उनमें अब वे अपने इष्ट तानाशाह की सूरत सिर्फ देखने नहीं लगे है, बल्कि देखने के लिये मजबूर भी हैं । अब मोदी के बोझ को अपने सर से उतारना उनके लिये नामुमकिन है । यह तभी संभव होगा जब मोदी के नेतृत्व में यह पूरा कुनबा बुरी तरह से पराजित होगा ।

हमने आगे लिखा कि अगर मोदी को केंद्र में ही रख कर आरएसएस को 2019 का चुनाव लड़ना है तो फिर पाकिस्तान की रट हो या हिंदू-मुसलमान का मसला, सच यह है कि ऐसा कुछ भी, जिसे 'विचारधारात्मक' कहा जा सकता है, काम नहीं आने वाला है । आम मतदाता किसी विचारधारा को नहीं पहचानता है । इसके अलावा, मोदी अपनी स्थिति और प्रवृत्ति के कारण ही, चुनाव-प्रचार में जिस प्रकार का शोर और धमा-चौकड़ी मचायेंगे उससे पूरा चुनाव मोदी और उसकी सरकार पर ही केंद्रित हो जाने के लिये बाध्य होगा । और, लोगों को जैसे ही मोदी अपनी सारी मुद्राओं और दहाड़ों के साथ चारो ओर दौड़ते-भागते दिखाई देंगे, यह तय मानियें, मतदाताओं की आंखों के सामने उनकी नोटबंदी की घोषणा के वक्त की, फिर पचास दिन की मोहलत मांगने वाली उनकी मुद्राओं, जीएसटी के आधी रात के भुतहा जश्न की थोथी बातों से लेकर, जन-धन योजना की धोखा-धड़ी, किसानों के साथ फसल की कीमतों और कर्ज माफी के सवालों पर की जा रही लगातार दगाबाजी, महंगाई और पेट्रोल की कीमत आदि की तरह की तमाम बातों का इतिहास-परिहास बिल्कुल साक्षात रूप में नाचने लगेगा । आरएसएस वालों का तैयार किया जा रहा नाना प्रकार की चरम झूठों का पुलिंदा उसी प्रकार धरा का धरा रह जायेगा, जिस प्रकार गोरखपुर, फुलपुर में धरा रह गया । मोदी के खिलाफ विपक्ष की एकता की आंधी के सामने आरएसएस की 'तैयारियां' तिनकों से भी कमजोर साबित होगी ।

फिर भी, यह सब निर्भर करेगा, चुनावों के होने पर ! सत्ता के मामले में मोदी की बदहवासी को देखते हुए चुनाव के होने, न होने की आशंका को पूरी तरह से निराधार नहीं कहा जा सकता है । 

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