बुधवार, 2 सितंबर 2020

मोदी के रहते आगे सिवाय पतनशीलता की सड़ांध के और कुछ भी हासिल करना असंभव है


  • अरुण माहेश्वरी 

 


मोदी के आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रह्मण्यन को जीडीपी में वृद्धि की -23.9 प्रतिशत दर में भी विक्ट्री का V चिन्ह दिखाई दे रहा हैउनकी इस बात से साफ़ है कि सचमुच मोदी सरकार ग़ज़ब के सनकी धुरंधरों का जमावड़ा बन चुकी है  आँकड़े तो इनकी सबसे बड़ी ग्रंथी हैजो इन धुरंधरों के दिमाग़ में बिना किसी सुर-ताल के अनियंत्रित नाचते और छाए रहते हैं  बल्किये उन्हें नचवाते रहते हैं  उनका इस सच को समझना तो बहुत-बहुत दूर की बात है कि मोदी देश में कुछ भी अच्छा करने के लिए सत्ता पर नहीं आए हैं ; इनके रहते अबतक जो भी बना हैउन सब का डूबते चले जाना पूर्व-निर्धारित है  आरएसएस के तात्त्विक सच से वाक़िफ़ कोई भी यह जानता है कि मोदी के आगमन की काली पट्टी पर शुरू से यह अंकित था कि पूर्ण तबाही अब सन्निकट है  इस काल में अंत तक पूरे राष्ट्र को राफेल की तरह के हथियारों पर बेइंतहा खर्च से या युद्ध की बर्बादियों से बने बड़े-बड़े गड्ढों में समा जाना हैंक्योंकि हिंदुओं का उत्थान नहींउनका ‘सैन्यीकरण’ इनके गुरुकुल आरएसएस का परम लक्ष्य है  महायुद्ध की महा तबाही इनका परम सुख हैक्योंकि ये हिटलर की नाजायज संतान जो हैं !

 

बहरहालस्टेट बैंक आफ़ इंडिया की 31 अगस्त की रिसर्च रिपोर्ट ‘इकोरैप’ ने चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाहीअप्रैल-जून 2020 में जीडीपी में वृद्धि की दर में -23.9 प्रतिशत की गिरावट के बाद हिसाब लगा कर बताया है कि दूसरी तिमाही में इस दर में -12 से -15 प्रतिशत की गिरावट आएगीतीसरी तिमाही में -5 से -10 प्रतिशत की और अंतिम तिमाही में यह मुमकिन है -2 से -5 प्रतिशत तक की गिरावट होगी  अर्थात् इस पूरे साल में जीडीपी -10.9 प्रतिशत की दर से सिकुड़ जाएगी  

 

स्टेट बैंक वालों का यह पूरा अनुमान पूर्ण लॉक डाउन से लॉक डाउन की पूर्ण समाप्ति तक की परिस्थिति की कल्पना पर आधारित है इसमें लॉक डाउन के पहले से ही मोदी की स्वेच्छाचारी करतूतों के चलते अर्थ-व्यवस्था में जो गहरा गतिरोध पैदा हो गया थाउसके किसी आकलन को शामिल नहीं किया गया है  

 

मसलन्जीएसटी संग्रह के ताज़ा आँकड़ों को ही लिया जा सकता है  पिछले जुलाई महीने में सरकार के ख़ज़ाने में सकल जीएसटीसंग्रह 87422 करोड़ रुपये का हुआ थाजो अनलॉक-1 (8 जून से शुरूके काल में संग्रहित की गई राशि कही जा सकी हैअर्थात् लॉकडाउन 5 के अंत के बाद अनलॉक काल के पहले महीने की राशि  

 

इसके बाद पूरे जुलाई महीने में 1 जुलाई से 31 जुलाई तक अनलॉक-2 का काल चलाजब पहले की तुलना में और बहुत सारी गतिविधियों को खोल दिया गया था  माना जा सकता है कि अगस्त महीने में सरकार के पास जो जीएसटी जमा हुआवह इसीअपेक्षाकृत ज़्यादा गतिविधियों के काल में संग्रहित जीएसटी की राशि है  इसमें गौर करने की बात है कि अगस्त महीने में सरकार केपास जमा हुआ जीएसटी जुलाई महीने से घट कर 86449 करोड़ रुपया हो गयाअर्थात् 973 करोड़ रुपया कम हो गया  

 

लॉक डाउन के ख़त्म होने की प्रक्रिया के साथ जीएसटी संग्रह में कमी का यह मामूली संकेत ही सरकारी लफ़्फ़ाज़ियों के परेअर्थ-व्यवस्था के अपने खुद के सच को बताने के लिए काफ़ी है  कोविड के बाद की परिस्थिति से इसकी कोविड-पूर्व की बीमारी के नए पक्षों और नई जटिलताओं का जो ख़तरा पैदा हुआ हैउसे सिर्फ़ लॉकडाउन-केंद्रित अध्ययनों से कभी नहीं पकड़ा जा सकता है  यह कोरोना से हुई मौतों के साथ कोमार्बिडिटी वाली समस्या की तरह ही है  डायबिटीज़ब्लड प्रेशर तथा दूसरे कई क्रानिक रोगों से ग्रसित लोगों केलिये जैसे कोरोना ज़्यादा ख़तरनाक साबित हुआ हैबिल्कुल उसी प्रकारभारत की अर्थ-व्यवस्था पर कोविड के असर का कोई भी सही आकलन इसके कोरोना-पूर्व बिगड़े हुए स्वास्थ्य को ध्यान में लिए बिना नहीं किया जा सकता है  

 

कोरोना के काफी पहले से हीलगभग दो साल पहले से भारत में निवेश और उत्पादन में गिरावट का सिलसिला तेज़ी से शुरू हो गया था मोदी ने नोटबंदी के समय से जनता को कंगाल बनाने का जो अभियान शुरू किया थाकोरोना के पहले ही उसके चतुर्दिक आर्थिक दुष्परिणामों के सारे संकेत साफ़ दिखाई देने लगे थे  जीडीपीजीएसटीबैंकों से ऋणपूँजी निवेशरोज़गार और राजस्व में गिरावट के वे सारे आँकड़े उझक-उझक कर सामने आने लगे थेजिन्हें दबा कर रखने में मोदी ने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया था  सभी अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने भारत की रेटिंग को घटाना शुरू कर दिया था  मूडीज ने कोरोना के पहले ही इसे गिरा कर नकारात्मक रुझानों वाली बीएए-3 कर दिया थाअर्थात् इसके बाद भारत को पूँजी निवेशकों लिए एक बिल्कुल अनुपयुक्त देश माना जाएगा  

 

कहना  होगाअब जीडीपी में वृद्धि की -23.9 प्रतिशत की दर के बाद इसे पूरी तरह तय मान लिया जाना चाहिए कि अन्तर्राष्ट्रीय पूँजी निवेशकों के लिये भारत आगे सचमुच लगभग एक प्रतिबंधित क्षेत्र की तरह होगा  पुरानी नकारात्मक रेटिंग से स्थिति काफ़ी ज़्यादा बिगड़ चुकी है  इस प्रकार की रेटिंग के आने वाले दिनों में आर्थिक विकास परअर्थात् जीडीपी में विकास की दर पर जो अतिरिक्त नकारात्मक प्रभाव पड़ेगाभारी विदेशी मुद्रा भंडार के नशे में खोए हुए मोदी और उनके नौकरशाहों जरा भी अनुमान नहीं है  

 

ऊपर से मोदी की अपनी विध्वंसक तरंगों का सिलसिला कहीं से रुकता नहीं दिखाई देता है  सांप्रदायिक तनावजनतंत्र का नाश और युद्धोन्माद  — जो सभी आरएसएस के डीएनए से जुड़े हुए हैंवे उसके अंतर-बाह्य पूरे अस्तित्व को परिभाषित करते हैं  कश्मीरराममंदिरसीएए और चीनपाकिस्तान से युद्ध — मोदी सरकार के वर्तमान और भावी मुद्दों की जो सकल तस्वीर दिखाई दे रही हैइनमें से एक भी राष्ट्र के लिए आर्थिक लिहाज़ से निर्माणकारी या सहयोगी नहीं है  ये सब सिर्फ आगउन्माद और बर्बादी के मुद्दे हैं  

 

ऐसे मेंकैसे कोई भी धुरंधर पंडित अर्थ-व्यवस्था में किसी भी सुधार की कल्पना भी कर सकता है ! कोरोना आगे रहे या  रहेजब तक जनता के पक्ष में मूलभूत आर्थिक सुधार नहीं किए जाते हैंभारत की अर्थ-व्यवस्था में किसी भी प्रकार का सुधार असंभव है  अब यह साफ़ जान पड़ता है कि आने वाले दिनों में भारत विकासशील देशों की आत्म-उन्नति की कामना से चालित नहीं होगाबल्कि किसी पिछड़े हुए देश के पतनशील दलदल में हाथ-पैर मारता हुआ दिखाई देगा  बेरोज़गारों की दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही फ़ौजअशिक्षाधार्मिक उन्माद और राष्ट्रवाद आज के युग के कोढ़ हैंजिनसे कोई भी राष्ट्र सिर्फ़ सड़ सकता हैवह किसी भी उद्यम के सौन्दर्यका परिचय नहीं दे सकता है  

  

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